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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

@#अवचेतन मन #Subconscious Mind Power लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की शक्तियाँ | Law of Attraction - Various Techniques Explained


अवचेतन मन  -6

-अवचेतन मन जागृत करने के नियम ।

- हमारे दिमाग के दो हिस्से होते हैं जिन्हें चेतन मन और अवचेतन मन कहा जाता है।

- चेतन मन वह अवस्था है जिसमें हम सोच-विचार  और तर्क के आधार पर किसी भी कार्य को करने का निर्णय लेते हैं ।

-अवचेतन मन में हमारे सारे विचार, अनुभव और मान्यताएं जमा रहती हैं।

-दिमाग के इन दोनों हिस्सों के अंतर को समझने के लिए आप साइकिल चलाने का उदाहरण ले सकते हैं।

-साइकिल सीखते समय आप  चेतन मन से काम में ले  रहे थे । कई  बार गिरे, सम्भले, बेलेन्स बनाने का अभ्यास  किया  । अब बिना सोचे साइकिल चलता  रहता है, अपने आप मुड़ता  रहता है, अपने आप  ब्रेक लग  जाती है । हमारी टांगे अपने आप साइकिल को घूमाती   हैं । ये सब अवचेतन मन करता है ।

-शरीर में होने वाली सभी स्वचालित गतिविधियां सांस लेना और दिल का धड़कना भी अवचेतन मन  के द्वारा होता है।

-अवचेतन मन रोबोट है  जिसकी प्रोग्रामिंग चेतन मन द्वारा की जाती है और चेतन मन द्वारा की गयी प्रोग्रामिंग के अनुसार स्वचालित तरीके से कार्य करता रहता है | अगर हम चाहे तो अपने अवचेतन मन में वो सभी बातें डाल सकते हैं जिन्हें हम सच होता हुआ देखना चाहते हैं।

-कंप्यूटर  की  तरह  अवचेतन मन की मनचाही प्रोग्रामिंग करके मनचाहे परिणाम पाए जा सकते हैं।

-अवचेतन मन में किन विचारों को जाने दिया जाये और किन विचारों को जाने से रोका जाए क्योंकि बार बार दोहराया गया विचार अवचेतन मन में स्थायी हो जाता है और हमारा ये अवचेतन मन उसे सच करने में जुट जाता है, वो विचार सही हो या गलत, इससे अवचेतन मन अप्रभावित रहता है।

-ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा ट्रांसमीटर है हमारा अवचेतन मन है  और इसी के कारण टेलीपैथी भी संभव हो पाती है।

-अवचेतन मन की अपार और असीमित शक्तियों के कारण ही दुनिया में इतने महान आविष्कार और खोजें संभव हो सकी हैं  ।

- अपार शक्ति का ये स्रोत हर इंसान के पास है।

-अवचेतन मन को जगाना बेहद आसान है । अवचेतन मन को कैसे जगाये ।

 नियम –1

-रिपीट करना

 -कोई भी बात या कार्य दोहराते रहने से,  वह अवचेतन मन का हिस्सा बन जाता है। 

-आप अपने जीवन में जिस तरह के सुधार या बदलाव चाहते हैं, जिस स्तर की सफलता हासिल करना चाहते हैं, जिस तरह के सामर्थ्य और क्षमता की अपेक्षा खुद से करते हैं  ।

-उन्हे अपने मन में दोहराते रहिये और ऐसा करते समय ध्यान रखिये कि शक्तिशाली विचार ही अवचेतन मन में अपनी जगह बना सकते  हैं ।

-इसलिए विचार का दृढ़ होना बेहद ज़रूरी है और पूरे यकीन के साथ स्पष्ट तरीके से दोहराया गया विचार निश्चित रूप से सच का रूप ले लेगा क्योंकि ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसे पूरा करना अवचेतन मन की सामर्थ्य से बाहर हो।

- उन विचारों का वर्तमान काल में दोहराया जाना भी ज़रूरी है।

-हम पहली क्लास में इक्ठे हो कर गिनती और पहाड़े जोर जोर से बोल कर दोहराते थे । वह हमें आज तक याद है और सोचते ही हम गणना बता देते है । ये अवचेतन मन की कमाल है ।

-छोटे  बच्चे को कहो बाजार से 5 रुपये की चीनी और पाँच रुपये की हल्दी लाओ तो वह भागते हुये जायेगे  और बोलते जायेंगे  5 रुपये की चीनी, 5 रुपये की हल्दी और दुकान पर पहुंचते  पहुंचते  भूल जायेंगे । क्योंकि अभी उनके अवचेतन में ये चीजे जल्दी से जाती नहीं इस लिये बोलते जाते है ।

- इंग्लिश का कोई मुश्किल  शब्द हो तो उसे हम 10, 50 या 100 बार दोहराते हैं  लिखते हैं  तो वह  हमें याद हो जाता है ।

- विद्यार्थी  रटा  लगाते हैं  । सप्ताह में या महीने में पिछले चेप्टर्स को रिवाइज करते हैं या। ऐसे सारा  ज्ञान अवचेतन में चला  जाता है ।

नियम – 2

-कल्पना करना

-अवचेतन मन सच और कल्पना में अंतर करना नहीं जानता ।  इसलिये कोई कार्य आपको असंभव लगता हो और  उसे आप  कल्पना में   दोहराते रहें तो आपका  अवचेतन मन उसे सच में बदल देगा ।

-आलस्य आता  है तो मन में अपने को चुस्त रुप में देखते रहो और दोहराते रहो चुस्त चुस्त तो आप चुस्त बन जायेंगे ।

-लेखक बनना चाहते  है तो कल्पना में अपने को लेखक  के रुप में देखो और  दोहराते रहो लिखता  हूं लिखता हूं लिखता  हूं लिखता  हूं । आप लेखक  बन जायेंगे ।

-क्लास में फर्स्ट आना  चाहते  है तो मन में दोहराते रहो  मै फर्स्ट आऊंगा   फर्स्ट आऊंगा और आप सचमुच फर्स्ट आयेगें ।

-कल्पना और सागर मेंं तूफान

-जल का एक नियम यह है कि   उसके  प्रत्येक क्षेत्र पर समान रूप से दबाव पड़ता है ।

-पानी के दो टैंक लो ।

-एक टेंक  का क्षेत्रफल इतना है कि उसके अंदर एक लीटर   पानी भरता  है और दूसरे टैंक मेंं 100 लीटर  पानी भरता है ।

-दोनो टैंको  को एक पाइप से जोड़  दो ।

-एक लीटर वाले टैंक के ऊपर एक किलो का भार रख दो तॊ यह भार दूसरे  टैंक वाले पानी को ऊपर उठाएगा ।

