*ओज़ोन प्रदूषण क्या है और
यह स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?*
पृथ्वी के वायुमंडल, समताप मंडल में ओजोन की एक परत है. यह हल्के नीले रंग की गैस होती है. इसकी परत सामान्यत: धरातल से 10 किलोमीटर से 50 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच पाई जाती है. ओज़ोन (Ozone)ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनी है. इसे O3 भी कहते है. यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है, इसकी सही मात्रा मौसम को भी प्रभावित करती है. यह पृथ्वी पर विभिन्न स्थानों में अलग-अलग जगह पर अलग-अलग पाई जाती है.
स्वाभाविक रूप से यह
आणविक ऑक्सीजन O2 के साथ सौर पराबैंगनी (UV) विकिरण के अंतःक्रियाओं के
माध्यम से बनती है. यानी जब सूर्य की किरणें वायुमंडल से ऊपरी सतह पर
ऑक्सीजन से टकराती हैं तो उच्च ऊर्जा विकरण से इसका कुछ हिस्सा ओज़ोन में
परिवर्तित हो जाता है. क्या आप जानते हैं कि यह गैस सूर्य से निकलने वाली
पराबैंगनी किरणों के लिए एक अच्छे फिल्टर का काम करती है और हम तक इन
किरणों को आने से रोकती है. साथ ही विद्युत विकास क्रिया, बादल, आकाशीय
विद्युत एवं मोटरों के विद्युत स्पार्क से भी ऑक्सीजन ओज़ोन में बदल जाती
है.
हम सभी जानते हैं कि ओज़ोन हमें हानिकारक यूवी विकिरण
से बचाती है लेकिन जमीनी स्तर पर ओजोन खतरनाक होती है और प्रदूषण का कारण
बनती है. इसलिए इसे एक प्रमुख वायु प्रदूषक भी माना जाता है. आइये इस लेख
के माध्यम से ओज़ोन प्रदूषण और कैसे यह स्वास्थ्य को प्रभावित करती है के
बारे में अध्ययन करते हैं.
ओज़ोन के प्रकार
ओज़ोन पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल और जमीनी स्तर पर दोनों जगह होती है. यह कहां पाई जाती है के आधार पर ओज़ोन अच्छी या बुरी हो सकती है.
अच्छी
ओज़ोन (Good Ozone): पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में स्वाभाविक रूप से होती है
और इसे स्ट्रेटोस्फेरिक(stratospheric) ओज़ोन भी कहा जाता है. यहां पर यह
हमारे लिए सुरक्षात्मक ढाल का काम करती है हमें सूर्य के हानिकारक यूवी
विकिरण से बचाकर. विभिन्न मानव निर्मित रसायनों के कारण यह आंशिक रूप से
नष्ट हो रही है और ओज़ोन में छेद हो गया है. 1982 में यह देखा गया था कि
ओजोन परत में 50 प्रतिशत तक छेद विकसित हो गया था. प्रत्येक वसंत ऋतु के
दौरान देखे जाने पर यह छेद मौजूद रहता है. निम्बस -7 उपग्रह ने 1985 में इस
सिद्धांत की पुष्टि भी की है. ओज़ोन की परत इस जगह पर काफी पतली हो गई थी.
तब से ओज़ोन मैपिंग स्पेक्ट्रोमीटर उपग्रह द्वारा 24 घंटें निगरानी की जा
जाती है. गैसीय पदार्थों की उपस्थिति को विशेष रूप से ओज़ोन की परत में छेद
का जिम्मेदार माना जा रहा है. जैसे कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन ‘(CFC) कई कारणों
से अंतरिक्ष में प्रवेश कर जाते है और ओज़ोन परत में विलीन होकर उसे
प्रभावित करते हैं. CFC,फ्रिज, AC आदि उपयोग में होने वाले उपकरणों से
निकलती है.
Bad या हानिकारक ओज़ोन: यह जमीनी स्तर पर पाई
जाने वाली गैस है जो सीधे हवा में उत्सर्जित नहीं होती है और
इसे ट्रोपोस्फेरिक (Tropospheric) ओज़ोन के रूप में जाना जाता है. यह
नाइट्रोजन ऑक्साइड और अस्थिर कार्बनिक यौगिकों (volatile organic
compounds,VOC) की रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा उत्पन्न होती है. ऐसा तब
होता है जब प्रदूषक कारों, बिजली संयंत्रों, औद्योगिक बॉयलर, रासायनिक
संयंत्र आदि द्वारा उत्सर्जित होते हैं और ये रसायनों सूर्य की रोशनी की
उपस्थिति में प्रतिक्रिया करते हैं. क्या आप जानते हैं कि जमीन के स्तर पर
यह हानिकारक वायु प्रदूषक है क्योंकि यह लोगों और पर्यावरण में प्रभाव
डालते है और धुआं (smog) का मुख्य घटक भी है?
शहरी
क्षेत्रों में, गर्म धूप वाले दिनों में ओज़ोन अस्वास्थ्यकर स्तर तक पहुंच
जाती है और ठंड के मौसम के दौरान भी यह उच्च स्तर तक पहुंच सकती है. अब, आप
सोच रहे होंगे कि ग्रामीण इलाकों में यह ओज़ोन पहुंचती है या नहीं? हां
ग्रामीण इलाकों में भी जमीनी स्तर पर ओज़ोन, हवा के जरिये पहुंच सकती है और
उच्च ओज़ोन के स्तर को अनुभव किया जा सकता है.
