जानकारियां एवम इतिहास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
जानकारियां एवम इतिहास लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 1 मई 2018

तिरंगे से जुड़े तथ्य, जानकारियां एवम इतिहास

































भारत के राष्ट्रगान को रविन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाली  भाषा में रचित किया जिसे बाद में हिंदी में अनुवाद किया गया | राष्ट्रगान के हिन्दी संस्करण को 24 जनवरी 1950 में सविधान सभा में पारित किया गया | पहली राष्ट्रगान 27 जनवरी 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में गाया गया | इस पुरे गाने में पांच पद है और पहले छंद में पूरा राष्ट्रगान आता है | राष्ट्रगान को पूरा गाने में लगभग 52 सेकंड लगते है | इसके गीत को रविन्द्रनाथ टैगोर ने स्वयं अंग्रेजी में अनुवाद किया |


भारत का राष्ट्र ध्वज भारत के स्वत्रंतता का प्रतीक है | भारतीय ध्वज एक क्षैतिज , बराबर अनुपात में तीन रंगो , सबसे उपर केसरिया , मध्य में सफेद और नीचे गहरा हरा रंग , में बना होता है |  भारतीय ध्वज के इन्ही तीन रंगो के कारण इसे तिरंगा कहते है | भारतीय ध्वज की ललम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 2:3 होता है | तिरंगे के मध्य सफेद रंग की पट्टी में एक गहरे नीले रंग का चक्र बना होता है जिसे धर्म चक्र कहते है और इस चक्र को सारनाथ के अशोक चक्र से लिया गया है | इसका व्यास सफेद पट्टी के बराबर होता है और इसमें 24 तीलिया होती है |
तिरंगे के तीन रंगो में तीनो का अपना अपना अलग महत्व होता है | केसरिया रंग साहस , बलिदान और एकता का प्रतीक होता है | सफेद रंग शुद्धता , शान्ति और सत्य का प्रतीक होता है | हरा रंग विश्वास और उपजाऊता का प्रतीक होता है | मध्य में बना चक्र कांग्रेस के ध्वज से भारतीय ध्वज को अलग करने के लिए दिया गया | इस धर्म चक्र को 3 सदी में मौर्य सम्राट अशोक ने सारनाथ में बनवाया था | यह चक्र हमे यह बताता है कि जीवन निरंतर घूमता रहता है और ठहरते ही मौत के मुह में चला जाता है |
भारत के राष्ट्रध्वज को सबसे पहले भारत की सविधान सभा में 22 जुलाई 1947 को पारित किया गया | इसके उपयोग और ध्वज फहराने के अपने नियम थे जिसको 26 जनवरी 2002 में बदल दिया गया | आजादी के 52 साल बाद तिरंगे को घरो , कार्यालयों और कारखानों में किसी भी दिन फहराने की अनुमति मिल  गयी थी | तिरंगे को फहराने के अपने कुछ नियम आप सरकारी वेबसाइट पर देख सकते है


वन्दे मातरम भारत का राष्ट्रगीत है जिसे बंकिमचंद चटर्जी ने बंगाली भाषा के संस्कृत रूप में निर्मित किया | ये गीत पहली बार 1882 में आनन्दमठ नामक पुस्तक में छपा था | यह गीत बंकिमचन्द्र द्वारा छ: साल पहले 1876 में ही लिख दिया गया लेकिन ब्रिटिश सरकार के प्रतिबंध कर दिए जाने के डर से इसको 1882 में पप्रकाशित किया गया |वन्दे मातरम सबसे पहले रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1896 की कांग्रेस महासभा में गाया गया |जन गन मन की लोकप्रियता के चलते वन्दे मातरम राष्ट्रगान नही बन पाया |