-दोनो टैंक के पानी का धरातल बराबर करने के लिये हमें दूसरे टेंक  पर 100 किलो का बोझ रखना  पड़ेगा तब दोनो टैंक्स मेंं पानी का धरातल बराबर होगा  ।

-इसका कारण यह है  कि पहले टैंक मेंं  एक लीटर  पानी पर जो दबाव डाला  है वह दूसरे टैंक के  प्रत्येक लीटर  पानी पर समान  दबाव डालता है ।  क्योकि दूसरे  टैंक का पानी 100 लीटर हैँ ।  इसलिए यह अपने ऊपर रखें 100 किलो बोझ को उठा देगा ।

-अगर दूसरे टैंक का  क्षेत्रफल  1000 लीटर,  दस हजार,  50 हजार या  1 लाख लीटर पानी  हो  तॊ

-अब पहले एक लीटर वाले टैंक पर हम एक किलो भार रखें ।

-तॊ दूसरी तरफ वाले टैंको की  केपेसिटी  के अनुसार  1000 किलो,  दस हजार,  50 हजार या एक लाख किलो बोझ को उठा देगा ।

-इसी सिद्वांत  पर हाइड्रोलिक यंत्र बनाए जाते हैँ जिस से हम भारी भरकम गाड़ियां  उठाते हैँ  ।

-प्रत्येक व्यक्ति मेंं लगभग 40 लीटर पानी है । 

-पानी के ऊपर विचारों या कल्पनाओ का सब से ज्यादा  असर होता है । 

-वर्तमान समय अधिकतर लोग नकारात्मक कल्पनाएं करते रहते हैँ  जिस से प्रत्येक व्यक्ति मेंं स्थित जल पर असर हो रहा है  और इस जल स्तर का प्रभाव  समुन्दर पर ईथर के माध्यम से होता रहता है ।  करोडो लोगो की नकारात्मक तरंगे समुन्दर को ऊपर उठाती हैँ जिस से समुन्दर  मेंं गहरे तल पर एक  भंवर बन जाता है ।

-यह भंवर एक तूफान का रूप ले लेता हैँ ।  तूफान भयंकर तोड़ फोड़ कर देता है जिस से प्रभावित लोग अपने नकारात्मक विचार छोड़ कर बचने का सोचते हैँ और भगवान से  प्रार्थना करने लगते हैँ तथा  दूर दराज के लोग तूफान से बचाव के लिये धन व अन्य चीजे इक्ठी  करते हैँ  ।  इस तरह सारे संसार के लोगो के नकारात्मक विचार रुक जाते हैँ  ।  जिस से  तूफान भी थम जाता हैँ ।

-तूफान के बाद भी दुनिया के विचार अच्छे रहते हैँ क्योकि तूफान पीड़ित लोगो को   स्थपित करने के लिये समाज और सरकार कल्याणकारी  कार्य करते और सोचते रहते हैँ ।

-जब फिर दुनिया मेंं नकारात्मक कल्पनाओ से दबाव बढ़ता  हैँ  तॊ सागर मेंं सुनामी या तूफान आते हैँ ।

-इसलिए सदा मन मेंं कल्याणकारी कल्पनाएं करते रहें ताकि तूफान ना आएं । 


अपने मानसिक जगत में "स्वयं" उपस्थित रहना पर्याप्त है।'
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एक वे लोग हैं जिनके लिये स्वयं सब कुछ है,स्वयं से भिन्न कहीं कुछ नहीं।एक वे हैं जिनके लिये सब मानसिक है,मनोमय है।एक वे हैं जिनके लिये कुछ मानसिक है,कुछ बाहरी है।एक वे हैं जिनके लिये सब कुछ बाहर ही है,बाहरी ही है।
इनमें हम कौन से हैं?
सब बाहर है तो मुश्किल है।थोडा बाहर,थोडा मानसिक है तो कोशिश की जा सकती है।कोशिश यही कि हम जानें सब मानसिक है,या कुछ समय निकाल कर अपने मानसिक जगत में "स्वयं" उपस्थित रहने की कोशिश करें।हम अपने मन में "स्वयं" उपस्थित नहीं रहते क्योंकि मन,बाह्य जगत का भ्रम उत्पन्न करता है।हमें वह भ्रम नहीं, वास्तविक लगता है और वास्तविक मानने से हमारे स्वार्थ उससे जुडे होते है।चित्त बंट जाता है।या कहें हम ही बंट जाते हैं।
जब हम स्वयं सचमुच अपने मानसिक जगत में उपस्थित रहने लगते हैं,मानसिक जगत बिखरने लगता है।स्वस्थता घटने लगती है,अखंडता छाने लगती है।तब हमारा शरीर,अन्य शरीरों की तरह उपस्थित रहता है परंतु निर्विचार स्वस्थता का,अखंडता का बहुत प्रभाव होता है।लोगों से सीधे रचनात्मक, सकारात्मक संबंध बनते हैं।अभी संबंध मन से बने हुए हैं।मन में जिसकी जैसी छबि,जैसी इमेज वैसा व्यक्ति से संबंध।यह संबंध है ही नहीं।संबंध तो हितकारी ही सही है।स्वस्थ,प्रेमपूर्ण ही सही है।
हम मन के हिसाब से संबंध न बनायें तो कुछ हो।
हम मन से क्यों संबंध बनाते हैं?क्योंकि वही प्रभावी है।मन मालिक बना बैठा है।हमारा तो कहीं कुछ पता ही नहीं।पता लगाना पडे अन्यथा हम सुखी नहीं हो सकते।
सुखी तभी होंगे जब हम जान लेंगे कि यह सृष्टि पूरी तरह से मानसिक है।जैसी सृष्टि वैसा मन नहीं, जैसा मन वैसी सृष्टि।जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।
"दृष्टि ही सृष्टि है।"
तो हमारी जैसी दृष्टि है वैसी बनी सृष्टि में-मानसिक सृष्टि में हमको स्वयं को उपस्थित रहना है।अभी हम मानसिक सृष्टि को बाहरी सृष्टि मानते हैं इसलिए मानसिक सृष्टि से बहुत बचते हैं।
हर आदमी बचाव करता नजर आता है।वह वस्तुतः अपनी मानसिक सृष्टि से ही बचाव खोजता फिरता है।हाल बेहाल है।यदि वह इसे जानले तो समझ में आ जायेगा कि अपनी ही बनाई अपनी मानसिक सृष्टि से भागकर कहां जाया जा सकता है?
"If the objects have an independent existence,i.e.,if they exist anywhere apart from you,then it may be possible for you to go away from them.
But they don't exist apart from you;they owe their existence to you,your thought.
So where can you go to escape them?"
इसलिए जरूरी है कि अपनी मानसिक सृष्टि कैसी भी लगे अच्छी या बुरी,हम निर्भय होकर स्वयं अपनी उस मानसिक सृष्टि में उपस्थित रहें।यह हो सके तो मानसिक सृष्टि बिखरने लगेगी,दूसरे अर्थों में बाहरी सृष्टि बिखरने लगेगी क्योंकि मानसिक सृष्टि ही बाहरी सृष्टि बनी हुई है।बाहरी समझकर हम स्वयं को बचा रहे थे।मानसिक जान स्वयं उपस्थित रहते तो कभी की स्वतंत्रता घट गयी होती।
इसके लिये हिम्मत की भी जरूरत कहां है,सब मानसिक खेल है।
बाहरी सृष्टि मानने से सुख के लिये उस पर निर्भरता उत्पन्न होती है,सुख की इच्छा उत्पन्न होती है इसलिए कृष्ण इंद्रियों से परे मन,मन से परे बुद्धि और बुद्धि से भी अत्यंत परे आत्मा(स्वयं)को जानने के लिये कहते हैं।
कहां महान आत्मा(स्वयं)और कहां मन और इंद्रियों-आंखकान आदि के रागद्वेष।अपनी स्थिति को पहचानना चाहिए।
हम अहंकार के रुप में किसीके अधीन नहीं रहना चाहते मगर आत्मा(स्वयं)के रुप में किसीके अधीन न रहने का कुछ पता नहीं।
अहंकार तो तत्काल अनुकूलता के अधीन होजाता है जबकि आत्मा अनुकूल या प्रतिकूल किसीके अधीन नहीं होता।स्वयं सदा सर्वतंत्र स्वतंत्र है जानें तो।नहीं जानने पर अनिच्छित अधीनता बनी रहती है।
स्वयं पूरी तरह से स्वतंत्र है या हो सकता है।यह हकीकत है फिर भी व्यक्तिगत है।कुछ लोग जो मेरा सत्संग बराबर पढते हैं वे कभी सांसारिक रागद्वेष की बात करते हैं तो विचार आता है इतने दिन ये क्या पढ रहे थे।इन्हें समझ में तो कुछ आया ही नहीं।तब लगता है हमारा सत्य का अनुभव अपने आपमें रहना चाहिए, केंद्रस्थ रहना चाहिए।किसीको समझ में आया तो ठीक,न आया तो ठीक यह उसका विषय है,अपना विषय नहीं होना चाहिए।अपना विषय तो यही कि हम स्वयं अपने इस मानसिक जगत में उपस्थित रहें ताकि इसका  तथाकथित बाहरी रुप पूरी तरह से बिखर सके।
हमारी स्वस्थता,अखंडता का घटना पर्याप्त है।हम आंतरिक, बाहरी में बंटे हुए नहीं हैं तो फिर सब ठीक है।हम मुक्त हुए।

