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शुक्रवार, 30 मार्च 2018

कहे कबीर दीवाना--प्रवचन--17*




*--जो मिला ही हुआ है। जिसे तुम खोजते हो,उसे अगर तुमने खो दिया होता तो उसे पाने का कोई उपाय न था। इस विराट अस्तित्व में खोए को खोज लेने का कोई उपाय नहीं। तुम खुद इतने छोटे हो, और तुमने अगर अपना आनंद खो दिया,आत्मा खो दी तो तुम इस विराट अस्तित्व में उसे कहां खोजोगे? असंभव। तुम अपने को खोज ही न पाओगे, अगर खो चुके हो। फिर खोजेगा कौन?अगर तुम खो ही चुके हो, तो खोजने वाला भी तो बचेगा नहीं।*
*भीतर पाने का अर्थ है रुक जाना, दौड़ना नहीं;ठहर जाना। विश्राम के क्षण में मिलेगा वह। विराम के क्षण में मिलेगा वह। शांति के क्षण में मिलेगा। भाग-दौड़, आपा-धापी में तो तुम उसे और खोते चले जाओगे।और जितना ही तुम जाल बुनते हो खोजने का, आखिर में पाते हो, वही जाल गले की फांसी हो गया। ऐसी है दशा तुम्हारी, जैसे मकड़ी ने जाल बुना हो और खुद ही फंस गई हो और अबतड़फती हो और निकलना चाहती हो। और निकल न पाती हो। और अपना ही बुना जाल है।*


कहे कबीर दीवाना


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