- मनोबल द्वारा अमीर बने -3
-शिक्षा
-अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो अपने आप को हर समय शिक्षित करते रहो ।
-जितना अधिक आप के पास ज्ञान होगा, उतना ही ज्यादा अमीर बन सकेंगे ।
-पुस्तकालय ज्ञान का भंडार हैं । वहां पर हर विषय में बहुत सा ज्ञान मुफ्त में मिलता हैं ।ज्ञान मस्तिष्क का भोजन हैं ।
- जीवित रहने के लिये हरेक व्यक्ति 5-7 रोटीया हर रोज़ खाता है । ऐसे ही दिमाग की एक दिन की खुराक 10 हजार शुध्द शब्द है । यह शब्द हमे पढ़ने से ही मिलते है ।
- लौकिक पढाई के बाद लोग पुस्तकें पढ़ना छोड़ देते है । जब लोग अपने दिमाग को हर रोज़ नये विचार नहीं देते तो उनका और उन से सम्बन्धित लोगो का विकास भी रुक जाता है ।
- आप जिस दिन नया नहीं पढ़ते है तो उस दिन आप का थोड़ा सा पतन हो जाता है ।धीरे धीरे परिवार, समाज और देश का पतन हो जाता है ।
-प्रत्येक व्यक्ति को हर रोज़ नया पढ़ना चाहिये चाहे कितने भी व्यस्त हो । क्योंकि व्यक्ति इकाई है । अगर इकाई का विकास रुक गया तो सारा संसार दुखी हो जायेगा । इकाई सुखी तो सारा संसार सुखी ।
-जो व्यक्ति फालतू के अखबार या पत्रिकायें पढ़ने में अपना सारा खाली समय बर्बाद करता है, वह कभी अमीर नहीं बन सकता ।
-धन प्राप्ति का एक ही साधन है ज्ञान । इसलिये अपने को ज्ञान से भरपूर करो । वह ज्ञान चाहे लौकिक हो चाहे शारीरिक हो, चाहे आध्यात्मिक हो , चाहे कोई और कला हो ।
-लौकिक पढाई की सबसे उंची डिग्री प्राप्त करो । जितनी उंची डिग्री होगी उतना ही धन कमाने के लायक होगे ।
-जितना अधिक आध्यात्मिक ज्ञान होगा उतना ही अधिक सम्मान और धन लोग आप पर न्योछावर करेगें ।
-जितना अधिक शारीरिक ज्ञान होगा उतना ही आप स्वयं स्वस्थ रहेंगे और दूसरो के रोग ठीक कर सकेंगे तथा अपनी आजीविका के लिये धन कमा सकेंगे ।
- बुक्स पढ़ते पढ़ते डॉक्टर,.इंजिनियर,वकील वा वैज्ञानिक बन जाते है ।
-ऐसे ही हम अमीरी पर बुक्स पढ कर धनवान बन सकते है । गरीबी का मुख्य कारण यह है की अमीरी पर लोग बुक्स नहीं पढ़ते । सबसे बड़ी बात यह है कि आम लोगों को तो पता ही नहीं कि अमीरी पर कौन सी बुक्स है । कुछ बुक्स नीचे सुझाव के रुप में दे रहे है । इन्हे पढ़ कर आप धनवान बनने की युक्तियां प्राप्त कर सकते है ।
करोड़पति कैसे बने -डा आर एस अग्रवाल ।
अमीर बनने के रहस्य -उदय प्रसाद गुप्ता
अमीरी की चाबी आप के हाथ मे -नेपोलियन हिल
अमीर बनने के रहस्य -उदय प्रसाद गुप्ता
अमीरी का रहस्य -वैलेस डेलोएस वेटट्ल्स्य.
अमीर कैसे बने -पैट्रिशिया जी होरन
अमीरी का रहस्य -वैलेस डेलोएस वेटट्ल्स्य
आन्तरिक बल - B K Milakh Raj
-कल्पना और विकास
-कल्पना मानव मस्तिष्क की कार्यशाला है ।
-इस कार्यशाला मेंं हम अपने विचारों को मनचाहे लक्ष्य के लिये औजारों का रूप देते है ।
-कल्पना मन का वह केन्द्र है जो अवचेतन मन से जुड़ा है । अवचेतन मन मेंं 75 % शक्ति है ।
-अवचेतन मन घोर तप करने पर अक्टिवेट होता है । परन्तु कल्पना करते ही अवचेतन मन एक्टिवेट हो जाता है । इस लिये अवचेतन मन की शक्तियो का लाभ प्रत्येक व्यक्ति भी उठा सकता है ।
-आज विश्व का प्रत्येक व्यक्ति परेशान है क्यो कि वह गलत कल्पना करता है । जिस से अवचेतन मन से अथाह नकारात्मक चीजे आने लगती हैं ।
-कल्पना से ही बौद्विक कार्य होते हैं ।
-कल्पना मेंं ही कवि कविता का विकास करते है ।
- विद्वान लोग कल्पना मेंं ही दर्शनशास्त्र को ग्रहण करते है ।
-विज्ञानिक खोजें कल्पना मेंं ही होती है ।
-नैतिकता का विकास कल्पना मेंं ही होता है ।
-सृजनात्मक कार्य कल्पना मेंं ही संभव होते है ।
-गणितीय तर्क कल्पना से ही फलते फूलते है ।
-कल्पना मन की सृजनात्मक शक्ति है ।
-भौतिक उपलब्धियां उन संगठित योजनाओ से प्राप्त होती है जिन्हें आप अपनी कल्पना मेंं संजोते है ।
-कल्पना मेंं एक शक्ति होती है ।
-यह शक्ति है बाहरी स्त्रोतो से गति प्राप्त कम्पन्नो और विचार तरंगो को दर्ज करने की शक्ति है ।
-यह वैसी ही शक्ति है जैसे ध्वनि तरंगो को पकड़ने के लिये रेडियो होता है ।
- बिना भौतिक यंत्रो के संदेश एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क को भेजे जाते है ।
-इसे ही टेलिपैथी यां दूरबोध भी कहते है ।
-रेडियो और टी.वी . ने हमें आकाश तत्व को समझने मेंं मदद की है ।
-विद्युत चुम्बकीय तरंगे विद्युत की गति से निरंतर इधर से उधर बहती रहती है ।
-ऐसे ही दो मस्तिष्क एक दूसरे को सटीक संदेश भेज सकते है और भेजते रहते है ।
-दुनिया मेंं कल्पना एक ऐसा विषय है जिस पर आप का पूर्ण नियंत्रण है ।
-दुनिया आप को भौतिक संपति से वंचित कर सकती है ।
-दुनिया आप को कई तरह से ठग सकती है ।
-कोई भी व्यक्ति आप को आप की कल्पना पर नियंत्रण करने और उसका प्रयोग करने से वंचित नहीँ कर सकता ।
सहजता का नियम और कल्पना
-सारा ब्रह्मांड सहजता से गति कर रहा है ।
-मछली तैरने का कोई प्रयत्न नहीँ करती सहज रूप से तैरती रहती है ।
-फूल खिलने का प्रयास किए बिना सहजता से खिलते है ।
-पक्षी सहज भाव से उड़ते रहते है यह उनकी आंतरिक प्रकृति है ।
-पृथ्वी अपनी धुरी पर सहज गति से घूमती रहती है ।
-बच्चों की प्रकृति खुश रहने की है ।
-सूर्य की प्रकृति चमकने की है ।
-तारों की प्रकृति टिम टिमाने की है ।
-मनुष्य की प्रकृति शांति और प्रेम है ।
-प्रकृति के नियमो अनुसार कार्य करने से हम बड़े बड़े कार्य सहज कर सकते है ।
-हम उड़ सकते है, हम तीव्र गति से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते है । मोबाइल द्वारा विश्व के किसी भी व्यक्ति से पल भर मेंं बात कर सकते है ।
-ऐसे ही भगवान की शक्तियो के नियम क्या है उन्हे जानकर हम तीव्रगति से अपने जीवन को सुखी बना सकते है ।
-आप को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति मेंं गति तब मिलती है जब आप के कार्य प्रेम से प्रेरित हों ।
प्रकृति, परमात्मा और आत्मा का मूल आधार प्रेम ही है ।
-जब आप दूसरों पर नियंत्रण कर शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते है तॊ आप अपनी शक्ति नष्ट कर रहें है ।
-यदि आप निजी लाभ के लिये धन एकत्रित करते है तॊ आप ने ऊर्जा के प्रवाह को काट दिया है । आप प्रकृति के नियम के विरुद्ध चल रहें है ।
-यदि आप के कार्यो के पीछे प्रेम है तॊ ऊर्जा के नष्ट होने का प्रशन ही खड़ा नहीँ होता ।
-प्रेम से प्रेरित कार्य द्वारा आप की शक्ति दोगुनी-चौगुनी हो जाती है ।
-इस से जितनी शक्ति प्राप्त होती है उस से आप जो भी पाना चाहते हैं - अनंत सम्पत्ति सहित वह पा लेते हैं
-शरीर शक्ति नियंत्रण का यंत्र है ।
-यह ऊर्जा पैदा कर सकता है, संचित कर सकता है और उसे आवश्कता अनुसार खर्च भी कर सकता है ।
-अगर आप यह सीख जाएँ तॊ आप कोई भी सम्पदा प्राप्त कर सकते हैं ।
-हमारी शक्ति महत्व पाने, दूसरों पर नियंत्रण करने और शासन करने की आश से मानसिक शक्ति नष्ट होती है ।
-यदि आप किसी विशेष परिस्थिति व व्यक्ति से परेशान है तॊ इसका मूल यह है क़ि आप के विचारो मेंं कहीं कमी है, आप प्रेम नहीँ दें रहें है, आप की ऊर्जा कहीं नष्ट हो रही है ।
-जब भी आप का वास्ता परेशानी, कठिनाई, मित्र, मार्ग दर्शक अथवा शत्रु से पड़े और दूसरों को दोष देते है तॊ यह याद रखें क़ि यह परिस्थिति तब आई है जब कहीँ मैने सहजता के नियम का उलंघन किया है । ये मुझे प्रेम और सही राह दिखाने के लिये आएं है । चेक करो और परिवर्तन करो ।
-कहां गलती है इसे जानने के लिये बुक्स पढ़ो ।
-हमें कोई भी समस्या अपने आसपास के लोगों से आती है । दूरस्थ लोगों से कोई ईर्ष्या द्वेष नहीँ होती । इसलिए सहज भाव से कल्पना मेंं दूरस्थ लोगों के बारे सोचते रहा करो आप शांत हो शांत हो । ऐसा करने से आप की तरंगे आप के आस पास के लोगों को भी शांत कर देंगी ।
-कल्पना मेंं सभी के प्रति सहज कल्याण का भाव रखो ।
समर्पण का नियम और कल्पना
-यह संसार - दें - और - लें - के नियम पर चल रहा है ।
-पूरे ब्रह्मांड मेंं कुछ भी स्थिर नहीँ है ।
-शरीर निरंतर चलायमान है ।
-मन चलायमान है ।
-पांचो तत्व चलायमान हैं ।
-हम अपने जीवन को प्राकृति, परमात्मा और व्यक्तियों के अनुसार ढाल लेते है इसे ही समर्पण कहते हैं ।
-आप जितना समर्पण करेगें बदले मेंं उतना ही अर्जित करेगें ।
-समर्पण अर्थात देना और लेना
-आप प्रसन्न होना चाहते है तॊ दूसरों को प्रसन्न रखें ।
-आप प्रेम चाहते है तॊ दूसरों के प्रति प्रेम की भावना रखें ।
-आप चाहते हैं क़ि कोई आप की देखभाल रखे और प्रशंसा करें तॊ आप पहले किसी दूसरे की देखभाल करें और प्रशंसा करनी सीखे ।
-आप भौतिक सुख चाहते हैं तॊ दूसरों की इतनी सहायता करें क़ि वह भौतिक सुखों से सम्पन हो जाएँ ।
-सबसे आसान तरीका यही है जो आप चाहते हैं उसे दूसरों को उपलब्ध कराने मेंं सहायता करें ।
-यह सिद्वांत व्यक्ति, संगठन, संस्था और राष्ट्र मेंं समान रूप से लागू होता है ।
-समर्पण अर्थात देने और लेने का विचार, आशीर्वाद का विचार और साधना के विचार से दूसरे प्रभावित होवे लगते हैं ।
-ऐसा इस लिये होता है क्योंकि सारा ब्रह्मांड संकल्प रूपी ऊर्जा से प्रभावित होता है । .