अवचेतन मन -4

- हर घंटे, हर पल आप बेहतरीन सेहत, सफलता और खुशी का निर्माण कर सकते है ।

-मन में भिन्न  भिन्न  दृश्यों की कल्पना जो हम साधारण रुप से करते रहते है, यह न  हो जायें, वह न  हो जायें  और  वही  हो जाता  है ।

-आप की आखिरी इच्छा अवचेतन मन पूरी करता है ।

-आप का दोस्त से झगडा हो गया और आप सोचते  हैं अब हमारी कभी नहीं बनेगी तो सच में आप की कभी नहीं बनेगी । अगर आप सोचते हैं  आप की फिर आपस में  बन जायेगी तो आप की फिर मित्रता   हो  जायेगी ।

-ऐसे ही जीवन में जो भिन भिन  चेलेंज आते हैं  उस समय आखिरी शब्द क्या गूँजता है । मै मरूगा, मै फसूगा, मुसीबत पड़ेगी, बुरे  दिन आयेंगे, विरोधी बढेगे, कड़की  आयेगी अगर ये आप के अंतिम शब्द मन में गूंजते  है  तो अवचेतन मन  आप को यही सब कुछ  हकीकत में दे  देगा ।

-अगर आखिरी शब्द मै  जिऊगा , सेहत ठीक हो जायेगी, खुशहाली आयेगी, मेरी जीत होगी, मै सफल होऊगा,  मुझे भरपूर प्यार और सत्कार  मिलेगा तो अवचेतन मन सच में यही आप को देगा ।

-इस लिये शांति, खुशी, सदभावना के अहसास से हर पल  नया ब्लू प्रिंट बनाये ।

-अवचेतन मन की शक्ति सीधी   प्रतिक्रिया करती है । अगर आप रोटी माँगे तो पत्थर नहीं मिलेगा । मन विचार  से वस्तु की ओर चलता  है ।

-चेतन मन की गति विधि  पर गहरा ध्यान दो ।

-आप स्थूल आँख से वही  देख सकते हैं  जो संसार में पहले से मैजूद है ।

-ऐसे ही मन की आँख से जो तस्वीर देख सकते हैं  वह मन के अदृश्य क्षेत्रों में पहले  से ही मैजूद होती है ।

-विचार  वास्तविक होते हैं  और आप की दुनियां में परिवर्तन ला देते हैं  ।

-जो बात आप को गहरे तल पर जँच  जाती  है, जिसे हम लोरी की तरह दोहराते रहते हैं , वह काम होने  लगता है । उसके खरीददार  और बेचने वाले आकर्षित हो कर एक दूसरे के समक्ष आ जाते है ।

-90% से अधिक  मानसिक जीवन अवचेतन है । अगर हम इस शक्ति का  उपयोग  नहीं करेगें तो सधारण जीवन जियेंगे ।

-अवचेतन  मन मास्टर मेकेनिक है । बहुत समझदार है । आप के शरीर को ठीक करने के ढंग व  रास्ते जानता है । सेहत का आदेश दे  तो सेहत का निर्माण कर देगा । लेकिन इस काम को आराम से करने की जरूरत है । मन की यह  शक्ति पढ़ने से जागृत होगी ।  इसलिए जब तक जीवित हैंं पढ़ना नहीं छोड़ना ।

-सोच  सोच  कर हताश होने की जरूरत नहीं । अंतिम  परिणाम सुखद समाधान अनुभव करते रहो वह  चाहे सेहत  हो, चाहे पैसे या व्यवहार से सम्बन्धित हो  या आध्यात्मिक जीवन हो या योगी जीवन हो ।

-इस पल आप क्या सोच  रहे हैं , आप के साथ क्या घट रहा है, बस उस विचार को पॉज़िटिव विचार  में बदल दो, जो घट रहा है वह नहीं, जो आप चाहते  है वह सोचो, जस्ट  रिपीट करो और उसे कल्पना में देखो ।

