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बुधवार, 21 मार्च 2018

Indian Yoga and Mudra health is wealth

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हस्त मुद्रा चिकित्सा पद्धति क्या है ?
हमारा शरीर अनन्त रहस्योंसे भरा हुआ है एवं इस शरीरको स्वस्थ बनाए रखनेकी शक्ति हमारे शरीरमें ही ईश्वरने निहितकी है । शरीरकी अपनी एक मुद्रामयी भाषा है, जिसे सूक्ष्म ज्ञानके अभावमें हम कालान्तरमें भूल चुके हैं एवं इन्हें शास्त्रानुसार करनेसे हमें शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक तीनों स्तरपर लाभ प्राप्त होते हैं । 
ऋषि–मुनियोंने सहस्रों वर्षों पूर्व इस सूक्ष्म विधाको अपनी प्रज्ञाशक्तिके बलपर ढूंढ निकाला था एवं वे उसके नियमित उपयोगसे स्वस्थ रहते थे तथा हिन्दू धर्मके अनेक आचारधर्मके पालनमें इसे समाविष्ट भी किया गया था, जैसे नमस्कार, हाथसे भोजन ग्रहण करना, पैर मोडकर भिन्न प्रकारके आसन बनाकर अपनी दिनचर्याके मध्य बैठना, ये सब विशिष्ट मुद्राओंसे प्रभावित रहे हैं । 
यथार्थमें मुद्राएं शरीरमें चैतन्यको अभिव्यक्ति देनेवाली कुंजियां हैं । मुद्राओंका प्रयोग हमारे देवी-देवताओंकी मूर्तियोंमें, देवालयोंकी कलाकृतियोंमें तथा भारतीय नृत्य शैलीमें हुआ है । यहांतक कि हाथसे भोजन ग्रहण करते समय उस विशेष मुद्रासे हमें लाभ मिलता है; अतः हम हाथसे भोजन करते हैं ।
पञ्च तत्त्वोंसे बने इस शरीरके यदि इन तत्त्वोंको सन्तुलित रखा जाए तो आरोग्यता प्राप्त होती है । मात्र कुछ शतकोंसे धर्म और अध्यात्मसे दूर जानेके कारण ऐसे सभी सूक्ष्म प्राकृतिक एवं सरलतासे उपलब्ध चिकित्सा पद्धतियोंसे हम दूर हो गए हैं; किन्तु हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने ऐसी सभी चिकित्सा पद्धतियोंको कहीं न कहीं प्रचलित कर, उसे जीवित रखा है; अतः अब हम ऐसी सभी चिकित्सा पद्धतियोंको उनके विशेषज्ञोंसे सीखकर उसे अपनानेका पुनः प्रयास करेंगे । इस हेतु इन्हें सीखकर, अभ्यास करनेकी मात्र आवश्यकता है ।
हस्त मुद्राओंकी संख्या मुद्राओंकी निश्चित संख्याको बताना थोडा कठिन है एवं शास्त्रोंमें इसका भिन्न स्थानोंपर वर्णन तथा प्रकार दिए गए हैं । मुद्राके विषयमें बतानेवाला सबसे प्राचीन ग्रन्थ घेरण्ड संहिता है । हठयोगपर आधारित इस ग्रन्थको महर्षि घेरण्डने लिखा था । घेरण्ड संहितामें २५ और हठयोग प्रदीपिकामें १० मुद्राओंका उल्लेख मिलता है; परन्तु अन्य योगके ग्रन्थोंमें भी अनेक मुद्राओंके विषयमें जानकारी दी गई है; किन्तु प्रमुखत: मुद्रा चिकित्सा पद्धतिके प्रचारक ७२ मुद्राओंका विशेष रूपसे प्रचार-प्रसार करते हैं । इनमेंसे ५० से ६० हस्त मुद्राएं अधिक प्रचलित हैं ।
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1.यमयम के पाँच प्रकार हैं- 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। अपरिग्रह का अर्थ है किसी वस्तु या विचार का संग्रह करना और अस्तेय का अर्थ हैकिसी वस्तु या विचार की चोरी ना करना। उपरोक्त पाँच में से आप जिस भी एक को साधना चाहें साध लें। यह सूत्र आपके शरीर और मन की गाँठों को खोल देगा।

2.
नियमनियम भी पाँच होते हैं- 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय, 5.ईश्वर प्राणिधान। शौच का अर्थ है शरीर और मन को साफ-सुधरा रखना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं के विचारों का अध्ययन करना और ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है कि सिर्फ 'एक परमेश्वर' के प्रति समर्पण करना। कहते हैं कि एक साधे सब सधे और सब साध तो एक भी ना सधे। नियम से ही जिंदगी में अनुशासन आता है।


3.
आसन- तो बहुत है, लेकिन सूर्य नमस्कार ही करते रहने से शरीर स्वस्थ् बना रह सकता है। फिर भी आप चाहें तो मात्र 10 आसनों का अपना एक फार्मेट बना लें और नियमित उसे ही करते रहें। याद रखें वे 10 आसन अनुलोम-विलोम अनुसार हो।

4.
अंगसंचालन/हास्य योगयदि आसन ना भी करना चाहें तो अंग संचालन और हास्य को अपने जीवन का हिस्सा बनाएँ।


5.
प्रणायाम- तो हमारे शरीर और मन दोनों को प्रभावित करता है, तो शुरू करें अनुलोम-विलोम से और उसे ही करते रहें। बीच-बीच में आप चाहें तो दूसरे प्राणायाम भी कर सकते हैं, लेकिन किसी योग प्रशिक्षक से सीखकर।

6.
ध्यान- करने से पहले जरूरी है यह समझना कि ध्यान क्या होता है और इसका शाब्दिक अर्थ क्या है। अधिकतर लोग ध्यान के नाम पर प्राणायाम की क्रिया या कुछ और ही करते रहते हैं। ध्यान मेडिटेशन नहीं, अवेयरनेस है। ध्यान शरीर और मन का मौन हो जाना है। सिर्फ 10 मिनट का ध्यान आपके जीवन को बदल सकता है।


7.
मुद्राएँयहाँ हम बात सिर्फ हस्त मुद्राओं की। मुख्यत: पचास-साठ मुद्राएँ होती है। उनमें भी कुछ खास है- ज्ञान मुद्रा, पृथवि मुद्रा, वरुण मुद्रा, वायु मुद्रा, शून्य मुद्रा, सूर्य मुद्रा, प्राण मुद्रा, लिंग मुद्रा, अपान मुद्रा, अपान वायु मुद्रा, प्रणव मुद्रा, प्रणाम मुद्रा और अंजलीमुद्रा। उल्लेखित मुद्राएँ सभी रोगों में लाभदायक है।


8.
क्रियाएँक्रियाएँ करना मुश्किल होता है। मुख्य क्रियाएँ हैं- नेती, धौति, बस्ती, कुंजर, न्यौली तथा त्राटक। उक्त क्रियाएँ किसी योग्य योग प्रशिक्षक से सीखकर ही की जानी चाहिए और यदि जरूरी हो तभी करें।

9.
आहारयह बहुत जरूरी है अन्यथा आप कितने ही आसन-प्राणायाम करते रहें, वे निर्थक ही सिद्ध होंगे। उचित आहार का चयान करें और निश्चित समय पर खाएँ। आहार में शरीर के लिए उचित पोषक तत्व होना जरूरी है। ना कम खाएँ और ना ज्यादा, मसालेदार तो बिल्कुल ही नहीं।


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