-आप निर्णय कर लें जब भी आप किसी के सम्पर्क मेंं आएंगे उसे कुछ न कुछ अवश्य प्रदान करेगें ।
-यह जरूरी नहीँ आप भौतिक वस्तु दें ।
-आप उसे शुभ भावना दें, प्यार दें, प्रशंसा करें, आशीर्वाद दें , हंसी का तोहफा दें, मीठे बोल बोलें , शांति और आंनद की तरंगे दें ।
- ये सब कल्पना मेंं करना है । क्योंकि चुपचाप कल्पना मेंं की गई मंगल कामनाएं बहुत शक्तिशाली होती हैं ।
-प्रायः हमें सिखाया जाता है कभी भी किसी के घर खाली हाथ मत जाओ ।
-कभी भी किसी को मिलो तॊ बिना तोहफे के न मिलो ।
-एक फूल लें जा सकते हैं, एक कार्ड ले जा सकते हैं । आप यह कल्पना मेंं भी दें सकते हैं ।
-जिसे भी मिलें उसे संकल्प से कुछ न कुछ अवश्य दें । आप को स्वतः ही कुछ न कुछ मिलता रहेगा ।
-जितना कल्पना मेंं बांटेंगे उतना ही आप को इस अद्वितीय नियम का अहसास होने लगेगा ।
-हमारे मन मेंं असीमित भंडार है ।
-मन के द्वारा हम सारे संसार की भौतिक और अभौतिक जरुरते पूरी कर सकते है ।
-बस सिर्फ यह सीखना मात्र है क़ि पहले दूसरों को कैसे दें ।
-पक्का ठान लो जिस किसी से जितनी बार भी दिन मेंं मिलूंगा चुपचाप उसे प्रसन्नता, खुशी, हंसी और भगवान की याद की तरंगें कल्पना मेंं उपहार मेंं दूंगा ।
-कोई भी व्यक्ति जो मन मेंं याद आएं, बार बार आप की एकाग्रता भंग करता है, पढ़ाई डिसट्रब होती है, योग न लग रहा हो, कोई व्यक्ति भूत की तरह याद आता हो, वह कोई विरोधी हो सकता है, कोई रुठा हुआ हो सकता है, कोई आसक्ति वाला हो सकता है, उसे मन से कल्पना मेंं समझाओ, आशीर्वाद दो, शांति दो, प्यार दो, आप का कल्याण हो ऐसी वरदान दो, वह मालामाल हो जाएगा और आप भी खुशहाल हो जाएंगे ।
-अगर ऐसा करने मेंं दिक्त्त आए तॊ तुरंत अव्यक्त मुरली या कोई अन्य बुक पढ़ने लग जाओ । तब तक कुछ न कुछ पढ़ते रहो जब तक मानसिक विघ्न का हल न मिल जाए ।
-आज्ञा चक्र-45-अवचेतन मन और भविष्य -5- यातायात कैसा होगा ?
-अवचेतन मन एक महान शक्ति है ।
-भविष्य में सारे काम अवचेतन मन दारा किये जायेंगे ।
-अवचेतन मन में अनंत ऊर्जा है । जैसे सूर्य की ऊर्जा कभी ख़त्म नहीं होती, ऐसे ही अवचेतन मन की ऊर्जा कभी ख़त्म नहीं होती ।
-बुद्वि एक रुकावट है जो मन को कार्य नहीं करने देती । जब बुद्वि किसी काम के लिये हां करती है तो अवचेतन मन वह सम्बन्धित कार्य करने लगता है । जैसे आप सोचो फूल कौन से होते हैं तो तरह तरह के फूल दिमाग में आने लगेगें ।
-यह योग साधना आदि जो हम करते हैं सिर्फ बुद्वि पर विजय पाने के लिये करते हैं । योग से बुद्वि पर हमारा नियंत्रण हो जाता है । तब हम मनचाहे कार्य अवचेतन मन से कर सकेंगे ।
-अवचेतन मन में एक ऐसा केन्द्र है जो शरीर से ऑटोमेटिक कार्य करवाता है । जैसे सांस का लेना, हृदय का धड़कना, खून का चलना, भोजन का हज़म होना । ये कार्य नींद में भी मन करता रहता है । इन कार्यों को हम रोक नहीं सकते ।
-भविष्य में अध्यात्म में ऐसी खोजे निकलेगी जिस से हम सभी कार्य दिमाग के इस भाग से कर सकेंगे जो ऑटोमेटिक है ।
-पुष्पक विमान हमारे अवचेतन मन से चलेगे । विमान को विद्युत के रुप में ईंधन और कंट्रोलिंग अवचेतन मन से होगी ।
-हम सोचेगे कि पुष्पक विमान से देहली जाना है । सोचते ही पुष्पक विमान का नियंत्रण हमारे अवचेतन मन के ऑटोमेटिक वर्किंग केन्द्र से हो जायेगा । विमान में रीफाइनड कंप्यूटर होगा । वह कंप्यूटर अवचेतन मन से शक्ति लेगा । जहाँ का हम सोचेगे अपने आप वहां जा कर विमान रुक जायेगा ।
-इसी प्रकार दूसरे यातायात के साधनों में भी कंप्यूटर लगे होंगे और यह कंप्यूटर अवचेतन मन की शक्ति से चलेंगे । जहां का सोचेगे उस ओर अपने आप चल पड़ेगे अपने आप मुड़ते रहेंगे, सामने अवरोध आने पर अपने आप ब्रेक लगेगी और चाहे गये स्थान पर अपने आप रुक जायेंगे ।
-वर्तमान समय में भी जब हम साइकल, स्कूटर या कार आदि को अच्छी तरह चलाना सीख जाते है तो हम बातचीत करते जाते है और गाड़ी रास्तों पर अपने आप हमारे हाथ घुमाते जाते है, जरूरत पड़ने पर पैर अपने आप ब्रेक व कलच दबाते रहते है और गंतव्य स्थान पहुंच कर हम गाड़ी रोक देते हैं ।
-आज मानव रहित ट्रेनज चल रही है, हवाई जहाज चल रहे है और रॉकेट तो चलता ही कंप्यूटर से है । भविष्य में ये सभी साधन अवचेतन मन की शक्ति से चलेंगे । कहीँ कोई खर्चा नहीं होगा क्यों कि मन में अनंत ऊर्जा है ।
-ऐसे तेज गति के साधन होगे जिनके द्वारा हम प्रकाश की गति से भी तेज चल सकेंगे ।
-हमारे पास ऐसे साधन होगे जो पलक झपकते ही कहीं भी पहुंच जायेंगे जैसे भगवान कहीँ भी पहुंच जाता है । श्री गुरुनानक देव जी अपने दो शिष्यों बाला और मर्दाना को साथ लेकर लाखो किलोमीटर की यात्रा क्षण भर में कर लेते थे ।
-अभी जो हम मन द्वारा कहीं भी पहुंच जाते हैं , इतनी ही गति से हम कभी भी और कहीँ भी शरीर सहित पहुंच जायेंगे । कल्पना हकीकत बन जायेगी ।
-इसलिये हमें इस दिशा में मन पर शोध करनी है ।
-अभी आप को यह कल्पना लग सकती है । आज से 100 साल पहले किसी ने विश्वास किया होगा कि एक दिन मोबाइल में व्यक्ति का चित्र भी दिखेगा ।
-अध्यात्म भी विज्ञान है । यह विज्ञान भौतिक विज्ञान से उत्तम है । इसलिये हमें अध्यात्म विज्ञान में नई नई खोजे करनी है ।
-भूतकाल की कल्पनाएं
-भूतकाल को परिवर्तित करना असम्भव है ।
-अनेक अवसरों पर आप को स्वंय पर, साथियो एवं मित्रो के भूतकाल मेंं किए व्यवहार पर खीझ उठने लगती है ।
-उनका व्यवहार परेशान करने लगता है ।
-ऐसे व्यक्तियों की जैसे ही बाते, व्यवहार याद आये तुरंत उन की जगह परमात्मा को देखो या किसी दूसरे व्यक्ति को देखो ।
- उन व्यक्तियों को मन मेंं देखो, जो आप को दुलारते थे, प्यार करते थे या करते हैँ । उन्हे कल्पना मेंं कहना है तुम शांत हो, तुम स्नेही हो । उनके और अपने बीच भगवान को भी देखना है ।
-ऐसा करने से ईथर तत्व के माध्यम से आप का स्नेही व्यक्तियों से मानसिक सम्पर्क हो जाएगा तथा उनकी ऊर्जा आप को आने लगेगी । आप को बहुत अच्छा अच्छा लगेगा ।
-भूतकाल मेंं की गई अपनी गलतियां, अपनी कमियां कचोटने लगें तॊ तुरंत उन यादो या कल्पनाओ को हटा दें । ये यादे हटती नहीँ है । सब से बढ़िया ढंग है जैसे ही पुरानी यादे आएं तुरंत कोई अव्यक्त मुरली बुक या कोई अन्य अच्छी बुक पढ़ने लग जाओ ।
- भूतकाल की गलतियां याद आने पर हम अपने को दोषी मानने लगते है । वास्तव मेंं ये भूतकाल की बाते हमेंं तब याद आती है जब वह व्यक्ति हमारे बारे सोचते है जिनके साथ हम ने गलतियां की है ।
-इसलिए ऐसे व्यक्तियों को मन मेंं तुरंत शांति की तरंगे दिया करो उन्हे प्यार का सहयोग मन से दिया करो जिस से वह पुरानी बातों को याद कर के दुखी नहीँ होंगे । तब आप को भी शांति रहेगी ।
-आज प्रत्येक मनुष्य भीड़भाड़, कशमकश, रेल पेल, मारकाट, स्पर्धा-प्रतिस्पर्धा, रोग- शोक, चिंता, घटना- दुर्घटना का सामना करने को बाध्य है ।
-प्रत्येक व्यक्ति समय की कमी और कार्य की अधिकता के दबाव मेंं जी रहा है ।
-प्रत्येक वाहन चालक अपने वाहन, अन्य वाहन से आगे निकालने के प्रयास मेंं दांत भींचता हुआ दृष्टिगोचर होता है ।
-होर्न की कर्कश ध्वनि, वाहनों का शोरगुल, भीड़भाड़ ऐसा महौल बना देता है मानो सभी लोग महासागर मेंं समाने को उत्सुक हो ।
-ये सभी कारण मानव मस्तिष्क को तनाव मेंं डाल देते है । तनाव से मानसिक ऊर्जा नष्ट हो जाती है । मानसिक ऊर्जा नष्ट होने से कमजोरी आ जाती है । मानसिक कमजोरी के कारण व्यक्ति भूतकाल की बुरी यादो की कल्पना करने लगता है ।
-ऐसा करने से व्यक्ति डिप्रेशन मेंं चला जाता है ।
-जैसे ही पुरानी बाते याद आये तुरंत वह सोचो जो आप को असल मेंं करना चाहिये था ।
- वह असली व्यवहार जो करना चाहिये था, अब अपने सम्पर्क मेंं आने वाले लोगों के साथ करो क्योंकि भूतकाल से हम केवल सीख ही ले सकते है ।
-भूतकाल मेंं जिन लोगों को आप के कारण कोई नुकसान हुआ था, उन्हे अब शांति और प्रेम की तरंगे दिया करो । अगर उन्होंने बुरा किया था तब भी स्नेह की तरंगे दिया करो । वह जहां भी है उनके मन से दुश्मनी निकल जाएँगी और आगे जिस जन्म मेंं भी मिलेगे आप से अच्छा व्यवहार करेगें ।
आज्ञा चक्र -44-अवचेतन मन और भविष्य -4-जो सोचे सो कैसे पायें ?