 अवचेतन मन -3

-विचार  अपने  स्तर पर उतना ही वास्तविक है जितना  कि आप का हाथ या हृदय ।

-आप जमीन में  निशचित प्रकार के बीज बोते है तो आप को उसी चीज़ का  फल मिलेगा, जिसका बीज आप ने बोया  है ।

- जिस विचार को आप का चेतन मन पूरी तरह स्वीकार कर लेता है, वह आप के अवचेतन मन में    साकार रुप में   प्रकट होगा ।

-ईश्वर की  याद से बीमारियों के उपचार सम्बन्धी विचार  धारा किसी को न  बताये ।  अगर लोगो को बताते हैं तो अविश्वास करने वाले लोग संदेह  करते है और अपमान जनक आलोचना कर के  स्ताते  हैं  । जिस से मनोबल टूटता  है ।

- आन्तरिक मानसिक बदलाव से उपचार अपने आप हो जाता है ।

-आप  की  समस्या या बीमारी, चाहे जो भी  हो, आप के अवचेतन मन में रहने वाले भयाक्रांत और नाकारात्मक विचारो के कारण उत्पन्न  हुई हैंं । इन विचारो की  सफाई कर दो तो आप ठीक हो  जायेंगे ।

-आप की प्रार्थना या ध्यान में किये गये विचार  भगवान तक पहुंच  जाते हैं ।

-मस्तिष्क के आगे समय या स्थान का कोई महत्व नहीं है ।

-शांति महसूस करते ही शरीर की हर कोशिका से शांति की धारा  प्रवाहित होने लगती है ।

- अपनी बीमारी के बारे बोलना बंद करो या उनका नाम न ले । खासतौर पर सोने से  ठीक पहले के घंटों में । उन्हे  जिस एक मात्र स्त्रोत से जीवन मिलता है, वह है आप का डर और आप का ध्यान ।

-हमें अपना सर्जन आप बनना है । यदि आप लगातार अपने दर्द और लक्षणों की रट  लगाये रखते हैं  तथा  उनके बारे बात करते हैं  तो  उनकी शक्ति बढा  देते हैं  फिर कहते हैं  वही चीज़ हो गई जिसका डर था ।

-अपने मस्तिष्क में जीवन की महान सचाईया  लबालब भर  लें और फिर प्रेम की रोशनी की ओर बढे । बीमारी या नुकसान या चोट पहुचाने  वाली किसी चीज़ में विश्वास   करना मूर्खता है ।

-सम्पूर्ण स्वास्थ्य, समृध्दि, शांति, दौलत और दैवी मार्ग दर्शन में विशवास  करें ।

-नया घर  बना रहे हैं  तो आप उसकी ब्लू प्रिंट में गहरी रुचि लें । भवन निर्माता आप के ब्लू प्रिंट का अक्षरशः पालन करेगा ।

-इतना ही ध्यान मानसिक घर  पर रखो ।  खुशी और समृध्दि का ब्लू प्रिंट तैयार  करें । मानसिक ब्लू प्रिंट डर, चिंता व तनाव का कभी न हो ।

-अगर आप निराश, शंकालु और दोषदर्शी  हैं  तो आप के जीवन में थकान, शंका, तनाव, चिंता सभी तरह की परेशानियां  दिखाई  देगी ।

-आप हर समय मानसिक घर  बना रहे हैं और आप के विचार  ब्लू प्रिंट हैं ।

 -कल्पना और पांच तत्व

- यह ब्रह्मांड  5 तत्वों से बना है ।

-जल,  पृथ्वी,  वायु,  अग्नि और आकाश  ।

-प्रत्येक तत्व  बाकी के  चार तत्वों से मिल कर बना है ।

-जल तत्व

-इस तत्व मेंं पृथ्वी,   वायु,  अग्नि और  आकाश तत्व  एक निछचित  अनुपात मेंं समाए हुए हैँ  ।

-पृथ्वी तत्व।

-इस तत्व मेंं जल,  वायु,  अग्नि और आकाश समाए हुए है ।

-वायु तत्व

-यह जल,  अग्नि,  आकाश और  पृथ्वी तत्व से मिल कर बना है ।

-अग्नि तत्व

-यह  जल,  पृथ्वी,  वायु  और आकाश तत्व से मिल कर बना है ।

-आकाश तत्व

-यह जल,  पृथ्वी,   वायु और अग्नि तत्व से मिल कर   बना  है ।

-साकार मेंं हम कोई  भी व्यक्ति, कोई भी  जीव, सभी  पेड़ पौधे, कोई भी तरल पदार्थ,   कोई भी स्थूल व सूक्ष्म पदार्थ हम देखतें है   उन सब मेंं पांच तत्व एक निछचित अनुपात मेंं समाए हुए हैं !

-मनुष्य शरीर भी पांच तत्वों से मिल कर  बना है ।

-मनुष्य शरीर मेंं 70 % जल है ।

-मन अर्थात हमारे विचार जल को सब से ज्यादा प्रभावित  करते  हैं ।

-अगर कोई कल्पना करते है तॊ वह विचार भी जल को प्रभावित करते हैं  ।

-जल शरीर मेंं स्थित बाकी के चार तत्वों को प्रभावित  करता है ।  जिस से शरीर मेंं स्थित   सभी तत्व  संतुलित या असंतुलित हो जाते  हैं  ।  जिनके परिणाम स्वरूप शरीर मेंं रोग हो जाते हैं  या हम  निरोगी हो जाते हैं  । 

- शुगर,  केंसर,  बी.पी,  हृदय रोग आदि  पांच तत्वों के असंतुलन  के  कारण  पैदा होते हैं ।

-अगर हम अच्छी कल्पनाएं करते हैं  या भगवान को याद करते हैं  तॊ इस से  शरीर मेंं पांचो  तत्वों का संतुलन होने लगता है और धीरे धीरे  निरोगी हो जाते हैं  ।

-अगर बुरी कल्पनाएं करते हैं  तॊ पांचो तत्व असंतुलित हो जाते हैँ  ।  जिस से रोग पैदा हो जाते हैँ ।

-इसलिए चाहे कुछ  भी हो जाएँ हमें अच्छी बाते और अच्छी कल्पनाएं ही सोचनी  और करनी है  जिस से शरीर     निरोगी रहेगा । 

अवचेतन मन -2

-अवचेतन मन आंखो का इस्तेमाल किये बिना देखता  है ।

-इस में अतिइंद्रिय दृष्टि और अतिइँद्रिय श्रवण क्षमता है ।

-अवचेतन मन शरीर को छोड़ सकता है और दूर देशों की यात्रा कर सकता है और अक्सर बहुत सटीक तथा  सच्ची जानकारी ले कर लौट सकता है ।

