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गुरुवार, 27 जुलाई 2017

माँ दुर्गा ( दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला)




1) दुर्गा2) दुर्गार्तिशमनी
3) दुर्गाद्विनिवारिणी 4) दुर्गमच्छेदनी
5) दुर्गसाधिनी 6) दुर्गनाशिनी
7) दुर्गतोद्धारिणी 8) दुर्गनिहन्त्री
9) दुर्गमापहा 10) दुर्गमज्ञानदा
11) दुर्गदैत्यलोकदवानला 12) दुर्गमा
13) दुर्गमालोका14) दुर्गमात्मस्वरुपिणी
15) दुर्गमार्गप्रदा 16) दुर्गमविद्या
17) दुर्गमाश्रिता 18) दुर्गमज्ञानसंस्थाना
19) दुर्गमध्यानभासिनी 20) दुर्गमोहा
21) दुर्गमगा 22) दुर्गमार्थस्वरुपिणी
23) दुर्गमासुरसंहंत्रि 24) दुर्गमायुधधारिणी
25) दुर्गमादंगी 26) दुर्गमता
27) दुर्गम्या 28) दुर्गमेश्वरी
29) दुर्गभीमा 30) दुर्गभामा
31) दुर्गभा 32) दुर्गदारिणी



1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:

2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:

3. चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:

4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:

5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:

6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:

7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:

8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:

9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:



1. सती  : अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली
2. साध्वी : आशावादी
3. भवप्रीता : भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी : ब्रह्मांड की निवास
5. भवमोचनी :  संसार बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या : देवी
7. दुर्गा :  अपराजेय
8. जया : विजयी
9. आद्य : शुरूआत की वास्तविकता
10. त्रिनेत्र : तीन आँखों वाली
11. शूलधारिणी : शूल धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी : शिव का त्रिशूल धारण करने वाली
13. चित्रा : सुरम्य, सुंदर
14. चण्डघण्टा : प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली
15. महातपा : भारी तपस्या करने वाली
16. मन  : मनन- शक्ति
17. बुद्धि : सर्वज्ञाता
18. अहंकारा : अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा : वह जो सोच की अवस्था में है
20. चिता :  मृत्युशय्या
21. चिति : चेतना
22. सर्वमन्त्रमयी : सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता : सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानन्दस्वरूपिणी : अनन्त आनंद का रूप
25. अनन्ता :  जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं
26. भाविनी :  सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत
27. भाव्या :  भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या :  कल्याणरूपा, भव्यता के साथ
29. अभव्या  : जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति :  हमेशा गति में, मोक्ष दान
31. शाम्भवी :  शिवप्रिया, शंभू की पत्नी
32. देवमाता : देवगण की माता
33. चिन्ता : चिन्ता
34. रत्नप्रिया : गहने से प्यार
35. सर्वविद्या : ज्ञान का निवास
36. दक्षकन्या : दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी : दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा : तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा : अनेक रंगों वाली
40. पाटला : लाल रंग वाली
41. पाटलावती : गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली
42. पट्टाम्बरपरीधाना : रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी : पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय : जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा : असीम पराक्रमी
46. क्रूरा : दैत्यों के प्रति कठोर
47. सुन्दरी : सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी : अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा : जंगलों की देवी
50. मातंगी : मतंगा की देवी
51. मातंगमुनिपूजिता : बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी : भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी : प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री : इन्द्र की शक्ति
55. कौमारी : किशोरी
56. वैष्णवी : अजेय
57. चामुण्डा : चंड और मुंड का नाश करने वाली
58. वाराही : वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी : सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति : वह जो पुरुष धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी : आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना : ज्ञान से भरी हुई
63. क्रिया : हर कार्य में होने वाली
64. नित्या : अनन्त
65. बुद्धिदा : ज्ञान देने वाली
66. बहुला : विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा : सर्व प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना : सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी : शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि : महिषासुर का वध करने वाली
71. मधुकैटभहंत्री : मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि : चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा : सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी : संहार के लिए शक्ति रखने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी : सभी सिद्धांतों में निपुण
76. सत्या : सच्चाई
77. सर्वास्त्रधारिणी : सभी हथियारों धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता : हाथों में कई हथियार धारण करने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी : अनेक हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी : सुंदर किशोरी
81. एककन्या : कन्या
82. कैशोरी : जवान लड़की
83. युवती : नारी
84. यति : तपस्वी
85. अप्रौढा : जो कभी पुराना ना हो
86. प्रौढा : जो पुराना है
87. वृद्धमाता : शिथिल
88. बलप्रदा : शक्ति देने वाली
89. महोदरी : ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी : खुले बाल वाली
91. घोररूपा : एक भयंकर दृष्टिकोण वाली
92. महाबला : अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला : मार्मिक आग की तरह
94. रौद्रमुखी : विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा
95. कालरात्रि : काले रंग वाली
96. तपस्विनी : तपस्या में लगे हुए
97. नारायणी : भगवान नारायण की विनाशकारी रूप
98. भद्रकाली :  काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया : भगवान विष्णु का जादू
100. जलोदरी : ब्रह्मांड में निवास करने वाली
101. शिवदूती : भगवान शिव की राजदूत
102. करली   : हिंसक
103. अनन्ता : विनाश रहित
104. परमेश्वरी : प्रथम देवी
105. कात्यायनी : ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय
106. सावित्री : सूर्य की बेटी
107. प्रत्यक्षा : वास्तविक
108. ब्रह्मवादिनी : वर्तमान में हर जगह वास करने वाली