-हमारा मस्तिष्क विचारो का ब्रॉडकासटिंग और रिसीविंग स्टेशन है । इसकी फ्रीक्वेंसी इतनी ही होती है कि उसे हम ही सुन सकते है । दूसरा कोई नहीं सुन सकता ।
-जो बात हम ब्रॉडकास्ट करते है वही बातें हम रिसीव करके सुनते है । हम जो रिसीव करते है उसका ही असर हमारी भावनाओ व स्वभाव पर पड़ता है । यह बात बड़ी अजीब ज़रूर लगती है लेकिन यह बिलकुल सच है ।
-जब आप ब्रॉडकास्ट करते हैं मै बुरा हूं, मै यह कर नहीं सकता तो आप यही सुन रहे हैं और आप नाकारात्मक हो जायेंगे । यही करने लगेगें ।
-मस्तिष्क केवल उन्ही बातो को ग्रहण कर के और प्रसारित करता है है जो आप खुद प्रसारित करना चाहते हैं । जब तक आप अपने बारे में बुरा, नाकारात्मक सोचते रहेंगे, वह आप को बुरा नाकारात्मक कहता रहेगा ।
- ब्रॉडकासटिंग आप के कंट्रोल में होती है । अच्छी प्रसारण करते हैं या बुरी । आप अपने बारे में अच्छी बाते ब्रॉडकास्ट करेगें तो आप को अच्छा लाभ मिलेगा । बुरी ब्रॉडकास्ट करेगें तो परेशानी, समस्या, निराशा मिलेगी ।
-इसमे आप को एक प्रकार की पावर मिलेगी । इसे वैल ( well ) पावर कहेंगे विल ( will.) पावर नहीं कहेंगे विल पावर और वैल पवर में फर्क होता है ।
-विल पवर पूरी बाडी में उत्पन्न होती है । जिसे आत्म शक्ति के रुप में पहचाना जाता है । विल पवर से हम अपने मन के भय को दूर करते है । अपने अन्दर एक शक्ति महसूस करते है । इस से जीने की इच्छा,पाने की चाहत, भय से मुक्ति मिलती है ।
-वैल पॉवर सिर्फ मस्तिष्क में उत्पन्न होती है । जो किसी चीज़ को पाने, उसे हासिल करने, उसे ऊंचाई तक पहुंचाने के लिये एक जोश, एक जज्बा, एक लगन पैदा करती है । आप के पास जितना वैल पावर होगी आप उतनी तेज गति से सफलता की ओर बढेगे । फिर भी इस विषय पर विज्ञानिक शोध की आवश्यकता है ।
-सदा मन में सोचते रहो मै देवता हू, मै दूसरो के लिये आदर्श हू, मै खुशहाल हू, मै धनवान हू, मै विश्व महाराजा हू, मै दयावान हू, मै प्रसन्नचित हू, मै अकेला नहीं, अकेलापन भगवान ने मुझे इसलिये दिया है ताकि यह समय में भगवान को दूं, इस समय मुझे भगवान से बातें करनी हैं । ऐसा सोचने से आप में वैल पावर बढेगी ।
-वैसे हमारे दिमाग में सहस्त्रार चक्र में 1000 अन्टिना लगे हुये हैं । यह अन्टिने विश्व में या परमात्मा के घर में, कहीं भी कुछ भी हमारे बारे कोई सोचता है या कोई घटना घटती है, वह सब भी हम प्राप्त कर लेते हैं और ये तरंगे इतनी सूक्ष्म होती है कि उन्हे सुन नहीं सकते परंतु गहरे तल पर रेकोर्ड हो जाती है । बस हम अनजानी खुशी, भय या सुख दुख क भाव महसूस करते है ।
-दुष्चिंता और कल्पना
--सब से खतरनाक बाधा है दुष्चिनता ।
-ये संसार एक जंगल है ।
-दुष्चिंता को जंगल मेंं विहार करने वाली एक सर्पिणी कहा गया है ।
-ज्वालामुखी का विस्फोट होता है तॊ आसपास की धरती कांप उठती है ।
-जब जीवन मेंं दुष्चिंता आती है तॊ जीवन मेंं बाधाओं का आगमन हो जाता है ।
-आप सड़क पर जा रहे है और आप सोचने लगे ।
-कही ठोकर न लग जाए ।
-कहीं गिर न ज़ाउ ।
-कहीँ चोट न लग जाए ।
-जरा सी गले मेंं खिंचखिचाहट क्या हो गई आप अन्यथा सोचने लगे ।
-यही दुष्चिंता है ।
-बरसात मेंं बिजली कड़की नहीँ क़ि घर की कोठरी मेंं घुस गये यही दुष्चिंता है ।
-वर्षा न हुई तॊ फसल चौपट हो जाएगी, बहुत हानि होगी । खाने को अनाज नहीँ मिलेगा । खाद बीज खरीदने के लिये धान कहां से आएगा ।
- ये सब दुष्चिंताएं हैं जो कभी जीवन मेंं आती ही नहीँ ।
-इनकी कल्पना मात्र से दुःख होता है ।
-हमेशा इन के विपरीत आप जो चाहते हैं वह कल्पना करो । बुरी कल्पनाएं क्यो करते हो ।
-भय, आशंका और दुष्चिंता के चक्र व्यूह मेंं फंसने से अपने को बचाइए ।
-जैसे ही यह विचार आये तुरंत सोचो यह चक्रव्यूह है । इस मेंं फंसना नहीँ है ।
-भय के विचार आये तॊ सोचो मै बहादुर हूं ।
-भगवान को याद करते हुए स्नेही व्यक्तियों की एक लंबी लाइन अपने साथ खड़ी हुई है उसे कल्पना मेंं देखें और उन्हे कहें आप प्रेम स्वरूप हैं, सहयोगी हैँ, कल्याणी हैँ । ऐसी अच्छी भावनाए करने से आप को डर नहीँ लगेगा ।
-आशंका आये तॊ विश्वास पात्र व्यक्तियों को दिमाग मेंं देखें ।
-चिंता हो तॊ उसके बजाय विश्व का कल्याण कैसे हो इसका चिंतन करें ।
-सिर्फ मन मेंं कल्पना करें क़ि गरीब व्यक्ति या व्यक्तियों की मै तन, मन और धन से मदद कर रहा हूं ।
-मै परिवार, समाज और देश के लिये क्या कर सकता हूं इसकी कल्पना करते रहा करो ।
-ऐसा करते रहने से दुष्चिंताएं खत्म होंगी ।
-अधिकतर दुष्टचिंताएं केवल व्यर्थ चिंता ही होती है वह जीवन मेंं कभी घटती ही नहीँ ।
-अगले पल, अगले क्षण, अगले वर्ष, यह न हो जाए, वह न हो जाए, यह सोचने से वर्तमान के आनद का विनाश क्यो करें ।
-आप अपने मन मेंं सदा कल्याण की कल्पना करते रहो । आप का कभी अहित नहीँ होगा । अगर होना ही तो है ठीक ही होगा ।
-भगवान हमारे साथ हैँ हमारा अहित कभी हो नहीँ सकता । इस विश्वास को पक्का रखें !
अवचेतन मन और भविष्य -2-जो सोचे सो कैसे पायें ?
-जीवन में आने वाली समस्यायें हमारे दिमाग की कसरत के लिये अच्छी होती हैं । जब समस्याओ से सामना पड़ता है तो दिमाग में एक केमिकल उत्पन्न होता है जो दिमाग को ऊर्जावान बनाता है ।
- हमें पता लग जाये कि हमारे घर में सांप घुस आया है तो हम कितने चौकने हो जाते है।
-घोर विकट परिस्थितियो में दिमाग ज्यादा सक्रिय हो जाता है । परेशानी के वक्त दिमाग अन्य समान्य समय की तुलना में अधिक साकारात्मक ढंग से सोचता है । यह स्थिति बहुत ही शक्तिशाली होती है जो कि विपरीत परिस्थितियो से लड़ने में मदद करती है । मनुष्य अधिक सोचने लगता है ।
-जिस गली में कुत्ते काट खाते है वहां से गुजरते समय हम कितने अलर्ट रहते है ।
-वही लोग जीवन की दौड़ में आगे रहते है, जिन्हे समाजिक, शारीरिक और आर्थिक अड़चनों का सामना करना पड़ता है ।
-वास्तव में जब हम भगवान की आज्ञा अनुसार मेहनत नहीं करते है, तब वह हमारे सामने चुनौती देता है, जिसे हम पार करते करते महान बन जाते है ।
-आप वफादारी से चल रहे है, आप में सारे गुण हैं, फिर भी लोग उचित महत्व नहीं देते हैं तो इस का अर्थ होता है, भगवान आपको उनसे महान बनाना चाहता है । ये दिमाग में रख कर तुरंत बुक्स पढ़ने या अच्छे काम में अपने को बिज़ी कर दो । उनके प्रति कल्याण भाव रखो ।आप का भविष्य उजवल होगा ।
-अधिकतर लोग अपने आस पास रहने वाले लोगों को असफल देख कर अपने आप को असफल घोषित कर देते है । मन की हार जीवन की हार होती है । मन में जीत का जज्बा पैदा करो । मै इसे हासिल कर के रहूंगा जैसी बातें अपने मन में भर लो ।
-कल्पना में हर समय अच्छी चीजे याद रखा करो । कल्पना शक्ति का केन्द्र हमारे दिमाग के उस भाग में है जहां मन की 80% शक्ति है और बिना उपयोग किये ही यह शक्ति पड़ी रहती है । जब कल्पना करते है तो हम डाइरेक्ट अवचेतन मन से कार्य करने लगते है । इस तरह योग से प्राप्त शक्ति बच जायेगी और आप बहुत जल्दी सम्पूर्ण बन जायेंगे ।
- भगवान को याद करते हुये कल्पना शक्ति का प्रयोग किया करो इस से आप की लौकिक सफलता की गति डबल हो जायेगी ।
-कोई भी परिस्थिति आने पर सोचा करो, इस समय मेरे वश में क्या है ?