-अवचेतन मन के जरिये दूसरो के सूक्ष्म विचार  पढ़  सकते हैं ।

-आप बंद लिफाफे में और बंद तिजोरियों  के विवरणों को भी जान  सकते हैं ।

-अवचेतन मन में संचार के समान्य वस्तुपूरक साधनों का उपयोग किये बिना दूसरे के विचार  समझने की योग्यता होती है ।

-भगवान को याद करने की, प्रार्थना की सच्ची कला सीखने के लिये चेतन और अवचेतन मन की अंतर्क्रिया को समझ लें  ।

-अवचेतन मन में दुनियां को हिलाने की शक्ति है ।

-मस्तिष्क एक छोटी सी कोशिका से मिल कर बना है । अवचेतन मस्तिष्क ने शरीर को बनाया है । इस लिये वह शरीर को दुबारा बना सकता है ।

-जैसा  भीतर, वैसा बाहर, जैसा  ऊपर वैसा नीचे । मन में जो विचार  करेगें वह बाहर प्रकट होंगे । जो मुख से बोलेंगे वह मन पर असर  करेगा ।

-जब हम सो  जाते हैं  तब भी  अवचेतन मन कार्य करता  है, सांस को कंट्रोल करता है, हृदय को, खून को, नाड़ी को नियंत्रित करता है ।

-आप का पाला हर समय अवचेतन के बजाये चेतन मन से पड़ता  है ।

-चेतन मन से सर्वश्रेष्ट की कामना करते रहो ।

-पानी उसी पाईप  का आकार  ले लेता है जिस में बहता है ।

-आप के विचार अनुसार मन रुप धारण  करता जायेगा ।

-भाषण देने से पहले हमेशा तस्वीर की तकनीक  आजमाता है ।

-अपनी कल्पना में यह देखते रहो कि लोग कह रहे है, मै ठीक हो गया हूं ।


-कल्पना और निरोगता

- हमारा शरीर एक चक्र है । 

-हमारे शरीर मेंं खून एक चक्र मेंं चल रहा है । 

-नस नाड़ियां एक चक्र मेंं बनी हुई है ।

-सांस का आना जाना एक चक्र मेंं है ।

-ऊर्जा चक्र भी एक आवर्ती मेंं  घूमते रहते है ।

-हमारा शरीर एक आवर्ती मेंं है अर्थात शरीर का हर कार्य एक निच्छचित चक्र  मेंं घूम रहा है । 

-मुख्य नाड़ीया,  हृदय,   सांस और खून एक निच्छित  गति मेंं कार्य कर रहें है ।

-शरीर के   सभी अंगो से ऊर्जा प्रवाहित हो रही है ।

-इस आवर्तक चक्र को छोड़ते ही उस पर दूसरे शरीर  का प्रभाव आ जाता है ।  अर्थात जब हम दूसरों कें बारे सोचते है तॊ उन से निकल रही ऊर्जा हमारे पर आक्रमण कर देती है ।

-इन्द्रियो कें माध्यम से हर शरीर एक दूसरे से जुड़ा है ।

-हमारे मुख से निकले शब्द दूसरे कें कानो  के  द्वारा उसे प्रभावित करते हैं  ।

-हमारी आँखे दूसरे की आंखो द्वारा उसे प्राभावित करती हैं  ।

-इन्द्रिया  ही सातों ऊर्जा चक्रों को एक दूसरे से जोड़ती हैं  ।

-मन  ही इन्द्रियो और ऊर्जा चक्रों पर नजर रखता है ।

-मन ही क्रोध को क्षमा और हिंसा को अहिंसा मेंं बदलता है ।

-हमारे शरीर मेंं 70% पानी है ।

-मन मेंं उठती लहरे पानी को प्रभावित करती है  और पानी सारे शरीर के  अंगो को प्राभावित करता है ।

-कल्पना की  लहरें हमारे शरीर मेंं हल चल उत्पन कर देती हैं   जैसे चन्द्रमा सागर मेंं ।

-मन ज्यदातर  गल्त कल्पनाओ मेंं पड़ा रहता है ।

-अगर हर व्यक्ति अच्छी कल्पनाएं करने लगे तॊ सिर्फ मानव का जीवन ही सुखी नहीं  बनेगा परन्तु पूरा विश्व ही स्वर्ग बन जाएगा ।

-अगर हम हर समय अच्छी कल्पनाएं करते रहें तॊ सब से बड़ा  फायदा यह होगा कि  हम निरोगी रहेगे ।

-भगवान कें गुणो का  मन मेंं जो सिमरन करते है   वह अच्छी कल्पना ही है ।  इस से हमारे सभी रोग मिट जाते हैं  । क्यो कि भगवान की  शक्ति खून मेंं स्थित जल को शुद्ध कर देती है ।   शुद्ध जल शरीर की  सब गंदगी साफ कर देता है । 

-अगर हमारे रोग ठीक नहीं हो रहें है तॊ इसका सीधा सा अर्थ है अभी हम नकारात्मक कल्पनाएं कर रहें है । 

 -कल्पना से प्राप्ति

-संसार कें सभी दार्शनिक कल्पना में  शब्दो का श्रंगार करते हैँ । ऐसे शब्द  लिखते है जिन  को सुनने से अच्छा अच्छा लगता है । इसलिए आप भी नए नए शब्द सोचते रहा करो और उन्हे  जीवन में प्रयोग लाया  करो ।ऐसे क्या शब्द बोलें  जो हमारे संबंध  दूसरों से बने रहें न कि  बिगड़ जाएँ  ।

-विज्ञानिक भी  अपनी खोज पहले  कल्पना में ही करते हैं  ।  किसी एक विषय पर सोचते रहते हैं ।

-ऐसे ही  आप के जीवन में जो भी समस्या है उसका सकारात्मक हल क्या है उस पर सोचते  रहा करो ।  आप क्या बनना चाहते है ।  आप क्या चाहते है ।  आप जैसी समस्या झेल रहे संसार के  दूसरे लोग कैसे छुटकारा पा सकते है उस पर सोचा करो ।  आप को नए नए विचार आएंगे जो आप को मनचाहे लक्ष्य तक पहुचा देगें ।

-दो स्नेही व्यक्तियों के  बीच दरार  व्यर्थ  बातो की कल्पना के कारण पैदा होती  है । कोइ न कोइ ऐसी बात मुख से निकल जाती है जो दूसरे को हर्ट कर जाती है जिस से व्यर्थ कें अनुमान लगाने लगते हैं  और एक  दूसरे से दूर हो जाते हैं ।

-कुछ कल्पनाएं युग को बदल देती हैं  और कुछ कल्पनाएं जीवन को  बदल देती हैं ।

-धरती गोल है  कि  कल्पना ने   विश्व विकास की  काया  ही पलट दी ।  फोन की   कल्पना ने  सारे संसार को एक  परिवार की तरह छोटा बना दिया ।  महात्मा गांधी की आजादी की कल्पना ने भारत को गुलामी से छुड़ा दिया ।