गौरी मंत्र लायक पति मिलने के लिए

" हे गौरी शंकरधंगी ! यथा तवं शंकरप्रिया,
तथा मां कुरु कल्याणी ! कान्तकान्तम् सुदुर्लभं "

दुर्गासप्तशइ के अदबुध मंत्र

सब प्रकार के कल्याण के लिये

“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

धन के लिए मंत्र

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥”

आकर्षण के लिए मंत्र

“ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,
बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति "

विपत्ति नाश के लिए मंत्र

“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”

शक्ति प्राप्ति के लिए मंत्र

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

रक्षा पाने के लिए मंत्र

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मंत्र

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

भय नाश के लिए मंत्र

“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥

महामारी नाश के लिए मंत्र

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिए मंत्र

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

पाप नाश के लिए मंत्र

हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिए मंत्र

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥





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सोमवार, 24 जुलाई 2017

श्री दुर्गा चालीसा







































  

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|| श्री दुर्गा कवच ||





हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में !!
हर इक का कर सकता जो उपकार है !
जिसे जपने से बेडा ही पार है !!
पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का !
जो हर काम पूरे करे सवाल का !!
सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ !
मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ !!
कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना !
जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता !!
नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये !
उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
पहली शैलपुत्री कहलावे !
दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे !!
तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम !
चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम !!
पांचवी देवी अस्कंद माता !
छटी कात्यायनी विख्याता !!
सातवी कालरात्रि महामाया !
आठवी महागौरी जग जाया !!
नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने !
नव दुर्गा के नाम बखाने !!
महासंकट में बन में रण में !
रुप होई उपजे निज तन में !!
महाविपत्ति में व्योवहार में !
मान चाहे जो राज दरबार में !!
शक्ति कवच को सुने सुनाये !
मन कामना सिद्धी नर पाए !!
चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार !
बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
हंस सवारी वारही की !
मोर चढी दुर्गा कुमारी !!
लक्ष्मी देवी कमल असीना !
ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा !!
ईश्वरी सदा बैल सवारी !
भक्तन की करती रखवारी !!
शंख चक्र शक्ति त्रिशुला !
हल मूसल कर कमल के फ़ूला !!
दैत्य नाश करने के कारन !
रुप अनेक किन्हें धारण !!
बार बार मैं सीस नवाऊं !
जगदम्बे के गुण को गाऊँ !!
कष्ट निवारण बलशाली माँ !
दुष्ट संहारण महाकाली माँ !!
कोटी कोटी माता प्रणाम !
पूरण की जो मेरे काम !!
दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ !
चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ !!
कहो जय जय जय महारानी की !
जय दुर्गा अष्ट भवानी की !!
अग्नि से अग्नि देवता !
पूरब दिशा में येंदरी !!
दक्षिण में वाराही मेरी !
नैविधी में खडग धारिणी !!
वायु से माँ मृग वाहिनी !
पश्चिम में देवी वारुणी !!
उत्तर में माँ कौमारी जी!
ईशान में शूल धारिणी !!
ब्रहामानी माता अर्श पर !
माँ वैष्णवी इस फर्श पर !!
चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो !
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
सन्मुख मेरे देवी जया !
पाछे हो माता विजैया !!
अजीता खड़ी बाएं मेरे !
अपराजिता दायें मेरे !!
नवज्योतिनी माँ शिवांगी !
माँ उमा देवी सिर की ही !!
मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी !
भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका !!
काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी !
नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो !!
संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो !!
ऊपर वाणी के होठों की !
माँ चन्द्रकी अमृत करी !!
जीभा की माता सरस्वती !
दांतों की कुमारी सती !!
इस कठ की माँ चंदिका !
और चित्रघंटा घंटी की !!
कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की !
माँ मंगला इस बनी की !!
ग्रीवा की भद्रकाली माँ !