-इस पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ आपकी सोच ही आप के वश में है । इसके इलावा और कुछ नहीं है । इसलिये तुरंत अपनी सोच बदलो ।
-जो विचार हम 15 दिन दिमाग में रखते है वह हमारी आदत बन जाते है, फिर हम आदत अनुसार कार्य करने लगते है ।
-मन में कल्याण और विजय के विचार आप को विजयी बना देंगे । भविष्य में आप वही होगे जो इस समय आप अपनी कल्पना में सोच रहे है ।
-कल्पना और बाधाएं
-प्रत्येक व्यक्ति जिनके हम सम्पर्क मेंं आते हैं, वह हमारे से कोई न कोई अपेक्षा रखते है । इसके इलावा वह हमारे से चाहते हैँ क़ि हम उनके साथ रेस्पेक्ट से बात करें ।
-वह व्यक्ति आप के परिवार के लोग हो सकते हैं, आप के मित्रगण हो सकते हैं या आफिस के लोग हो सकते हैं ।
-अगर आप इन लोगों के प्रति मन मेंं सम्मान की भावना नहीँ रखते हैं तो उनकी इच्छा पर खरे नहीँ उतरते हैं तब यह लोग आप के लिये बाधाएं खड़ी करेगें ।
-जैसे सुख और दुःख मानव जीवन के विभिन अंग हैं ।
-ऐसे ही बाधाओं का भी जीवन मेंं महत्वपूर्ण स्थान है ।
-कोई न कोई बाधा मनुष्य को जीवन भर घेरे रखती है ।
-मिठास की महता का आभास तभी होता है जब व्यक्ति नमक और कड़वाहट के स्वाद से परिचित हो ।
-सुख का महत्व तभी प्रतीत होता है जब व्यक्ति कष्ट और बाधाओं का सामना करता है ।
-ये बाधाएं है क्रोध, भय, संदेह, दुष्चिंता , ईर्ष्या, लालच तथा घमंड ।
-इन भावनाओ का विचार करने मात्र या कल्पना करते ही दूसरे पर असर होता है ।
-ऐसी बाधाओं से बचने का अभ्यास करना हैं ।
-अगर आप को किसी व्यक्ति से मिलने पर बुरा बुरा लगता हैं, घुटन महसूस होती है, दूर भाग जाने को मन करता है, मन मेंं उनकी शकले अच्छी नहीँ लगती हैं, उनके बोल सुनने से चिढ़ होती हैं तॊ यह सिद्व करता है क़ि यह लोग मन मेंं किसी अन्य या आप के प्रति दुर्भावना रखते हैं । तथा दुर्भावना एक बांधा का रूप ले चुकी है ।
- अगर हमारे मन मेंं शुभ भावना और शुभ कामना नहीँ रखते है तॊ यह भी एक बाधा बन जाती है ।
- वह लोग हमारे आसपास होते हैं इसलिए हम एक दूसरे को मन ही मन मेंं नकारात्मक ऊर्जा भेज भेज कर बाधा खड़ी किए रहते हैं ।
-इस बाधा से बचने के लिये आप जब भी इन लोगों के सामने जाते हैं या जब भी भी इन की याद आती है, तुरंत मन मेंं किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों को बाबा की याद की तरंगे भेजते रहा करो ।
-ऐसा करने से आप के ऊपर इन की बुरी भावनाओ का असर नहीँ होगा ।
-जब दूसरों को तरंगे देगें तॊ उनसे आप को बल मिलेगा ।
-केवल अपना ही अपना सोचने की प्रवृति आप के व्यक्तित्व के लिये घातक सिद्व होगा ।
-केवल अपने बारे सोचने की कल्पना एक अदृश्य खाई बना देती हैं ।
-यही वह प्रवृति हैं जो अच्छे खासे बने बनाए संबंधो मेंं दरार डाल देती हैं ।
-बाधा उत्पन करने वाले लोगों को आवश्यक सहयोग देते रहो । स्थूल कार्य करते रहो ।
-अगर आप दूसरों के प्रति दुर्भावनाएं और घृणा तथा अप्रिय प्रसंगो की कल्पना करते रहते हैं तॊ आप अपने लिये अनेक मानसिक एवं शारीरिक व्याधियों को मोल लें लेते हैं ।
-इन व्याधियों से बचने के लिये मन को विश्व सेवा मेंं लगाए रखो ।
अवचेतन मन और भविष्य - जो सोचे सो कैसे पायें ?
-प्रत्येक इंसान में वे सब खूबियां है जो एक सफल इंसान में होनी चाहिये ।
-अधिकतर लोग दूसरो की सफलता के बारे सोचते हैं और अपनी सफलता के बारे नहीं सोचते ।
-जब आप अपनी काबलियत पर ध्यान देंगे तब दूसरो की काबलियत छोटी दिखाई देगी और आप की सफलता की लाइन सब से लम्बी होगी ।
-अधिकतर लोग यह समझते हैं कि उन के पास वह खूबियां, काबलियत, हुनर नहीं है, जिस की वजह से सफलता प्राप्त की जा सकती है । सफलता पाने की सोचने के बजाय खुद को पहले से ही असफल मान लेते है जिस के परिणाम स्वरूप वह असफल हो जाते हैं । इस लिये कहा गया है जो जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है ।
-आप वह सब चीजे पा सकते हैं , उस ऊँचाई तक पहुँच सकते हैं, उस उपलब्धि को पा सकते हैं जिसे आप पाना चाहते हैं । सिर्फ इन्हे पाने के लिये अपनी सोच बदलो ।
-पृथ्वी के गर्भ में बहूमूल्य खनिज छिपे हुये हैं , बाहर से दिखाई नहीं देते फिर भी उन्हे हम ढूंढ निकालते हैं ।
- मनुष्य का मस्तिष्क भी एक खान है । इस में हर प्रकार के खजाने छिपे हुये हैं। इन खजानों को प्राप्त करने के लिये सिर्फ अपनी सोच बदलने की जरूरत है ।
-आप की प्रबल इच्छा, आप की कोशिश, आप की महत्व आकांक्षा, आप का जनून आप को इस काबिल बनाता है कि आप मनचाही चीजे प्राप्त करें ।
-मस्तिष्क एक उपजाऊ जमीन है । सकारात्मक विचार बोने पर सफलता, सुख, खुशी मिलती है । बुरे विचार बोने पर निराशा, असफलता, दुख और परेशानी मिलती है ।
-आप जो कुछ भी कर रहे हैं और जितनी शक्ति से कर रहे हैं , उस से करोडो गुणा शक्ति आप के अन्दर छिपी पड़ी है ।
-इस शक्ति को देख नहीं सकते, कल्पना नहीं कर सकते और न ही तस्वीर खींच सकते हैं ।
-सोच में कई परमाणु बॉम्ब जैसी ताकत है । वह आप में ऊर्जा भर सकती है । असफलता को ब्लास्ट कर सकती है । दुनियां की हर चीज़ को प्राप्त कर सकती हैं ।
- आप खुद तय करते हैं क़ि आप को शिखर पर जाना है या गर्त में जाना हैं । सोच ही स्वर्ग को नर्क और नर्क को स्वर्ग बना देती हैं ।
-मिस्र के पिरामिड, चीन की दीवार, ताजमहल हो या रेडियो, टी वी, मोबाइल, कंप्यूटर व चाँद पर पहुंचना ये सब मनुष्य की सोच का कमाल हैं ।
- मिलटन और सूरदास अंधे थे, बिथोवन बहरे थे, चर्चिल हकलाते थे, सुकरात की पत्नियों ने उसे आजीवन परेशान रखा, फिर भी उन्होने दुनियां को अलग कर के दिखाया ।
-अपनी डिक्शनरी में 'मुश्किल' शब्द को हटा दो । कभी भी सधारण बातचीत में मुश्किल शब्द प्रयोग नहीं करना । इसके स्थान पर चैलेंज शब्द प्रयोग करो ।
- कल्पना और चिंता ( 2 )
- अत्यधिक चिंता का मानव शरीर पर बहुत बुरा और गहरा प्रभाव पड़ता है।
- इससे अनिद्रा, डायरिया, पेट की गड़बड़ी, मांसपेशियों में तनाव, मधुमेह, सिरदर्द तथा मानसिक तनाव जैसे रोग घेर लेते हैं।
-चिंता से असमय में ही सिर के बाल सफेद हो जाते हैं, चेहरे पर झुर्रियां, मुंहासे और उदासी छाने लगती है। चेहरे का आकर्षण समाप्त होकर युवा वृद्ध जैसा दिखाई देने लगता है।
- चिंता पर विजय पाने का क्या तरीका है ।
-अगर कोई काम आपकी पहुंच से परे है तो उसके बारे में बेकार की चिंता करने का कोई औचित्य नहीं है।
- अगर आप किसी काम को ठीक से निभाने में सक्षम नहीं हैं तो उसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।'
-जब आप चिंता से परेशान हों तॊ
-मन को किसी दूसरी ओर लगा लेना चाहिये क्योंकि दूसरे कामों में मन लगाने से मूड में सुधार हो जाता है।
-किसी व्यक्ति को तरंगे देने लगा जाओ ।
-व्यायाम और दूसरी शारीरिक गतिविधियां, हल्का संगीत तथा ध्यान आदि से ही चिंता से तत्कालिक मुक्ति पाई जा सकती है।
- जब आपका उत्तेजित मस्तिष्क शांत हो जाये तो आप अपनी समस्या पर सोचें।
-चिंताएं अक्सर मिथ्या विश्वास के कारण भी पैदा होती हैं।
- ज्यादातर लोगों को यह चिंता होती है कि सब लोग क्या कहेंगे? जग हंसाई होगी आदि।
-प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्याओ मेंं उलझा है कोई किसी के बारे नहीं अपने बारे सोचता हैं ।
-अपने रोटीन कार्य करते हुए किसी न किसी को मन से शांति क़ी तरंगे देते रहो और अपना ध्यान सिर्फ लक्ष्य पर रखें तब आप को कोई चिंता नहीं सतायेगी ।
-कल्पना और परिणाम
-लोहे को लोहा काटता है ।
-लोहे को लोहे की बनी हुई चुम्बक ही आकर्षित करती है ।
-यह नियम बताता है क़ि जैसा आप का व्यक्तित्व होगा वैसे ही व्यक्तित्व के लोगो को आप अपनी ओर आकर्षित करते हैं !
-जैसा आप अन्य लोगों को प्रदान करते है वैसा ही प्रतिफल आप प्रप्त करते हैं ।
-आप सफल विचारों से अन्य व्यक्तियों को सम्पन्न करते हैं तॊ आप को भी सफल विचारों का उपहार मिलता है ।
-आप लोगों पर पुष्प वर्षा करते हैं तॊ आप पर भी निछचित रूप से पुष्प वर्षा ही होगी ।
-आप अन्य लोगों पर धूल फेकेंगे तॊ आप पर भी धूल ही गिरेगी ।
-ऊंचे गुम्बद वाली इमारत मेंं ध्वनि करने पर उसी ध्वनि की प्रति ध्वनि आप को सुनाई देगी ।
-व्यक्ति जैसा बोता है अर्थात कल्पना करता है वैसा ही काटता है अर्थात प्राप्त करता है ।
-ऊंचे गुम्बद वाली इमारत मेंं ध्वनि करने पर उसी ध्वनि की प्रति ध्वनि आप को सुनाई देती है ।
-व्यक्ति जैसा बोता है अर्थात कल्पना करता है वैसा ही काटता अर्थात प्राप्त करता है ।
-बबूल का पेड़ बोने पर कांटो के अतिरिक्त और मिल भी क्या सकता है ।
-इसलिए हमेशा अच्छी कल्पना रूपी विचारों के पेड़ लगाओ ।
-ये सिद्वांत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मेंं लागू होता है ।
-आप लोगों के प्रति जैसी वृति अपनाते है, जैसी भावना रखते है । उन्हे महान, ईमानदार, शांत व प्रेम स्वरूप समझते है ।
-तब आप अन्य लोगों को अपने प्रति वैसी ही वृति अपनाने के लिये बाध्य करते हैं
-विरोधी का वर्तमान स्वरूप चाहे कैसा भी हो और उसके वास्तविक गुण शांत स्वरूप को कल्पना मेंं रिपीट करते रहो ।
-आप उनके प्रति साकारात्मक रुख रखेंगे तॊ वह भी आप के प्रति साकारात्मक भाव रखेंगे ।
-अगर आप उनके प्रति नकारात्मक कल्पना करते है तॊ वह भी आप के प्रति नकारात्मक ही सोचेंगे !