-किसी के  ताने सुन कर कुछ  लोग बहादुरी से जीवन को श्रेष्ट बना लेते हैं  और कुछ लोग निराशा में चले जाते हैं और भिखारी बन जाते हैं  ।

-कोइ भी समस्या आये उस से दबना नहीं बुद्वि बल से उसका सामना करो और उस से श्रेष्टता प्राप्त करने की  कल्पना किया करो ।

-गुलाब का पौधा   गोबर से अपने लिये शक्ति खींच लेता  है और सुन्दर  खुशबूदार फूल बना देता है ।  क्या हम बुरी बातों को  बदल कर  श्रेष्ट  नहीं कर सकते ।  सिर्फ  अच्छा क्या हो सकता है इस की कल्पना किया करो जी ।

-कल्पना में घृणा भी है ।

-जिन लोगो  को देखते या सोचते ही  घृणा होती है,  वह सामने आते ही कल्पना में स्नेही आत्मा,   किसी दिव्य आत्मा व परमात्मा को मन मेंं  देखा करो ।  उनके गुण याद किया करो ।  इस से घृणा वाले  यक्ति से खीझ नहीं  होगी ।

-कल्पना में प्रेम भी है ।

-जिस व्यक्ति या  परिस्थिति से दुःख होता है,  उस समय स्नेही घटनाओ और  व्यक्तियों को कल्पना में देखने से हमें स्नेह महसूस होता रहेगा

-कल्पना में निर्माण भी  है ।

-बीमारी हालत में भी कल्पना में निर्माण का कार्य करते रहो ।

-जहां तक हो सके बीमार होने पर भी अपने  लौकिक कार्य  करते रहना चाहिये  इस  से आप अपने क्षेत्र में   आगे  बढ़ेंगे ।

-कल्पना में विनाश कें सूत्र भी हैं  ।

-कल्पना में कर्तव्य भी है ।

-कल्पना में धर्म भी है ।

-कल्पना मेंं भगवान शिव  को याद करते रहो,  दूसरो  को दान देते रहो,  रोगी के लिये प्रार्थना करते रहो ।  यही सच्चा धर्म है  ।  आप को वह सब प्राप्तिया  सहज ही हो जाएगी जो बहुत तप करने पर होती हैँ । 

-कल्पना  का महत्व

-प्रत्येक व्यक्ति  हर पल कल्पना करता रहता है ।

-घूमने फिरने के  लिये आबू कब जाएंगे,  कन्याकुमारी कब और कैसे जाएंगे ।

--सर्दी  और गर्मी में कौन से जूते व कपड़े पहनेंगे ।

-हम अपने बच्चों को वकील,  डॉक्टर,  इंजिनीयर या व्यापारी बनाएंगे ।

-लक्ष्य अनुसार हम पढ़ाई या अन्य तैयारी  करते हैं ।

-ये सब कार्य हम मन में पहले सोचते हैं  ।

-इसी सोच को कल्पना कहते हैं  ।

-हम सभी तन,  मन,  धन व संबंधो के बारे कल्पना करते रहते हैं  ।

-यह जो संसार में मकान,  दुकान,  मोटर कार,  वायुयान व अन्य चीजे देखते  हैं  यह  सब एक समय किसी न किसी ने कल्पना की थी ।

-प्रत्येक व्यक्ति अपने मनचाहे  लक्ष्य प्राप्त कर सकता है ।

-सिर्फ उस काम के बारे कल्पना में देखता रहे और उसे धरातल पर किस तरह  लाना है उस विधि से कार्य करें ।

-कल्पना तॊ सभी करते हैं  परन्तु उसे हकीकत का रूप कोइ कोइ दे  पाता है ।

-कभी कोइ  लेखक या व्यक्ति जो सोचता  है,  उसे शब्दो में प्रकट नहीं कर पाते तब  इसे  राइटर्स ब्लॉक कहते हैं  ।

-कल्पना के सहारे  हम वह काम कर जाते हैं  जो हम वास्तविक जीवन में कभी नहीं कर पाते ।

-कल्पना शक्ति हमारे कुछ कर पाने या कुछ न कर पाने के  तनाव को संतुलित रखती है ।

-प्राकृति ने शरीर से बेकार चीजे बाहर निकालने के   लिये कोइ न  कोइ रास्ता बना  रखा है ।

-ऐसे ही कल्पना से हम मन की हर बुरी चीज को बाहर फेंक सकते हैं  ।

-कल्पना रचनात्मक भी होती है और नकारात्मक भी होती है । कल्पना से लोगो का भला और नुकसान भी कर सकते हैं ।

-कल्पना उतनी ही हो जो मन को तनाव न  हो ।  ज्यादा कल्पना से मन में तनाव हो जाता है !

-जब हम कल्पित कार्यो को पूरा नहीं कर पाते हैं  तॊ वह मनोविकार  का रूप धारण कर लेते हैं  ।  जिस से मनुष्य में हीन भावना आ जाती है और जिंदगी  प्राभावित होने लगती है ।

-आप जो भी बनना चाहते हैं  कल्पना में  ही देखते रहें ।

-इसलिए परिस्थिति चाहे  कैसी हो  कल्पना में हमेशा अच्छी चीजे ही देखते रहना है ।

-आप अगर बुद्विवान बनना चाहते हैं कि तॊ परी  लोक की कहानियां  पढ़ा करो ।

-आप अपने बच्चों को प्रतिभाशाली बनाना चाहते है तॊ उन्हे भी परीलोक की बुक्स पढ़ने को दो ।

-इस से मनुष्य की बुद्वि  विकसित हो जाती  है जो निर्माण कार्य करती है ।

-परमात्मा शिव  कें बिंदु रूप को कल्पना में देखते हुए उसके गुणो का सिमरन  करते  रहो भगवान की सारी शक्तियां आप में आ जाएगी ।

 

