*भीतर पाने का अर्थ है रुक जाना, दौड़ना नहीं;ठहर जाना। विश्राम के क्षण में मिलेगा वह। विराम के क्षण में मिलेगा वह। शांति के क्षण में मिलेगा। भाग-दौड़, आपा-धापी में तो तुम उसे और खोते चले जाओगे।और जितना ही तुम जाल बुनते हो खोजने का, आखिर में पाते हो, वही जाल गले की फांसी हो गया। ऐसी है दशा तुम्हारी, जैसे मकड़ी ने जाल बुना हो और खुद ही फंस गई हो और अबतड़फती हो और निकलना चाहती हो। और निकल न पाती हो। और अपना ही बुना जाल है।*