-कल्पना और सीखना
-मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता रहता है ।
-बचपन मेंं उत्साह से सीखते हैं ।
-जैसे जैसे उम्र बढ़ती है सीखने का उत्साह कम होता जाता है ।
-आज बुजुर्ग लोग मोबाइल चलाना नहीँ जानते क्योकि सीखने की इच्छा ही नहीँ है, सीखने का उत्साह नहीँ है ।
-संसार एक पाठशाला है ।
-हम हर पल सीखते हैं ।
-हम मनुष्य से मधुर संगीत सीख सकते हैं ।
-वृक्षों से दान और आश्रय देना सीख सकते हैं ।
-पृथ्वी से सृजन क्षमता सीख सकते हैं ।
-सिर्फ कुछ नवीन सीखने की प्रवृति अपनाए ।
-भवन निर्माता मिस्त्री अपने कार्य पर जाते समय छैनी , फीता, मापक और अन्य समान साथ लेकर चलता है ।
-आप भी अपने जीवन मेंं सफलता के लिये अपने औजार साथ ले कर चलो । ये औजार हैं ।
-लक्ष्य रखो ।
-आशा रखो ।
-साकारात्मक सोच रखो ।
-अपने तथा दूसरों के प्रति श्रेष्ट भावना रखो ।
-परिश्रम की शक्ति मेंं विश्वास रखो ।
-दृढ़ आत्म विश्वास रखें । आप की वह हर इच्छा पूरी होगी जिस के पीछे कल्याण है ।
-व्यक्ति प्यार से, प्रोत्साहन से सीखता है । इन दोनो दिव्य गुणो को जीवन मेंं धारण करो ।
-जो कुछ सीखना चाहते हैं, प्राप्त करना चाहते हैं उसको अपनी कल्पना मेंं अच्छी तरह बिठा लो और हर रोज उसे प्राप्त करने के लिये कोई ना कोई सकारात्मक कार्य करें ।
-यह सब करते हुए बिंदु रूप परमात्मा या इष्ट को याद करते रहें । आप को नई नई प्रेरणाएं प्राप्त होंगी ।
अवचेतन मन को जागृत कैसे करें ।
नियम -8
-नाकारात्मक संकल्प के अंत में ' लेकिन ' शब्द कक प्रयोग करो ।
-अवचेतन मन एक कंप्यूटर है । इसे आदेश चाहिये क़ि क्या करना है । जो हम पल पल संकल्प करते है अवचेतन मन इन संकल्पों को आदेश समझता है और उसी अनुसार कार्य करता है ।
-अवचेतन मन को कार्य करने से रोकने वाले हमारे सूक्ष्म नाकारात्मक संकल्प है । अगर हम इन्हे बदल दे तो अवचेतन मन की शक्तियां कार्य करने लगेगी ।
-हमारे में वह शक्तियों आ जायेगी जो सिध्द पुरुषों में थी । जिन्हे प्राप्त करने के लिये 8 घंटे योग का अभ्यास हर रोज़ करना पड़ता है ।
-हमारा अवचेतन मन शक्तियों का सागर है । हमें मेहनत सिर्फ नाकारात्मक विचारों को बदलने की करनी है ।
- हम अनजाने मै कुछ ऐसे शब्द सोचते, बोलते वा सुनते रहते है जो हमारे अवचेतन मन को जागृत नहीं होने देते ।
-मै बीमार हू पता नहीं क्या होगा, मै यह काम नहीं कर सकता, यह पढाई बहुत कठिन है ।
-अवचेतन मन इन का अर्थ समझता है कि व्यक्ति की बीमारी ठीक नहीं होने देनी है । काम पूरा नहीं होने देना और पढ़ाई में पास नहीं होने देना और वही हमारे साथ घटित होता रहता है ।
-सुबह से लें कर रात तक आप के मन में अनेक प्रकार के नाकारात्मक विचार आते है । मै यह वस्तु नहीं खरीद पाऊँगा क्योंकि बहुत महँगी है । मै लचार हू, मजबूर हू, मेरे बस का नहीं है, मेरी कोई सुनता नहीं । मै अनपढ़ हू ।
-जैसे ही मन में नाकारात्मक विचार आये कि यह काम कठिन है उसके अंत में लेकिन शब्द जोडो । ळेकिन शब्द के बाद अगला सकारात्मक शब्द ही जुडेगा ।
-यह काम कठिन है लेकिन ईश्वर की सहायता से यह कार्य सम्भव है । अकेले इंसान के लिये वह कार्य कठिन हो सकता है, पर आप अकेले कहाँ है, आप के साथ विश्वास तथा विश्व दाता की शक्ति है ।
-हरेक अपने लिये सोचे कि हर नाकारात्मक विचार के पीछे लेकिन शब्द जोड़ कर उसके बाद वह ऐसा कौन सा वाक्य जोड़े जिस से साकारात्मक शक्ति महसूस हो ।
-मै यह वस्तु नहीं खरीद सकूगा क्योंकि महँगी है, इस नाकारात्मक विचार के साथ जोड़े और कहे, मै यह वस्तु अभी नहीं खरीद पाऊगा, लेकिन थोड़े ही समय में पैसे की व्यवस्था कर सकता हू । आप वह प्राप्त कर लेगें ।
-मै बीमार हू लेकिन स्वास्थ्य मेरे अन्दर है, मै ठीक हो जाऊँगा ।
-मुझे बुरा लग रहा है, लेकिन मै इस का रूपान्तरण कर सकता हू ।
- पहला वाक्य अगर साकारात्मक है तो उसके साथ लेकिन शब्द प्रयोग नहीं करना । उसके अंत में 'और' शब्द प्रयोग करो । मै स्वस्थ हू और स्वस्थ ही रहूंगा ।
-हर नाकारात्मक संकल्प के अंत में लेकिन शब्द प्रयोग करो । इस में ही फायदा है ।
- 'लेकिन' शब्द के साथ यह कहना है कि यह सम्भव है । मै शरीर से कमजोर हू लेकिन यह सम्भव है कि फिर से शक्तिशाली बना जा सकता है ।
-लेकिन शब्द जोड़ने से आप के नाकारात्मक विचारो की तकलीफें रुक जायेगी । बुरा वक्त चल रहा है लेकिन यह भी बदल जायेगा ।
-विचार नाकारात्मक है तो असफलता लायेंगे । सकारात्मक है तो सुख शांति और सम्पन्नता लायेंगे ।
-हर पल नाकारात्मक विचार आते रहते है उन्हे आशावादी विचारो में बदलो ।
-हमारे आसपास कुछ् साकारात्मक कुछ नाकारात्मक विचारो के लोग है । हमें नाकारात्मक लोगों के बारे अपना दृष्टिकोण बदलना है । वह गंदा है लेकिन अच्छा कर सकता है ।
-कल्पना और उत्साह
-उत्साह से व्यक्ति 20 घंटे बिना थके अपने कार्यो मेंं संलग्न रह सकता है ।
-उत्साह की लहरे जब आप के मन मेंं होती हैं तॊ सम्पर्क मेंं आने वाले व्यक्ति भी इसे महसूस करते हैं ।
-दूसरे लोगो मेंं भी उत्साह आ जाता हैंं ।
-प्रत्येक समस्या एक चुनौती है ।
-उत्साह से सभी समस्याए खत्म हो जाती हैं ।
--संकट कोई समस्या खड़ी नहीँ करते ।
-संकट मनुष्य को श्रेष्ट प्राप्ति हेतु, व्यक्ति को प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान करते हैं ।
-उत्साह को ओझल न होने दो ।
-उत्साह स्वपनों को मूर्त रूप प्रदान करता है ।
-उत्साह से अनंत ऊर्जा बनती है जो हमें सफल बनाती है ।
-उत्साह से पूर्ण विचार हमारे मन मेंं घूमते रहने चाहिये ।
-कभी भी समस्या से घबराओ नहीँ ।
-जितनी ज्यादा बड़ी समस्या है उतनी ही ज्यादा प्राप्ति भी होगी ।
-मस्तिष्क किसी भी मुश्किल समय मेंं सहायता प्रदान करने के लिये तैयार रहता है ।
-जहां समस्या है वहां अतिरिक्त उत्साह से कार्य मेंं जुट जाए ।
-कठिनाइयों का निवारण क्या है । इसका हल सोचा करो । कल्पना किया करो इसका सकारात्मक अंत कैसे होगा ।
-दिमाग नवीन राह सुझाता है ।
-यह तभी होता है जब हम विगत की भूलो से, गल्तियो से, यह सीखे क़ि भविष्य मेंं हम ऐसी गलती नहीँ करेगें ।
-मानव भूतकाल की अप्रिय घटनाओ को मन मेंं चिपकाए रखता है । व्यर्थ की कल्पनाएं करता रहता है ।
-जिस से अनेक कष्ट, क्लेश और असुविधाओं का सामना करता रहता है ।
-इस से नकरात्मक कल्पनाएं पनपती है ।
-समस्याओ से घबराने से काम नहीँ चलेगा । उनका उत्साह से सामना करना चाहिये ।
-हम किसी यात्रा के लिये वाहन प्रयोग करते है ।
-वाहन को किस गति से चलाएंगे ।
-सुरक्षित गति से चलाएंगे । न अधिक गति न कम गति ।
-जीवन मेंं सफलता के लिये उत्साह की गति को कम न होने दो ।
-उत्साह को बल मिलता है ज्ञान से या अच्छी कल्पनाओ से ।
-अगर हम 20 पेज हर रोज अव्यत मुरली या किसी अन्य सकारात्मक पुस्तक के पढ़ते रहें तॊ उत्साह कभी कम नहीँ होगा ।
-अगर हम अढ़ाई घंटे बैठ कर साधना का अभ्यास करें तॊ हमारा उत्साह कभी कम नहीँ होगा । साधना साकारात्मक कल्पना ही है ।
-अगर हम दस हजार बार परमात्मा के गुण क़ि आप शन्ति के सागर है का सिमरन हर रोज करें तॊ उत्साह सदा बना रहेगा ।
-जब कभी भी उत्साह कम हो तॊ तुरंत पढ़ना या सिमरन या अच्छी अच्छी कल्पनाएं आरम्भ कर देना ।
-रोग और कल्पना
-कल्पना से हम अपना जीवन लंबा और निरोगी बना सकते हैं ।
-जो व्यक्ति छोटी छोटी बातो पर मृत्यु क़ी धमकी देते हैं या मृत्यु क़ी कल्पना करते हैं, वे खुद अपने लिये सर्वनाश को निमंत्रण देते हैं ।
-प्रत्येक व्यक्ति अपने मन और शरीर को स्वस्थ रख कर अपना लंबा सुखी जीवन जी सकते हैं ।
-कल्पना द्वारा आप अपना तन और मन जैसा चाहे बना सकते हैं ।
-पर्याप्त ज्ञान, एकाग्रता और कल्पना के अभाव मेंं एक पहलवान एक इंट भी नहीं तोड़ सकता ।
-एक कुशल कल्पना शक्ति से भरपूर कराटेबाज कई इंटों के ढेर को एक ही प्रहार मेंं तोड़ देता है ।
-इस संसार मेंं बहुत ही कम व्यक्ति हैं जो कल्पना शक्ति से परिचित हैँ ।
-कल्पना मेंं किए गये विचार विद्युत और चुम्बकीय बल से भी ज़्यादा शक्तिशाली हो जाते है ।
-हमारा मस्तिष्क शरीर क़ी प्रत्येक कोशिका से जुड़ा हुआ है ।
-हमारा प्रत्येक विचार व कल्पना हमें रोगी या निरोगी बनाती है ।
-कल्पना मेंं किए गये प्रत्येक विचार से हार्मोन या केमिकल बनते हैं ।
-हमारा वर्तमान शरीर भूतकाल मेंं क़ी गई कल्पनाओ के अनुरूप है ।
-कल्पना और उत्साह
-व्यक्ति अपने उत्साह से दुष्कर से दुष्कर कार्य हंसते हंसते सम्पन्न कर लेता है ।