🕉🌞विज्ञान भैरव तंत्र 🌞🕉
                ⚜🚩⚜

🌞👉   मांँ पार्वती के द्वारा पूछे गए परा शक्ति के स्वरूप को पहचानने के लिए उपाय के रूप में क्रमशः एक के बाद एक 112 धारणाओं का निरूपण करते हुए भगवान शिव कहते हैं--
         ⚜🚩प्रथम धारणा 🚩⚜
👉 प्रथम धारणा की योग दर्शन के आधार पर व्याख्या --हृदय से ऊपर द्वादशांत  तक जाने वाला प्राण और नीचे द्वादशांत से हृदय तक आने वाला जीव नामक अपान यह परा देवी का उच्चारण है , स्पंदन है। विज्ञान भैरव तंत्र के आधार पर हमारे इस शरीर में रीड के सबसे निचले भाग से लेकर ब्रह्मरंध्र से ऊपर शिखा के अंतिम भाग के ऊपर बाह्य आकाश तक 12 चक्रों की स्थिति मानी गई है जो क्रमश  इस प्रकार हैं  -जन्माग्र, मूल, कंद, नाभि, हृदय, कंठ तालु ,भ्रूमध्य ,ललाट ,ब्रह्मरंध्र, शक्ति तथा व्यापिनी। रीड के सबसे निचले भाग से लेकर शिखा के अंतिम स्थान से  ऊपर बाह्म आकाश तक  उस परा शक्ति का  स्फुरण होता रहता है।वह परा देवी ही निरंतर स्वयं इसका उच्चारण करती रहती है अर्थात प्राण और अपान के रूप में  स्पंदित होती रहती है ।यह परम शक्ति आंतरिक तथा बाहरी भावों की सृष्टि करती है। इस स्थिति में बाह्म  और आंतरिक विषय अर्थात प्राण और अपान की सृष्टि अर्थात उत्पन्न होने के स्थान जन्माग्र और द्वादशांत  अर्थात   व्यापिनी चक्र में नित्य उत्पन्न हो रही चेतन  शक्ति की भावना करने से योगी में  भैरव स्वभाव की अभिव्यक्ति हो जाती है अर्थात उसका भैरव स्वरूप प्रकट हो जाता है ,वह सत चित आनंद स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाता है, सत चित आनंद स्वरुप को प्राप्त कर लेता है ,भय से मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है। यहां पर इस व्याख्या को हम योग शास्त्र के अनुकूल व्याख्या मान सकते हैं किंतु यहां पर विशेष रूप से समझने का विषय  है कि प्राण की स्थिति द्वादशांत अर्थात व्यापिनी चक्र में प्रथम धारणा के अनुसार बताई गई है ।अपान की स्थिति हृदय चक्र में बतायी गई है अर्थात प्राण की गति हृदय चक्र से शिखा के अंतिम भाग के ऊपर बाह्म आकाश तक बतायी गई है और इसके दो ही विभाग दर्शाए गए हैं  "प्राण एवं अपान"। यदि योग दर्शन के आधार पर इस सत्य की व्याख्या करें तो नाभि से पाद अंगूष्ठ पर्यंत अपान प्राण का निवास और कार्यक्षेत्र है ।नाभि से हृदय पर्यंत समान प्राण का निवास एवं कार्यक्षेत्र है ।हृदय से लेकर कंठ तक प्राण का निवास  एवं कार्यक्षेत्र है। कंठ से लेकर शिखा पर्यंत उदान प्राण का निवास और कार्यक्षेत्र है ।व्यान प्राण का निवास और कार्यक्षेत्र संपूर्ण शरीर व्यापी माना गया है, जिसे दोनों बांहों में विशेष रूप से दर्शाया जाता है।
👉 उक्त प्रथम धारणा के अनुसार भगवान शिव कह रहे हैं-- कि व्यापिनी चक्र में प्राण की स्थापना करनी चाहिए  अर्थात व्यापिनी चक्र में ध्यान करके प्राण की  स्थापना करनी चाहिए  क्योंकि जहां पर  हम  ध्यान करते हैं , मन को एकाग्र करते हैं ।हमारा प्राण उसी केंद्र बिंदु पर ठहर जाता है ।साथ ही भगवान शिव कहते हैं कि अपान  प्राण के स्थान पर भी ध्यान करना चाहिए।  यदि योग दर्शन के आधार पर हम अपान वायु का मूल स्थान देखें तो वह मूलाधार चक्र अर्थात जन्माग्र ही  है क्योंकि हृदय अपान वायु का स्थान नहीं है। हमारे संपूर्ण शरीर में प्राण वाही नाडियाँ नाभि से दो अंगुल नीचे कंद से  निकलती हैं। हमारा हृदय पंपिंग स्टेशन है किंतु प्राण ऊर्जा का मूल संचार संपूर्ण नाडियों में नाभि से ही होता है । प्राण नाभि से ही प्राप्त होता है ,ऊर्जा नाभि से ही प्राप्त होती है। इसलिए भगवान शिव के द्वारा बतायी गयी इस धारणा में नाभि से लेकर या यूं कहें कि मूलाधार चक्र या जन्माग्र से लेकर ब्रह्मरंध्र या व्यापिनी चक्र तक प्राण को स्थापन करने  का ज्ञान दिया गया है। जब साधक मूलाधार चक्र से लेकर सहस्रार चक्र तक समस्त चक्रों में प्राण की स्थापना करता है ,ध्यान करता है तो उस प्राण स्थापना से उसका सत चित आनंद स्वरूप प्रकट हो जाता है। वह भय से मुक्त  आनंद भैरव के स्वरुप को प्राप्त कर लेता है।
👉 मां पार्वती को उस सत्य स्वरूप भैरव के स्वरूप को जानने के लिए भगवान शिव धारणा के विज्ञान को समझा रहे हैं--  यहां पर द्वादशांत  शब्द का बार बार प्रयोग किया गया है ।यदि इस शब्द के वास्तविक अर्थ को देखें तो विज्ञान भैरव तंत्र के अनुसार हमारी श्वास हृदय  तक आती है और हृदय देश से बाहर नासिका से 12 अंगुल बाहर तक जाकर शून्य में   विलीन हो जाती है ,फैल जाती है ।नासिका छिद्र से 12 अंगुल की इसी दूरी को द्वादशांत  कहते हैं ,जहां पर प्राण इस बाह्म आकाश में विलीन हो जाता है। दूसरे अर्थ में यदि देखें और शारीरिक स्थिति के आधार पर इस शब्द का तार्किक विश्लेषण करें तो शिखा के सबसे ऊपरी भाग से ऊपर शून्य में  ही इसका स्थान माना जा सकता है किंतु उक्त धारणा में विशेष रूप से इस शब्द का प्रयोग यहाँ पर नासिका द्वार से 12 अंगुल बाह्म  प्राण के बाह्म आकाश में विलीन होने को ही लक्ष्य करके व्याख्या की गई है अतःआगे जब भी हम इस शब्द की व्याख्या करेंगे तो प्राण की नासिका छिद्र से 12 अंगुल दूरी पर बाह्म आकाश में विलीन होने की स्थिति को दृष्टि में रखकर ही अधिकांशतः व्याख्या करेंगे  क्योंकि ब्रह्म रंध्र या व्यापिनी चक्र पर लक्ष्य करके व्याख्या करने पर इन धारणाओं का सही सही तत्वार्थ  व्यक्त नहीं किया जा सकता, समझाया नहीं जा सकता। जहां पर शरीर स्थित 12 चक्रों को लक्ष्य करके ध्यान का विज्ञान समझाया जाएगा, वहां पर इस विषय वस्तु को और अधिक स्पष्टता से समझाने का प्रयास किया जाएगा।
👏 तंत्र के आधार पर प्रथम धारणा की व्याख्या-- अब तक योग दर्शन को ध्यान में रखते हुए प्रथम धारणा की तर्क की कसौटी पर तोलकर व्याख्या की गई किंतु यदि तंत्र विज्ञान के आधार पर ही प्रथम धारणा की व्याख्या की जाए तो उस व्याख्या के अनुसार वास्तविक अर्थ  आता है 👉कि कोई भी साधक जो श्वास ले रहा है और छोड़ रहा है। श्वास लेते समय और छोड़ते समय कुछ समय के लिए विराम अवस्था प्राप्त होती है, शून्य अवस्था प्राप्त होती है जब साधक इस श्वास के आने और जाने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करता है और  होश पूर्ण तरीके से श्वास के आने और लौटने के बीच के विराम काल को देखने का प्रयास करता है तो जो प्राण एवं अपान क्षण मात्र के लिए थोड़ा ठहर कर वापस उलट जाता है वह विराम अवस्था धीरे धीरे होश पूर्ण तरीके से देखने पर  निरंतर बढ़ती चली जाती है और जब साधक निरंतर ऐसा करता है तो धीरे-धीरे उसका भैरव स्वरूप प्रकट होने लगता है । वह भय का रव करने वाले आनंद भैरव स्वरूप को प्राप्त करता चला जाता है। वह सत चित आनंद भाव को प्राप्त होने लगता है ।वह भय को समाप्त करने में समर्थ हो जाता है अर्थात अपने वास्तविक स्वरुप को  जान कर  भैरव  स्वरूप प्राप्त कर लेता है।