रक्षा करे बलशाली माँ !!
दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी !
दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी !!
शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी !
जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी !!
हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की !
गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की !!
घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी !
टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी !!
रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर !
आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर !!
बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान !
सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान !!
धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन !
तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण !!
आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार !
ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार !!
विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल !
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल !!
भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश !
मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश !!
यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये !
कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए !!
है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान !
लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान !!
मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए !
कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये !!
ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य !
यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया !!
रहा आज तक था गुप्त भेद सारा !
जगत की भलाई को मैंने बताया !!
सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित !
है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया !!
चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो !
सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया !!
जो संसार में अपने मंगल को चाहे !
तो हरदम कवच यही गाता चला जा !!
बियाबान जंगल दिशाओं दशों में !
तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा !!
तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में !
कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा !!
निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे !
चमन पाव आगे बढ़ता चला जा !!
तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा !
तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए !!
यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा !
यही तेरे सिर से हर संकट हटायें !!
यही भूत और प्रेत के भय का नाशक !
यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये !!
इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर !
जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए !!
इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे !
कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे !!
श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम !
सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम !!
कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ !
तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण !!
!! जय माता दी !!


दुर्गा कवच मार्कंडेय पुराण से ली गई विशेष श्लोकों का एक संग्रह है और दुर्गा सप्तशी का हिस्सा है। नवरात्र के दौरान दुर्गा कवच का जाप देवी दुर्गा के भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है।
अतः देव्याः कवचं
ओम अस्य श्री चांदी कवचस्य
ब्रह्मा रिशहिह अनुषःतुफ छन्दाह चामुण्डा देवता ,
अङ्गन्या सोकतंात्रो बीजमह दिग्बंध्ा देवता स्तत्त्वमाह
श्री जगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशती पाठांगत्वेन जापे विनियोगः

मार्कण्डेय उवाचा
ओम याद_गुह्यं परमम् लोके सर्वा रक्षाकरम नृणामः।
यांना कस्या _छिड़ा _ख्यातम् तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १॥

ब्रह्मो वाच
अस्ति गुह्यतमं विप्रा सर्वभूतोपक्का _रकमः।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तक्षिणुष्वा महामुँमे ॥ २ ॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्र घंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकामः ॥ ३ ॥

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठम कात्यायनीति चा।
सप्तमं कालरात्रीति महा गौरीति चाष्टममाह ॥ ४ ॥

नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उकताकण्येतानी नामानि ब्रह्मा _नैव महात्मांना ॥ ५ ॥