--जब खिलाड़ी छक्का लगाता है तॊ लोगो मेंं उत्साह की लहर दौड़ जाती है ।
-खिलाड़ी रन नहीं बना रहा है तॊ दर्शक उसे कार्ड दिखा दिखा कर उत्साहित करते हैंं क़ि वह चौका या छक्का लगाए ।
-ऐसे ही जीवन मेंं रोमांच की जरूरत है ।
-रोमांच उत्साह पैदा करता है ।
-उत्साह वांछित क्षेत्र मेंं सफलता प्राप्ति हेतु तीव्रगति से प्रेरित करता है ।
-नन्हे बच्चे से अपनी मानसिक तुलना करें ।
-बच्चे के अंदर उत्साह तरंगे अपना जौहर दिखा रही हैं ।
-आप के अंदर ऐसा तत्व उपस्थित नहीँ लग रहा है ।
-इसका प्रमुख कारण है मनुष्य अकारण ही अपनी मनोवृति को विपरीत दिशा मेंं मोड़ लेता है ।
-स्वंय को निरुत्साहित बना लेता है ।
-इसी कारण लक्ष्य से भटक जाता है ।
-उत्साह कुछ कर गुजरने हेतू प्रचंड अग्नि को दहका देता है ।
-उत्साह, आत्मविश्वास, जिज्ञासा से आप बड़े से बड़ा कार्य करने का जोखिम उठा लेता है ।
-जितना परमात्मा को मन से याद करेंगे उतना ही उत्साह बना रहेगा ।
-आप जो भी कार्य करते हैंं उसे यहां सोच कर करो की इसका प्रभाव विश्व पर पड़ेगा ।
-कल्पना मेंं दौड़ते हुए घोडो को देखते रहो या कोई और चीजे जो बहुत तेजी से दौड़ती हैं उन्हे देखते रहो । आप मेंं उत्साह बना रहेगा ।
-भागती हुई चीजे हमारे आज्ञा चक्र पर डायरेक्ट असर करती हैं । हमारा मन एकाग्र हो जाता हैंं । मन एकाग्र होने से मानसिक शक्ति बढ़ जाती हैंं । जिस से हम उत्साहित हो जाते हैंं ।
-भागती हुई वह चीजे देखनी हैंं जिस से साकारात्मक कार्य होते हैंं ।
-एक शेर को हिरन के पीछे भागता हुआ, एक बिल्ली को चूहे के पीछे भागता हुआ, एक कुते को बिल्ली के पीछे भागता हुआ, पुलीस को चोर के पीछे भागता हुआ ना देखें क्योकि इन का लक्ष्य किसी की हत्या हैंं । ऐसी सीन देखने से नकारात्मक बल पैदा होता हैंं । जिस से उत्साह धीमा हो जाता है ।
-कल्पना मेंं सर्कस के रोमांचकारी दृश्य देखते रहो ।
-पार्क मेंं या अन्य स्थानो पर व्यायाम के लिये तेज गति से दौड़ते हुए लोगो को खासकर जवान लोगो को देखते रहने से आप का उत्साह बढा रहेगा ।
-उगते हुए सूर्य को कल्पना मेंं देखते रहने से उत्साह बना रहता हैंं !
-प्यार से भरे देश भक्ति के गीत सुनने से उत्साह बना रहेगा ।
-यहां सब कार्य करते हुए बिंदु रूप परमात्मा या अपने इष्ट को कल्पना मेंं देखते रहो आप का उत्साह बना रहेगा ।
-कल्पना और शिक्षा
- कल्पना ज्ञान से अधिक शक्तिशाली है।
-अभी तक हम जिस कल्पना शक्ति से परिचित हैं, वह कल्पना का सिर्फ प्रारंभिक रूप है।
-आज जितनी भी समस्याए संसार मेंं हैं उन का मूल कारण हमारे दिमाग का दायां भाग हैं ।
-हमें कोई विघ्न आ जाए कोई समस्या आ जाए ।
-किसी से थोड़ा बहुत मन मुटाव हो जाए ।।
-हमारे को कोई अप शब्द बोल दे ।
-हमें कोई रोग लग जाए ।
-हमारा कोई सम्मान न करे ।
-बस तभी गलत कल्पनाएं करने लगते हैं, गलत सोचने लगते हैं ।
-यह न हों जाए वह न हो जाए ।
-अमुक व्यक्ति को कैसे सबक पहुचना है । उसे कैसे प्रताड़ित करना है । उसे रास्ते से कैसे हटाना है । उसे कैसे दबाना है ।
-ज्यादातर व्यक्ति गलत हल ही सोचता है और गलत कल्पना ही करता हैं ।
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-ये जो कल्पना करते हैं वही कार्य देर सबेर हकीकत मेंं भी होने लगते हैं ।
-यही कारण हैं आज संसार मेंं प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी से परेशान है।
-संसार को सुखी बनाने का सब से आसान तरीका है आप के सम्पर्क में जितने भी व्यक्ति है सिर्फ उन के प्रति अच्छा सोचना है चाहे वह कितने भी गलत हों और उनका आर्थिक नुकसान नहीं करना !
आत्मविश्वास
-आत्म विश्वास एक गुण है जिसके अधार से असम्भव काम सम्भव हो सकता है ।
-नाकारात्मक मन के लिये आत्मविशवास एक ऐसी दवा है जिसके पीने से मन की दुविधा ख़त्म हो जाती है ।
-आत्म विशवास का ऊपरी अर्थ हम सभी जानते है ।
-जब हम विश्वास करते हैं उस समय हमारे मन में सब से शक्तिशाली तरंगे पैदा होती हैं जिस से भय और चिंता की नाकारात्मक तरंगे नष्ट हो जाती हैं ।
-इस शक्ति से हम दुनियां की सभी चीजे और सफलताएं प्राप्त कर सकते हैं ।
-अगर आप नफरत और द्वेष का तुरंत शिकार हो जाते हैं तो समझो आप में विश्वास की कमी है ।
-जिस मन में विश्वास होत है वह सुंदर होता है और सुंदर मन से खुश्बु निकलती है जो सब को आकर्षित करती है ।
- विश्वास की यह तरंग जो आप के अन्दर है, उन चीजो को आप की ओर आकर्षित करेगी जो आप चाहते हैं ।
--आप अलग अलग चमत्कार पढ़ते और सुनते हैं तो सोचते हैं मेरे जीवन में कब चमत्कार होगा ।
-यह संसार नियमों से काम करता है । विश्वाश ही नियम है । अगर विश्वास नहीं करेगें तो चमत्कार नहीं होगा ।
-जिन लोगो के मन में विश्वास होता है, उनके साथ अपने आप को सुरक्षित महसूस करते हैं ।
-अपने आप से पूछे कि लोग आप के साथ रहना पसंद करते हैं या नहीं ।अगर आप के साथ मजबूरी से रह रहे हैं, क्योंकि आप की मनोपली है और उन के लिये पापी पेट का सवाल है । तो आज से ही अपने विचार बदलें । नहीं तो आप का पूरा जीवन प्यार से वंचित रहेगा । आप के अवचेतन मन की शक्तियां नष्ट होती रहेगी ।
-अगर आप के मन में किसी भी कारण से दुख आता है तो इस दुख की वजह से आत्म विश्वास डोलता है जिस से आप की मनचाही सिद्वि आप से दूर होती जायेगी ।
-सिर्फ पूरा ज्ञान न होने की वजह से विश्वास दबा हुआ रहता है और कभी कभी ही प्रकट होता है ।
-मुझे विश्वास था यही सब होने वाला है । यह संदेह ही विश्वास का दुश्मन है, जो दोस्ती की नकाब में अपने ही दोस्त का धीरे धीरे खात्मा करता है ।
-आज हर इंसान कहेगा मुझे विश्वास नहीं है ।
-किसी को ईश्वर के होने में विश्वास है तो किसी को उसके ना होने में विश्वास है ।
-यदि आप यह विश्वास रखते हैं कि कोई काम आप कर सकते हैं या वह काम नहीं कर सकते तो दोनो अवस्थाओं में आप को अपने विश्वास अनुसार फल मिलता है ।
-विश्वास वाला बाधाओं के फल स्वरूप काम को पूरा करता है । अविश्वास वाला थोड़ी सी बाधा आने पर ही काम को रोक देता है ।
-कल्पना और चमत्कार
-मस्तिष्क आपको उपहारो से लादने को तैयार है । मस्तिष्क आप की सेवा करने को तैयार है । दिमाग आप का संकेत पाने की इंतजार कर रहा है ।
-मस्तिष्क संकेत तब देता है ।
-जब आप गहन योग मेंं रहते है ।
-जब आप गहन मनसा सेवा मेंं व्यस्त ररहते है ।
--जब आप शुद्ध खान पान, शुद्ध चाल चलन से मन को शांत बना लेते हैंं और इतना शांत जितना कि म हम नींद मेंं शांत होते है । तब हमें चमत्कार करने वाले विचार और शक्ति आने लगती है ।
- मस्तिष्क हमें नई नई प्रेरणाएं देता है जब हम केवल विकास की कल्पनाएं करते है और कल्याण की योजनाओ की कल्पना करते रहते है ।
-यह दिमाग मेंं पक्का बिठा लो क़ि परिवर्तन ही जीवन है ।
-समय और नियति निरंतर चक्राकार गति मेंं घूम रहें है ।
-जब हम कल्पना करते है तॊ समय की गति से भी तेज चलने लगते है और नियति मेंं हमारे लिये क्या है हम उस चक्र से जुड़ जाते है और उसी अनुसार कार्य करने लगते है । तब हम निंदा-स्तुति, मान-अपमान मेंं एक समान रहते है ।
-परिवर्तन की धारा मेंं केवल व्यक्ति ही नहीं महान राष्ट्र तक फंसे हुए हैंं ।
-मानव और देश समृद्वि का अभाव और दुविधाओं को झेल रहे हैंं ।
-जो व्यक्ति आज स्वामी हैंं वह कभी सेवक था ।
-जहां आज पर्वत हैंं कभी सागर था ।
-परिवर्तन ऊपर की ओर तथा नीचे की ओर होता है ।
-इसी को विकास और पतन कहते हैंं ।
-नाते, रिश्तेदार, सगे संबंधी मित्रगण केवल एक निछचित सीमा तक ही सहयोग प्रदान करते हैंं ।
-मस्तिष्क के द्वारा हम अनंत शक्तियो के स्त्रोत परमपिता परमात्मा से अथाह सहयोग प्राप्त कर सकते है ।
-इसकी सहज विधि है हर पल परमात्मा को याद करते रहें और मन मेंं नई नई कल्पना करते रहो ।
-कल्पना की शक्ति प्रत्येक मनुष्य मेंं है और मनुष्य प्रायः व्यर्थ की कल्पना करता रहता है जिस से कल्पना शक्ति कमजोर हो गई है ।
-मन मेंं टकराव से बचना है । मन मेंं कल्याण की भावना रखने से कल्पना की शक्ति बढ़ती है ।
-हर रोज अगर हम अव्यक्त मुरली की कोई बुक या कोई अन्य पुस्तक के 20-25 पेज साकारात्मक विषयो पर पढ़ते रहें तॊ हमारी कल्पना हिलोरे लेने लगेगी ।
-कहते है अगर हम 3 दिन और रात बिना पलक झपके किसी चीज को कल्पना मेंं देखते रहें तॊ वह वस्तु भौतिक दुनिया मेंं सचमुच दिखने लगेगी । परन्तु यह खोज का विषय है ।
अवचेतन मन -9-अवचेतन मन को जागृत कैसे करें ?