आखिर ओज़ोन आती कहां से है?
वायुमंडल
में ओजोन smokestacks, tailpipes आदि से बाहर आने वाले गैसों से विकसित
होती है. जब ये गैस सूर्य की रोशनी के संपर्क में आती हैं, तो प्रतिक्रिया
के कारण धुएं (ओज़ोन) में बदल जाती है.
जब नाइट्रस ऑक्साइड
और हाइड्रोकार्बन यानी VOC सूर्य की किरणों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो
ओज़ोन बनती है. बिजली संयंत्रों, मोटर वाहनों और अन्य उच्च गर्मी दहन
स्रोतों से, NOx उत्सर्जित होती है और दूसरी तरफ VOx मोटर वाहनों,
रासायनिक संयंत्रों, रिफाइनरियों, कारखानों, पेंट इत्यादि से निकलती है.
मोटर वाहनों से कार्बन मोनोऑक्साइड भी उत्सर्जित होती है. इसके अलावा,
हवाएं ओज़ोन को जहां से शुरू हुईं, यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और
महासागरों तक भी ले जा सकती हैं.
कार्बन मोनोऑक्साइड जो
ऑटो मोबाइल से उत्सर्जित होती है, कारखानों से निकलने वाला धुंआ, डीजल
इंजन, पेट्रोल आदि से निकलने वाले अपशिष्ट, ज्वालामुखीय विस्फोट और जंगल की
आग आदि. इन्हीं सब के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. 1996
में CFC पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद भी, प्रत्येक वर्ष इस छेद में लगातार
बृद्धि हो रही है. तापमान के बढ़ने से ध्रुवीय बर्फ पिघल रही है. जिस कारण
कुछ द्वीपों में बाढ़ आती रहती है.
ओज़ोन प्रदूषण से किसको खतरा है?
अस्थमा
और क्रोनिक अवरोधक फेफड़ों से संबंधी बीमारी यानी (chronic obstructive
pulmonary disease,COPD) से पीड़ित लोग जिसमें emphysema और क्रोनिक
ब्रोंकाइटिस, बाहर काम करने वाले श्रमिक, बच्चे, वृद्ध वयस्क आदि शामिल
हैं. कुछ सबूत बताते हैं कि महिलाओं सहित अन्य समूह जैसे मोटापे से ग्रस्त
लोग और कम आय वाले लोगों को ओज़ोन का अधिक जोखिम भरा सामना करना पड़ सकता
है. कुछ अनुवांशिक विशेषताओं वाले लोग और vitamin C and E जैसे कुछ पोषक
तत्वों के कम सेवन वाले लोगों को ओज़ोन अनावृत्ति के कारण अधिक रिस्क हो
सकता है.
ओज़ोन के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
- श्वास लेते वक्त ओज़ोन के अंदर जाने से छाती में दर्द, खांसी, गले में जलन और श्वास की नली में सूजन आदि हो सकता है.
- फेफड़ों के काम करने में कमी आ सकती है.
- ओज़ोन ब्रोंकाइटिस, emphysema, अस्थमा इत्यादि को और खराब कर सकता है.
- श्वसन संक्रमण और फेफड़ों में सूजन (COPD) के लिए संवेदनशीलता के जोखिम को बढ़ाता है.
- श्वास के जरिये ओज़ोन शरीर में जाने से जीवन की आयु कम हो सकती है ओर समय से पहले मौत भी हो सकती है.
- ओज़ोन के कारण कार्डियोवैस्कुलर बिमारी हो सकती है जो कि दिल को प्रभावित कर सकती है.
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हवा में मौजूद वायु प्रदूषक फेफड़ों को ओज़ोन के प्रति अधिक प्रतिक्रियाशील
बनाते हैं और जब आप सांस लेते हैं तो ओज़ोन आपके शरीर को अन्य प्रदूषकों के
प्रति जवाब देने के लिए बढ़ा देती है. उदाहरण के लिए: 2009 में प्रकाशित
एक अध्ययन में पाया गया कि ओज़ोन और PM2.5 के स्तर उच्च होने पर बच्चों को
बुखार और श्वसन एलर्जी से पीड़ित होने की संभावना अधिक हो जाती है.
- लक्षण गायब होने पर भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाना जारी रखती है ये ओज़ोन गैस.
- ओज़ोन वनों, पार्कों, वन्यजीवन इत्यादि सहित वनस्पति और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाती है.
इस
बात को नकारा नहीं जा सकता है कि यदि ओज़ोन परत नहीं होती, तो हमारे ग्रह
पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव का स्वास्थ्य खतरे में होता. क्योंकि ये सूर्य
से आने वाले पराबैंगनी प्रकाश को हम तक पहुँचने से रोकती है परन्तु ओज़ोन
में छेद होने के कारण बीमारियों के होने का खतरा काफी बढ़ रहा हैं जैसे सांस
की बिमारी, ब्लडप्रेशर की परेशानी, मोतियाबिंद में विकास और त्वचा के
कैंसर इत्यादि. तो, अब आप ओज़ोन और इसके कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण पर हुए
हानिकारक प्रभावों के बारे में जान गए होंगें इसलिए हमें ऐसे रास्ते को
अपनाना चाहिए जिससे ना सिर्फ हमारा फायदा हो बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी
इस बेहद खूबसूरत धरती का आनंद ले सके.