🌞👉 माता पार्वती पूर्व  अभ्यस्त अनेक शास्त्रों  के आधार पर  भगवान शिव से  निवेदन करती है कि  आप मुझे परम तत्व के वास्तविक स्वरुप के ज्ञान के साथ उसे प्राप्त करने की संपूर्ण विधियों का ज्ञान दीजिए। उस परम तत्व तक कैसे पहुंचा जा सकता है ?इसी  जिज्ञासा को उजागर करती हुई माता पार्वती भगवान शिव से 8 प्रश्न पूछती है--
⚜👉 पहला प्रश्न- इस भयानक आकृति वाले संसार की रचना करने में समर्थ भैरव का क्या अकार से लेकर क्षकार पर्यंत शब्द राशि की कलाएं ,अनुत्तर ,आनंद इच्छा ,प्रवृत्ति ,विमर्श  शक्तियां  ही उसका वास्तविक स्वरुप है क्योंकि  वाच्य और वाचक स्वरूप से जगत के सारे विस्तार को इसी ने समेट रखा है। इस प्रश्न का सीधा सा अर्थ यह है कि क्या यह बौद्ध  भैरव शब्द ब्रह्म स्वरूप है?
⚜👉 दूसरा प्रश्न--  माता पार्वती  पूछती है अथवा प्रकृति से लेकर परम तत्व पर्यंत तत्वों के परामर्श से प्रत्यभिज्ञात तथा षडध्व में परिगणित नवात्म मंत्र राज उसका स्वरूप है ?  इसका अर्थ यह  किया जा सकता है कि क्या भयानक स्वरुप वाले  भेरव की नौ शक्तियों के रूप में जिन्हें हम नवदुर्गा के नाम से जानते हैं। यह परम तत्व अवस्थित है?
⚜👉 तीसरा प्रश्न--   देवी कहती है या उस भैरव की शक्ति नरशक्ति के रूप में इच्छा ,ज्ञान, क्रिया शक्ति के रूप में तीन तत्वों की शक्ति को अपने में समेटे हुए विशिष्ट मंत्र के रूप में विद्यमान है?
⚜👉 चौथा प्रश्न-- अथवा  नर शक्ति शिवात्मक तीन तत्वों की अधिष्ठात्री अपरा ,परा -परा और अपरा नामक तीन शक्तियों वाला यह भैरव तत्व है?
⚜👉 पांचवां प्रश्न--  देवी कहती है अथवा समस्त मंत्र समूह में सामान्यतः मंत्र शक्ति के रूप में जो अवस्थित है ।वह विश्व के सभी वाच्यों में अभिन्न रुप से विद्यमान प्रकाश स्वरूप बिंदु और समस्त वाचकों  में अभिन्न रूप से  विद्यमान नाद उसका स्वरूप है?
⚜👉 छटा प्रश्न--  अथवा इस बिंदु और नाद के ही प्रपंच रूप अर्धचंद्र ,निरोधिका आदि उसके स्वरूप हैं?

⚜👉 सातवां प्रश्न--  देवी  पूछती है कि क्या वह मूलाधार आदि स्थानों में षड्दल आदि स्वरूप वाले चक्रों में आरूढ है अर्थात उन चक्रों में लिपि संकेतों के रूप में विद्यमान कोई तत्व है?
⚜👉 अंतिम आठवां प्रश्न देवी पूछती है कि क्या यह उस सुस्पष्ट शक्ति के रूप में विद्यमान है जो कि समस्त कुटिलताओं को छोड़कर अवस्थित है ?इन सब विकल्पों में से भैरव का वास्तविक स्वरूप क्या है ?हे देव उसे मुझे आप बताइए-
🌞 साधक के दो शब्द-- जिस प्रकार गीता में अर्जुन ने भगवान वासुदेव श्री कृष्ण से आम इंसान के रुप में हर वह प्रश्न पूछा जो एक साधारण व्यक्ति पूछ सकता है बल्कि उससे भी कहीं अधिक प्रश्न अर्जुन ने पूछे ।वही कार्य विज्ञान भैरव तंत्र में मां पार्वती ने किया है । इन 8 प्रश्नों में अध्यात्म जगत के संपूर्ण रहस्यों को समेट लिया है ।इन प्रश्नों को पढ़ते हुए कुछ शब्द हो सकता है ,आपको समझ न आयें  किंतु जब धारणाओं की व्याख्या की जाएगी तब प्रत्येक शब्द एवं प्रश्न का रहस्य समझ में आता चला जाएगा क्योंकि जो शब्द प्रयोग में लिए गए हैं, उनका अत्यंत गहन अर्थ है ,इसलिए उनको यहां पर समझाया नहीं जा सकता। धारणाओं में उन शब्दों की बेहतर तरीके से व्याख्या की जा सकेगी।

#अवचेतन मन #Subconscious Mind Power  लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की शक्तियाँ | Law of Attraction - Various Techniques Explained