नियम - 6
-एकाग्रता
-लेंस में से सूर्य प्रकाश गुजारने पर कागज जलने लगता है ।
-एक लीटर पेट्रोल को हम यू ही उंडेल दे तो उस से कुछ नहीं होगा । यदि उसी तेल को गाड़ी में डाल दिया जाये तो एक लिटर से हम 80 किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं ।
-यह दर्शाता है कि एकाग्रता से शक्ति उत्पन्न होती है ।
-शक्ति बल का सूचक है। आध्यात्मिक बल, बौद्धिक शक्ति, नैतिक बल, मानसिक बल, शारीरिक बल, प्राण शक्ति आदि मुख्य बल कहलाते है ।
- संसार ने आध्यात्मिक बल को ही सर्वोच्च बल स्वीकार किया है और इस बल या सम्पूर्ण बलों का एकमात्र केन्द्र आत्मा या परमात्मा है ।
-मानव-जीवन का प्रधान संचालन से मन-बुद्धि के द्वारा ही हम होते देखते हैं, इसीलिये मनोबल पर ही विचार करने की जरूरत है़ ।
-मन में ये बल कहां से और कैसे आते हैं ?
-एकाग्रता से मन में शक्ति आती है। विचार करने से लगता है कि एकाग्रता की दशा में अवश्य ही शक्ति, या शक्तियों का प्रवेश मन में होने लगता है, किन्तु इससे यह पता नहीं लगता कि इसका केन्द्र भी मनः स्तर ही है।
- एकाग्र स्थिति में होता यही है कि मानसिक चेतना की बिखरी हुई शक्तियाँ एकत्रित और एकीभूत होकर एक बड़ी और विशाल मानसिक शक्ति बन जाती है ।
- मन की एकाग्र दशा में उसका बल अवश्य ही बढ़ने लगता है। जितना ही अधिक मन एकाग्र होता है उतना ही अधिक बलशाली होता जाता है, ऐसा अनेकों का अनुभव है।
-जितना मन बिखरता है—विभिन्न इच्छाओं-विचारों और कामनाओं का संचरण और गति करता है, उतना ही यह निर्बल और क्षीण शक्ति वाला होता जाता है।
- मन को स्थिर और शान्त रखने में असमर्थ व्यक्ति किसी काम को लगन के साथ नहीं कर पाते।
-वह जो कुछ काम करता है खण्डित मन से करता है। मन की चंचल गति उस कार्य की सफलता पर विश्वास नहीं करने देती। परिणाम यह होता है कि कार्य की विफलता के साथ ही उसकी शक्ति भी व्यर्थ खर्च हो जाती है और यह असफलता उसकी शक्तियों को भी क्रमशः क्षीण और निरुत्साहित करता रहता है।
-एकाग्र मनोदशा में जो मानसिक बलों की वृद्धि होती है, उस बल का केन्द्र कहाँ है, इसे तो हम साधारण विचार से नहीं देख सकते, पर अनुभव यह कहता है कि मन की एकाग्र और शान्त दशा उसकी बलवृद्धि का कारण है।
-मानसिक शक्ति बढ़ाने के दो उपाय हैं:—एक वर्तमान शक्ति को नष्ट होने से रोकना और दूसरा नई शक्ति की प्राप्ति की चेष्टा करना।
- मानसिक शक्ति का विनाश मन को रचनात्मक काम में लगाने के अभ्यास से रोका जा सकता है।
- जब मनुष्य किसी कार्य में सफल हो जाता है तो उसका आत्म विश्वास बढ़ जाता है। आत्मविश्वास की वृद्धि, चरित्रनिर्माण का केन्द्र है।
- जब मनुष्य में ख्याति से दम्भ आ जाता है तो उसकी ख्याति ही उसे खा जाती है। अतएव मनुष्य को सदा रचनात्मक काम में लगे रहना चाहिये। रचनात्मक कार्य वह है, जिससे किसी प्रकार का अपना और दूसरे लोगों का कल्याण हो, जिसके करने के पश्चात् आत्मग्लानि न होकर आत्म संतुष्टि की अनुभूति हो।
-मानसिक शक्ति की वृद्धि, उसका अपव्यय रोकने से भी होती है। मानसिक शक्ति का अपव्यय सदा संकल्प-विकल्प को चलते रहने देने से होता है।
-इनको रोकने के लिये किसी शुद्ध संकल्प को मन में दोहराते रहो ।
- मानसिक शक्ति का उत्पादन अपने आदर्श पर मनन करने से होता है। जो मनुष्य जितना ही अधिक अपने आदर्श के विषय में चिन्तन करता है वह उतना ही शक्तिशाली बनता है ।
-मन में जिस व्यक्ति वा वस्तु के बारे सोचते है, उसी से मन शक्ति लेने लगता है ।
- इसलिये कोई न कोई अच्छा शब्द मन में दोहराते रहो जैसे आत्मा या परमात्मा या कोई इष्ट या कोई फूल या कोई पेड़ या कोई बगीचा मन मेंं देखते रहें तो इस से से मन एकाग्र रहेगा ।
-कल्पना और आविष्कार
-जब आप शांतचित्तता से, बिना किसी दुविधा के धैर्य रखते हुए अपने मस्तिष्क को स्वतंत्रता से कार्य करने मेंं सलंगन रखते हैंं और नई नई कल्पनाएं करते रहते है, तब दिमाग विद्युत धारा से भी तीव्र गति से समाधन उपलब्ध करा देता है ।
-जब मस्तिष्क बोझिल न हो, जब आप गहन विश्राम अवस्था मेंं हो, आप जागृत रूप मेंं इतने आनंद मेंं हो जैसे हम नींद मेंं आनंद मेंं होते हैंं अर्थात जगते हुए भी हमें इस दुनिया का बोध न हो जैसे हम नींद मेंं बेहोश होते हैंं उसी तरह हम जगते हुए भी आराम मेंं रहें ।
-ऐसी मानसिक दशा मेंं हमारे दिमाग से नई नई खोजें नए नए आविष्कार निकलते हैंं । जिसे चमत्कार कहते हैंं । यह चमत्कार कोई भी कर सकता है ।
-बिजली की मोटर के आविष्कारक एक जिल्द साज थे ।
-फोटोग्राफी के आविष्कारक एक सैन्य अधिकारी थे ।
-तार प्रणाली के खोज कर्ता एक चित्रकार थे ।
-टाईपराईटर की रचना एक किसान ने की थी ।
-सिलाई मशीन के पिता एक कवि थे ।
-कपास जिनिग मशीन का रचनाकर एक बढ़ई था ।
-रेलवे का इंजिन एक कोयला खनिक के मस्तिष्क की उपज था ।
-बोलने वाली मशीन एक वस्त्र विक्रेता के रात्रिकालीन समय के उपयोग का परिणाम था ।
-प्रथम हवायुक्त टायर की रचना एक चिकित्सक ने अपने असहाय पुत्र की सहायतार्थ कर डाली ।
-ऐसी अवस्था तब होगी जब आप पर कोई आदेश न हो । आप जब चाहे सो जाए, जब चाहे जग जाए । जब चाहे कार्य करें जब चाहे ना करें ।
-ऐसी अवस्था तब आएगी जब आप निरंतर बुक्स पढेगे । 5 मिनिट या एक मिनिट मिले आप तुरंत पढेगे ।
-अगर आप एक दिन भी नहीं पढ़ते है तॊ समझो आप का थोड़ा पतन हो गया है ।
-ऐसी अवस्था तब बनेगी जब आप निरंतर योग लगाते हुये हर पल किसी ना किसी की मंसा सेवा करेंगे ।
-जब आप पढ रहें होते हैं उस समय आप को नए नए विचार आएंगे । बस उन विचारों को तुरंत लिखा लेना है ।
आज्ञा चक्र -95-अवचेतन मन -8 -अवचेतन मन को जागृत कैसे करें ?