अग्निना दहा _ मानस्तु शत्रुमध्ये गतो रा_ने।
विषमे दुर्गमे चैवा भयार्ताः शरणम गताः ॥ ६॥

ना तेश्हां जायते किंचिदशुभम रणसँ_कते।
नापदम् तस्या पश्यामि शोकदुःखा _भयं न ही ॥ ७ ॥

ये त्वां स्मरन्ति देवेशि राक्षस ताना संस्षायाः ॥ ८॥
प्रेता _संस्था तू चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गाजा _समा _रूढा वैशहनावी गरुडासना ॥ ९॥

माहेश्वरी वृध्हारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥ १० ॥

श्वेतरूपा_धारा देवी ईश्वरी वृषः_वाहना।
ब्राह्मी हंसा_समारूढा सर्वा भरना भूष हिता ॥ ११ ॥

इयत्ता मातरः सर्वाः सर्वयोगा समन-विताः।
नाना_भरना_शोभागःया नाना_रत्नो पशो_भीताः ॥ १२॥

दृतीयन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधा_समा_कुलाह।
शङ्खं चक्रम गदाम शक्तिं हलम चा मुसलायुधमा ॥ १३॥

खेटकम टिमरन चैव परशुम् पाशमेवा चा।
कुन्तायुधम् दत्रिशूलं चा शाराम_आयुध_मुत्तमम् ॥ १४॥

डैयानाम देहनाशाय भक्ता_नामा_भयाया चा।
धारयन्त्या_आयुधा_नीथम देवानं चा हिताया वाई ॥ १५ ॥

नमस्तेअस्तु महारौद्रे महा_घोरा_पराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महा_भयविनाशिनी ॥ १६॥

त्राहि माँ देवी दुषःप्रेक्ष्ये शत्रूणां भयावर_धिनि।
प्राचाहयाम रक्षतु माँ_मैंड्री आग्नेय_या_अग्नि_देवता ॥ १७ ॥

दक्षिणावतु वाराही नैऋत्यां खड़गे_धारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेदा वायव्यां मृगा_वाहिनी ॥१८॥

उदच्याम् पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्तादा वैशहनावी तथा ॥ १९॥

एवं दशा दिशो रक्षेच_चामुण्डा शव_वाहना।
या में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ह्ठताः ॥ २०॥

अजिता वामे पार्श्वे तू दक्षिणे चापराजिता।
शिखामु_द्योतिनी रक्षेदुमा मूर्धिनी व्यवस्थिता ॥ २१||

मालाधारी ललाटे चा भ्रुवौ रक्षेद यहस्विनी।
त्रिनेत्रा चा भ्रुवोर_मध्ये यम_घंटा चा नासिक ॥ २२॥

शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्र्डवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तू शांकरी ॥ २३॥

नासिकायाम् सुगंधा चा उत्तरोष्ठे चा चर्चिका।
अधारे चामृतकला जिह्वा_याम चा सरस्वती ॥ २४॥

दंताना रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तू चण्डिका।
घंटिकाम चित्र_घंटा चा महा_माया चा तालुके ॥ २५॥

कामाक्षी चिबुकम रक्षेदा वाचं में सर्वमंगला।
ग्रीवायाम् भद्रकाला चा पृश्ह्टः_वंशे धनुर_धारिणी ॥ २६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकाम नलकूबरी।
स्कन्धयोः खादिगणी रक्षेदा बाहु में वज्रधारिणी ॥ २७॥

हसयोर्दान_दिनी रक्षेद_अम्बिका चांगुलेशहु चा।
नखाज्ञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेताकुलेश्वरी ॥ २८॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये लेता देवी उदरे शूलधारिणी ॥ २९॥

नाभौ चा कामिनी रक्षेदा गुह्यं गुह्येश्वरी तःथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुंडे महिष्हावाहिनी ॥ ३० ॥

कैयानम भगवती रक्षेज्जानूनी विंध्य_वासिनी।
जांघे महाबला रक्षित_सर्वकामना_प्रदायिनी || ३१॥