भारत का राष्ट्र चिन्ह सारनाथ के शेर  है जिसको अशोक की राजधानी सारनाथ के अशोक स्तम्भ से लिया गया है | सरकार ने 26 जनवरी 1950 को इसे पहली बार भारत के सविंधान में पारित किया | राष्ट्रीय चिन्ह को केवल आधिकारिक तौर पर और सेना के जवानो को सम्मान और पद देने में किया जाता है |वास्तविकता में सारनाथ के स्तम्भ में एक के पीछे एक , चार शेर है  | इसके अलावा उसमे नीचे की तरफ एक हाथी , एक दौड़ता हुआ घोडा , एक बैल और एक शेर है और इन सबके बीच में अशोक चक्र है |
भारत सरकार ने जब इसे राष्ट्र चिन्ह National Symbols के रूप में पारित किया तो केवल तीन शेर ही दृश्यमान थे जबकि चौथा दिखने से छिप गया था | उसके नीचे की दाहिनी तरफ एक बैल , बायी तरफ घोडा और मध्य में अशोक चक्र है | इसमें घंटी के आकार के कमल को इसमें से हटा दिया गया |इन सबके नीचे मुण्डक उपनिषद से लिया गया “सत्यमेव जयते” शब्द देवनागरी लिपि में लिखा गया जिसका अर्थ है सत्य की विजय हो  | इस National Symbols राष्ट्रचिन्ह को भारत सरकार के आधिकारिक letterhead का महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया और साथ ही भारतीय मुद्रा पर भी इस चिन्ह को अंकित किया गया | इसका उपयोग भारतीय पासपोर्ट पर भी देखा जा सकता है |
भारतीय राष्ट्रिय ध्वज हमारी स्वाधीनता का प्रतीक  है. देश में अपना ध्वज लहराने का मतलब है कि वो देश आजाद है. आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरु ने कहा था ‘राष्ट्रीय ध्वज सिर्फ हमारी स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि ये देश की समस्त जनता की स्वतंत्रता का प्रतीक है.’ भारतीय लॉ के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज खादी के कपड़े का होना चाहिए. शुरुआत में राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल आम नागरिकों द्वारा सिर्फ राष्ट्रीय दिवस जैसे स्वतंत्रता दिवस व गणतन्त्र दिवस को ही होता था, बाकि के दिनों में वे उसको नहीं फेहरा सकते थे. लेकिन कुछ समय के बाद यूनियन कैबिनेट ने इसमें बदलाव किया और आम नागरिकों द्वारा इसके उपयोग को शुरू कर दिया गया.
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को सभी लोग ‘तिरंगा’ नाम से जानते है, इसका मतलब है तीन रंग. तीनों कलर समतलीय एक बराबर हिस्सों में बटे हुए होते है. सबसे उपर केसरिया, उसके नीचे सफ़ेद व सबसे नीचे हरा रंग होता है. तिरंगा की चोडाई व् लम्बाई 2:3 अनुपात में होती है. तिरंगा के बीच में सफ़ेद रंग के उपर नीले रंग का अशोक चक्र होता है, जिसमें 24 धारियां होती है.
राष्ट्रीय ध्वज स्वतंत्रता के लिए, भारत की लम्बी लड़ाई व राष्ट्रीय खजाना का प्रतिनिधित्व करता है. यह स्वतंत्र भारत के गणतंत्र का प्रतीक है. देश आजाद होने के कुछ दिन पूर्व 22 जुलाई 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान को लेकर एक सभा आयोजित की गई थी, जहाँ पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को सबके सामने प्रस्तुत किया गया. इसके बाद 15 अगस्त 1947 से 26 जनवरी 1950 तक राष्ट्रीय ध्वज को भारत के अधिराज्य के रूप में प्रस्तुत किया गया. 1950 में संविधान लागु होने पर इसे स्वतंत्र गणतंत्र का राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया गया. राष्ट्रीय ध्वज को पिंगली वेंक्क्या द्वारा बनाया गया था.
1904-06 – भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास आजादी के पहले से जुड़ा हुआ है. 1904 -06 के आसपास पहली बार राष्ट्रीय ध्वज लोगो के सामने आया था. उस समय इसे स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता ने बनाया था. कुछ समय बाद इस ध्वज को सिस्टर निवेदिता ध्वज कहा जाने लगा. इस ध्वज का रंग पीला व लाल था. जिसमें लाल रंग आजादी की लड़ाई व पीला रंग जीत का प्रतीक था. इस पर बंगाली भाषा में ‘वोंदे मतोरम’ जिसका अर्थ वंदेमातरम् है लिखा गया था. इस पर भगवान इंद्र का शस्त्र वज्र व सेफ कमल का चित्र भी बनाया गया था. वज्र ताकत व कमल पवित्रता का प्रतीक था.
1906 – सिस्टर निवेदिता की रचना के बाद 1906 में एक बार फिर नए ध्वज का निर्माण हुआ. इसमें तीन रंग समाहित थे, सबसे उपर नीला फिर पीला व सबसे नीचे लाल रंग था. इसमें सबसे उपर नीली पट्टी में 8 अलग अलग तरह के सितारे बने हुए थे. सबसे नीचे की लाल पट्टी में एक ओर सूर्य व दूसरी ओर आधा चन्द्रमा व एक तारा बना हुआ था. पिली पट्टी में देवनागरी लिपि से वंदेमातरम् लिखा गया था.