-नियम -5
-लक्ष्य निर्धारित करो ।
-कोई व्यक्ति भले ही चुपचाप बैठा रहे, उस स्थिति में भी मस्तिष्क कुछ ना कुछ सोचता रहता है, विचार करता रहता है और ज्यादातर ऐसे समय जो विचार चलते है वह अस्त व्यस्त और अप्रासंगिक होते है ।
-अस्त व्यस्त विचार भी प्रभाव छोड़े बिना नहीं रहते ।
-यह चिंतन मस्तिष्क में थोड़ी सी हल चल उत्पन्न कर के अंतरिक्ष में विलीन हो जाते है ।
-विचार और चिंतन की क्रियाएँ दिखाई नहीं देती, वे अदृश्य रहती है ।
-मनुष्य जितने भी कर्म करता है उसकी जड़े इसी क्षेत्र में होती हैं । स्थूल कर्म इसी अदृश्य क्रिया के फलस्वरूप होते हैं ।
-जो कुछ किया जाता है यू अनायास नहीं होता, उस का ताना बाना बहुत पहले से मन में बुना जाता है ।
-जो लोग निरर्थक कामों में अपना समय और मेहनत बर्बाद करते है, उन की भर्त्सना की जाती है और उन्हे नासमझ और मूर्ख समझा जाता है ।
-क्योंकि जो लाभ उठाया जा सकता था वह उस से वंचित रह जाते हैं ।
-यदि किसी निर्धारित लक्ष्य पर देर तक गम्भीरता पूर्वक चिंतन कर सकने की आदत पड़ जाये तो आशातीत उपलब्धिया प्राप्त की जा सकती हैं ।
-विज्ञानिक, कलाकार, विचारक और बुधिजीवी समान्य मनुष्य होते हुये भी असामान्य इसलिये बने क्योंकि उन्होने अपने विचार अपने लक्ष्य पर लगाये रखे ।
-दूसरो के बारे हमारे बुरे विचार शीघ्रता से गुप्त रुप से उन तक पहुंच जाते है और अपना भेद उन्हे बता देते है । जिस से अनजाने में ही एक दूसरे के प्रति दुर्भावना पैदा होने लगती है ।
-जीवन के साथ असंख्य समस्याएँ जुड़ी हुई है । इनपर विजय प्राप्त करने के लिये आपको अपने जीवन का एक लक्ष्य जरुर होना चाहिए ।
-लक्ष्य तभी सच होते हैं जब उन्हें पूरा करने के लिए हम अपनी नीद तक का त्याग कर देते हैं ।
-आप यह निश्चित करें कि आप अपने जीवन में क्या बनना चाहते हैं या क्या हासिल करना चाहते हैं , योगी, धनवान, वकील, डॉक्टर, लेखक, कलाकार या और कुछ ।
-किसी भी लक्ष्य में विशेषज्ञता हासिल करने के लिये 10000 घंटे लगाने पड़ते हैं ।
-जिस क्षेत्र में जितने समय में महारत चाहते हैं उस पर प्रति दिन के हिसाब से मिनिमम काम ज़रूर करो ।
- लोग खूब सपने बुनते है जब उसपर अमल करने की बारी आती है तो कल पर टाल देते हैं ।
-जो करना है आज अभी करना है कल पर कभी कोई कार्य अधूरा न छोड़े।
-यह निश्चित नही है कि आप जिस क्षेत्र में नाम हासिल करना चाहते हैं उसमे एकाएक ही सफलता हासिल कर ले, हो सकता है कि उसमे शुरू में पराजित भी होना पड़े लेकिन असली जीत वही होती है जो हार कर भी जीत जायें ।
-हर विपरीत स्थिति में, एकांत में, मन की नीरस अवस्था हो, कुछ समझ नहीं आता क्या करें, मन की डल स्टेज हो जाती है, ज्ञान की कोई पोइंट याद नहीं आती, उस समय मन में एक शब्द अपने लक्ष्य का एक शब्द, मैं निरंतर योगी हूं, सहज योगी हूं, अखंड योगी हूं, या सिर्फ योगी योगी योगी योगी दोहराते रहे । आप के इस संकल्प से आप का मनोबल फिर बढ़ जायेगा ।
-ऐसे ही दूसरे लक्ष्यों का एक शब्द, डॉक्टर या वकील या इंजिनियर या आई ए एस जो भी बनना चाह्ते हैं खाली समय में मन में गीत की तरह गाते रहो ।
-कल्पना और चिंता
-हम हद से ज़्यादा चिंता करते है ।
-जब कोई हर पल चिंता करता है तब उसकी कल्पना तेजी से कार्य करती है ।
-अगर हम उन समस्याओ की चिंता करते है जो अभी तक हैँ ही नहीं तॊ कल्पना करने से ऐसी समस्याए सचमुच हो जाएगी ।
-अगर आप को किसी से गलत फहमी हो गई हैँ तॊ सोच सोच कर ये एक पहाड़ बन जाएगी ।
- कठिनाइयां सब के जीवन मेंं आती हैँ । आप जो चाहते हैँ बस उन कार्यो के बारे सोचा करो । सब कुछ ठीक होने लगेगा ।
-सभी अपने बच्चों को महान बनाना चाहते हैँ उन्हे अच्छी कल्पनाएं करना सिखलाएं । इसके लिये उन्हे परी लोक की कहानियां पढ़ने को दें ।
-आप अपने बच्चे को अधिक प्रतिभाशाली बनाना चाहते हैँ तॊ उसे अधिक परीकथाए पढ़ने को दें ।
-आप का समय पास नहीं होता या विघ्नों से घिर गये हैँ रास्ता नजर नहीं आता, सोचते हैँ पता नहीं अब क्या होगा तॊ आप भी परीलोक की कहानिया पढे ।
-वस्तुओ को अपनी ओर आकर्षित करना और उन्हे अपने पास रखना पृथ्वी का धर्म हैँ ।
-जल का धर्म हैँ बहना ।
- अग्नि का धर्म हैँ जलना ।
-वायु का धर्म हैँ गति प्रदान करना ।
-मन का धर्म हैँ सोचना । हमारा मन जन्म से लेकर मृत्यु तक सोचता ही रहता हैँ । यहाँ तक की नींद मेंं भी मन सोचता रहता है ।
-मनुष्य मस्तिष्क को सदैव ही अद्वभुत विचारों के सृजन मेंं लगाए रखना है ।
-उचित दिशा निर्देश के अभाव मेंं मस्तिष्क अपनी रचनात्मक क्षमता के विपरीत दिशा मेंं ध्वंसातमक कार्य करने मेंं लगा रहता है ।
-नकारात्मक दृष्टिकोण से इसे बचाए रखें तथा विषतुल्य भावनाओ तथा ईर्ष्या -द्वेष आदि की कल्पनाओ से इसे मुक्त रखें ।
-आप अपने मस्तिष्क की क्षमताओं का विकास कर सकते हैँ ।
-इस के लिये सदैव कुछ-न-कुछ नई रचना करते रहें ।
-साकारात्मक कल्पनाओ से आप अनेक उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैँ ।
मानव मस्तिष्क विश्व की सर्वश्रेष्ठ धरोहर है जो व्यक्ति को सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुचाने मेंं अतुलनीय योगदान करता है
-आप जो भी पढ़ते है, सीखते है अथवा अनुभव करते हैंं वह सब मस्तिष्क मेंं सुरक्षित है ।
-जब आप अच्छी कल्पनाएं करते है या भगवान अथवा इष्ट को याद करते है तॊ मन मेंं जमा खजाना बाहर आ जाता है ।
-भगवान को याद करना भी और कुछ नहीं एक अच्छी कल्पना ही तॊ है ।
-अगर व्यक्ति मर रहा हो तॊ मरते मरते भी अच्छी अच्छी कल्पनाएं या मंसा सेवा करते हुए ही मरना चाहिये ।
-आज्ञा चक्र -94- अवचेतन मन -7
-अवचेतन मन को जागृत करने के नियम ।
नियम -3
-बुक्स पढ़ना
-बुद्वि एक अवरोध है यह जल्दी से किसी बात को स्वीकार नहीं करती । कोई चीज़ लिखी हुई हो तो बुद्वि मान जाती है । इसलिए कोई नई चीज़ किसी को बताये तो लोग कहते है, ये कँहा लिखा हुआ है ।
-दुनियां का हर नियम बुक्स में लिखा हुआ है ।
:
-पुस्तकें पढ़ते पढ़ते हम डॉक्टर, वकील, इंजिनियर या पंडित बन जाते है ।
- जिस भी क्षेत्र में बढ़ना चाहते है । उसकी बुक्स पढा करो । कम से कम महीने में एक नई बुक पढ़ो । अगर आप एक दिन में एक बुक पढे तो विश्व के टोप 10 लोगो में पहुंच जायेंगे ।
नियम-4
-कम से कम 10 हज़ार शुध्द संकल्प ।
-हमारे मन में 5 मुख्य और 5 सूक्ष्म विकारों के इलावा भी अनेक प्रकार के संकल्प, विकल्प चलते रहते हैं । जिनके कारण हमारे पर नाकारात्मकता का असर होता रहता है, हमारी सूक्ष्म शक्ति नष्ट होती रहती है और हम मन चाहे काम नहीं कर पाते ।
-किसी मोटर को चालू करने के लिये 240 बोल्ट बिजली की जरूरत होती है ।
-किसी मोबाइल, टी वी, रेडियो को चलाने लिये 12 बोल्ट विद्युत की जरूरत होती है ।
-शरीर को स्वस्थ रखने लिये शरीर का तापमान 98.4 होना चाहिये ।
-पानी को उबालने लिये 100 डिग्री का ताप चाहिये ।
-शरीर को शक्तिशाली रखने लिये प्रत्येक दिन 5-10 चपाती तथा दूध, चाय, फल और सब्जियों की जरूरत होती है ।
-ऐसे ही अवचेतन मन से काम लेने के लिये कम से कम 10000 शुद संकल्पों की हर रोज़ जरूरत होती ।
-अगर आप 20-25 पेज हर रोज़ अव्यक्त मुरली की बुक या कोई अन्य साकारात्मक बुक पढ़ते है तो उस से भी 10000 शब्द पूरे हो जाते है ।
-अगर आप अढाई घंटा योग लगाते है तब भी ये संकल्प पूरे हो जाते है ।
-अगर आप एक शब्द बाबा आप शांति के सागर है इसे रिपीट करते रहते है तो इस से भी वही बल बनता है ।
-जिस दिन किसी विकार का असर हो रहा हो, खुशी गुम हो रही हो, उत्साह न हो तो यह पाप कर्म के कारण नहीं बल्कि आप के शुध्द संकल्प दस हजार से कम रह गये है इसलिये हो रहा है ।
-चाहे आप कितने ही नामी ग्रामी है अगर 10 हजार से कम शुध्द संकल्प करेगें तो आप का पतन आरम्भ हो जायेगा ।
-अगर अज्ञानी भी दस हजार शुध्द संकल्प हर रोज़ मन में लोरी की तरह गाते रहे तो उन का भी अवचेतन मन कमाल करने लगेगा ।
-ये नियम यूनिवर्सल है ।
-संसार में दुःख अशांति का मूल कारण यही है कि कोई इस नियम को जानता नहीं । धार्मिक लोग भी पाठ कर लेते है जिसके शुध्द शब्द 10 हज़ार से कम बनते है । इसलिये ये लोग भी दुखी रहते है, भिड़ते रहते है, पतित कार्य करने लगते है ।
-जैसे हम हजार काम छोड़ कर भोजन ज़रूर खाते है, ऐसे ही हमें हर रोज़ चाहे कुछ भी हो जायें अपने लिये 10 हजार शुद संकल्पों का बल ज़रूर इकठ्ठा करना है । इस से हमारा चेतन मन हमारे बस में रहेगा और हमारे सभी कार्य ऑटोमेटिक होने लगेंगे ।
श्रीमद भगवत गीता अध्याय 6 गतांक
श्री भगवान उवाच
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥ (१०)
भावार्थ : ऎसा मनुष्य निरन्तर मन सहित शरीर से किसी भी वस्तु के प्रति आकर्षित हुए बिना तथा किसी भी वस्तु का संग्रह किये बिना परमात्मा के ध्यान में एक ही भाव से स्थित रहने वाला होता है।
(योग में स्थित होने की विधि और लक्षण)
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।
नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥ (११)
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥ (१२)
भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये मनुष्य को एकान्त स्थान में पवित्र भूमि में न तो बहुत ऊँचा और न ही बहुत नीचा, कुशा के आसन पर मुलायम वस्त्र या मृगछाला बिछाकर, उस पर दृड़ता-पूर्वक बैठकर, मन को एक बिन्दु पर स्थित करके, चित्त और इन्द्रिओं की क्रियाओं को वश में रखते हुए अन्तःकरण की शुद्धि के लिए योग का अभ्यास करना चाहिये। (११,१२)
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥ (१३)
प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः ।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥ (१४)
भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये मनुष्य को अपने शरीर, गर्दन तथा सिर को अचल और स्थिर रखकर, नासिका के आगे के सिरे पर दृष्टि स्थित करके, इधर-उधर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ, बिना किसी भय से, इन्द्रिय विषयों से मुक्त ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित, मन को भली-भाँति शांत करके, मुझे अपना लक्ष्य बनाकर और मेरे ही आश्रय होकर, अपने मन को मुझमें स्थिर करके, मनुष्य को अपने हृदय
@#अवचेतन मन का रहस्य - Biggest Mysteries of the #SubconsciousMind and #Law of Attraction-