गुल्फा_योर्नारसिंही चा पाद_परिष्ह्ठे तू तैजसी।
पादांगुलेशहु श्री रक्षित_पादादहतदसक्साला_वासिनी ॥ ३२ ॥

नखाना दंशहतृकारली चा केशांश्चैवोधर्वकेशिनी।
रोमा_कूपेशहु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तःथा ॥ ३३ ॥

रक्तमा_इजावा_सामान_सां_यस्थि_मेडन्सी पार्वती।
अंतरानी काला_रात्रिश्चा पित्तं चा मुकुटेश_वारी ॥ ३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कैफे छू_डामणिस_तथा।
ज्वालामुखी नखा_ज्वाला_मभेद्या सर्वसन्धिषहु ॥ ३५ ॥

शुक्रम् ब्राह्मणी में रक्षेच्अच्छायाम् छत्रेश्वरी तःथा। अ
हंकाराम मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥ ३६ ॥

वज्रा_हस्ता चा में रक्षेत्प्राणाम् कल्याणशोभना ॥ ३७॥
रासे रुपए चा गन्धे चा शब्दे स्पर्शे चा योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥ ३८॥

आयु रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं चा लक्ष्मीं चा धनम विद्याम चा चक्रिणी ॥ ३९॥
गोत्रमिन्द्राणी में रक्षेत्पशूमे रक्षा चण्डिके।
पुत्राना रक्षण_महा_लक्ष्मी_भार्यां रक्षतु भैरवी ॥ ४०॥

पंथनम सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तःथा।
राजद्वारे महा_लक्ष्मी_विजय सर्वतः स्थिता ॥ ४१॥

रक्षा_हीनं तू यत्स्थानम् वर्जितम् कवचेन तू।
तत्सर्वं रक्षा में देवी जयन्ती पापनाशिनी ॥ ४२॥

पडम्ेकम न गछछेत्तु यदीच्छेच्च्छुभमात्मनः।
कवचेनावृता नित्यं यात्रा यत्रैवा गच्छति ॥ ४३॥
तत्रा तत्रा_अर्था_लाभश्चा विजयः सार्व_कामिकः।

यम यम चिन्तयते कमम तम तम प्राप्नोति निश्चितम् परमेश_वर्य_मतुलम
प्राप्स्यते पुमाना ॥ ४४॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रा_मेष्ह्व_पराजितः।
त्रैलोक्ये तू भवेत्_पूज्यः कवचे_नावृितः पुमाना ॥ ४५॥

इदं तू देव्याः कवचं देवा_णाम्पई दुर्लभमा।
यह पथप्ररतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितं ॥ ४६॥

दैवी काल भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्ह्व_पराजितः।
जीवड़ा वर्षहषतम संग्राम_पमृत्युवि_वर्जितः ॥ ४७ ॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लुटाविस्फोटकादयः।
स्थावरम जंगमं चैव कीर्तिमं चापि यद्विषहमा ॥ ४८॥

अभी_चारानी सर्वाणि मंत्र_यन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥ ४९ ॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तःथा।
अन्तरिक्षचार्रा घोरा डाकिन्यश्चा महाबलः ॥ ५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्चा यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षस_इटालाः कुश्ह्माण्डा भैरवादयः ॥ ५१॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे ह्रीदय संस्थिते।
मानोन्नति_भवेदा राज्ञस्तेजोवृद्धिकरम परम ॥ ५२॥
यशसा वार्ड_धरते सोअपि कीर्ति मण्डितभूतले।
जपेतासप्तशतीं चण्डीं कृितवा तू कवचं पूरा॥ ५३॥

यावद्भूमण्डलम् धत्ते सशैलवनकानमा।
तावत्तिष्ह्ठती मेदिन्याम सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी ॥ ५४ ॥

देहान्ते परमम् स्थानं यतस्रैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महमाया प्रसादतः ॥ ५५॥
लभते परमम् रूपम शिवना सहा मोदते ॥ ॐ ॥ ॥ ५६॥







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