इसी साल इस ध्वज में थोडा बदलाव किया गया, इसमें तीन रंग ही थे, लेकिन उन रंगों को बदल दिया गया. इसमें केसरिया, पीला व हरा रंग था, जिसे कलकत्ता ध्वज कहा गया. इसमें सबसे उपर 8 आधे खिले हुए कमल बनाये गए थे, इसलिए इसे कमल ध्वज भी नाम दिया गया. इसे सचिन्द्र प्रसाद बोस व सुकुमार मित्रा ने बनाया था. इस ध्वज को 7 अगस्त 1906 में कलकत्ता के पारसी बागन चौराहे पर सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी द्वारा फ़हराया गया था. उस समय बंगाल का विभाजन हुआ था, उसी के विरोध में ये प्रदर्शन किया गया था.
1907 – 1907 में इसमें मैडम भिकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर व् श्यामजी कृष्णा वर्मा द्वारा फिर बदलाव किये गए. इसे मैडम भिकाजी कामा ध्वज भी कहा गया. 22 अगस्त 1907 में मैडम भिकाजी कामा द्वारा इस ध्वज को जर्मनी में फ़हराया गया था. ऐसा पहली बार था, जब भारतीय ध्वज को देश के बाहर विदेशी जमीन पर फ़हराया गया था. इस समारोह के बाद इसे ‘बर्लिन कमिटी ध्वज’ भी कहा गया. इस ध्वज में सबसे उपर हरा बीच में केसरिया व् सबसे नीचे लाल रंग था.
1916 – 1916 में पिंगली वेंकय्या नाम की लेखिका ने एक ध्वज बनाया, जिसमें पुरे देश को साथ लेकर चलने की उनकी सोच साफ झलक रही थी. वे महात्मा गाँधी से भी मिली और उनकी राय ली. गांधीजी ने उनको उसमें चरखा भी जोड़ने की बात कही. पिंगली ने पहली बार ध्वज को खादी के कपड़े से बनाया था. इसमें 2 रंग लाल व् हरे रंग से बनाया गया व् बीच में चरखा भी बनाया गया. इस ध्वज को महात्मा गाँधी ने देख कर नकार दिया, उनका कहना था लाल रंग हिन्दू व् हरा रंग मुस्लिम जाति का प्रतीक है. इस ध्वज से देश एकजुट नहीं प्रतीत होता है.
1921 – महात्मा गाँधी चाहते थे कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज में देश की एक जुटता साफ साफ झलके, इस वजह से एक ध्वज का निर्माण किया गया. इस ध्वज में भी 3 रंग थे, सबसे उपर सफ़ेद फिर हरा आखिरी में लाल. इस ध्वज में सफ़ेद रंग देश के अल्पसंख्यक, हरा रंग मुस्लिम जाति व् लाल रंग हिन्दू और सिख जाति को दर्शाता था. बीच में चरखा भी जोड़ा गया, जो सारी जाति की एकजुटता को दर्शाता था. इस ध्वज को कांग्रेस पार्टी ने नहीं अपनाया, लेकिन फिर भी ये आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीयता का प्रतीक बना हुआ था.
1931 – ध्वज में साम्प्रदायिक व्याख्या से कुछ लोग बहुत नाराज थे. इन्ही सब बातों को ध्यान में रखते हुए ध्वज में लाल रंग को गेरू कर दिया गया. ये रंग हिन्दू मुस्लिम दोनों जाति को प्रकट करता है. लेकिन इसके बाद सिख जाति के लोगो ने राष्ट्रीय ध्वज में अपनी जाति को प्रकट करने के लिए एक अलग मांग की. इसके फलस्वरूप पिंगली ने एक नया ध्वज बनाया, जिसमें सबसे उपर केसरिया फिर सफ़ेद अंत में हरा रंग था. इसमें बीच में सफ़ेद के उपर नीले रंग का चरखा था. 1931 में कांग्रेस पार्टी की मीटिंग में इसे पास कर दिया गया, जिसके बाद ये कांग्रेस का आधिकारिक ध्वज बन गया.
1947 – 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब देश के प्रथम राष्ट्रपति व कमिटी प्रमुख राजेन्द्र प्रसाद जी ने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में बात करने के लिए एक सभा बुलाई. वहां सबने एक मत होकर कांग्रेस से उनका ध्वज लेने की बात मानी. 1931 में बनाये गए उस ध्वज में बदलाव के साथ उसे अपनाया गया. बीच में चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली. इस प्रकार अपने देश का राष्ट्रीय ध्वज तैयार हो गया.
ध्वज का निर्माण कार्य – ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैण्डर्ड (BIS) ने ध्वज के निर्माण के लिए मानक सेट किया. उन्होंने उसके निर्माण से जुड़ी हर छोटी बड़ी बात जैसे उसका कपड़ा, धागा, रंग उसका अनुपात सब कुछ रुल के अनुसार सेट किया, यहाँ तक कि उसके फेहराने से जुड़ी बातें भी रुल में लिखी गई.
जब राष्ट्रीय ध्वज उठाया जाये, तब हमेशा ध्यान रखें केसरिया रंग सबसे उपर हो.कोई भी ध्वज या प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज के उपर नहीं होना चाहिए.अगर कोई और ध्वज फेहराये जा रहे है, तो वे हमेशा इसके बायीं ओर पंक्ति में फेहराये जाये.अगर कोई जुलुस या परेड निकल रही हो, तो राष्ट्रीय ध्वज दाहिने ओर होना चाइये या फिर बाकि ध्वजों की पंक्ति में बीच में होना चाइये.राष्ट्रीय ध्वज हमेशा मुख्य सरकारी ईमारत व् संस्थान जैसे राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट आदि में फेहरा हुआ होना चाइये.राष्ट्रीय ध्वज किसी भी पर्सनल व्यवसाय या काम के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता.राष्ट्रीय ध्वज शाम को सूर्यास्त के समय उतार देना चाइये.