भगवान श्रीकृष्ण के आइए जानें 24 अनजाने तथ्य... Know Lord Krishna's 24 Unknowing facts .. लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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रविवार, 19 मई 2019

भगवान श्रीकृष्ण के आइए जानें 24 अनजाने तथ्य... Know Lord Krishna's 24 Unknowing facts ..

भगवान श्रीकृष्ण के आठ विवाह और उनके अस्सी पुत्रों की कथा 

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पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण ने 8 स्त्रियों से विवाह किया था जो उनकी पटरानियां बानी थी। ये थी – रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रविंदा, सत्या(नाग्नजिती), भद्रा और लक्ष्मणा। प्रत्येक पत्नी से उन्हें 10 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी इस तरह से उनके 80 पुत्र थे। आज हम आपको श्री कृष्ण की 8 रानियों और 80 पुत्रों के बारे में बताएँगे।


1. रुक्मिणी विदर्भ राज्य का भीष्म नामक एक वीर राजा था। उसकी पुत्री का नाम रुक्मिणी था। वह साक्षात लक्ष्मीजी का ही अंश थीं। वह अत्यधिक सुंदर और सभी गुणों वाली थी। नारद जी द्वारा श्रीकृष्ण के गुणों सा वर्णन सुनने पर रुक्मिणी श्रीकृष्ण से ही विवाह करना चाहती थी। रुक्मिणी के रूप और गुणों की चर्चा सुनकर भगवान कृष्ण ने भी रुक्मिणी के साथ विवाह करने का निश्चय कर लिया था।
रुक्मिणी का एक भाई था, जिसना नाम रुक्मि था। उसने रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से साथ तय कर दिया था। जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली तो वे विवाह से एक दिन पहले बलपूर्वक रुक्मिणी का हरण कर द्वारका ले गए। द्वारका पहुंचने के बाद श्रीकृष्ण और रुक्मिणी का विवाह किया गया। रुकमणी के दस पुत्र पैदा हुये।
रूक्मिणी के पुत्रों के ये नाम थे  प्रद्युम्न, चारूदेष्ण, सुदेष्ण, चारूदेह, सुचारू, विचारू, चारू, चरूगुप्त, भद्रचारू, चारूचंद्र।

2. जाम्बवती सत्राजित नामक एक यादव था। उसने भगवान सूर्य की बहुत भक्ति की। जिससे खुश होकर भगवान ने उसे एक मणि प्रदान की थी। भगवान कृष्ण ने सत्राजित को वह मणि राजा उग्रसेन को भेंट करने को कहा, लेकिन सत्राजित ने उनकी बात नहीं मानी और मणि अपने पास ही रखी। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को लेकर जंगल में शिकार करने गया। वहां एक शेर ने प्रसेन का वध करके वह मणि छीन ली और अपनी गुफा में जा छिपा। कुछ दिनों बाद ऋक्षराज जाम्बवन्त ने शेर को मारकर वह मणि अपने पास रख ली।
सत्राजित ने मणि चुराने और अपने भाई का वध करने का दोष श्रीकृष्ण पर लगा। इस दोष के मुक्ति पाने के लिए श्रीकृष्ण उस मणि की खोज करने के लिए वन में गए। मणि की रोशनी से श्रीकृष्ण उस गुफा तक पहुंच गए, जहां जाम्बवन्त और उसकी पुत्री जाम्बवती रहती थी। श्रीकृष्ण और जाम्बवन्त के बीच घोर युद्ध हुआ।
युद्ध में पराजित होने पर जाम्बवन्त को श्रीकृष्ण के स्वयं विष्णु अवतार होने की बात पता चली। श्रीकृष्ण का असली रूप जानने पर जाम्बवन्त ने उनसे क्षमा मांगी और अपने अपराध का प्रायश्चित करने के लिए अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
जाम्बवंती के पुत्र ये थे  साम्ब, सुमित्र, पुरूजित, शतजित, सहस्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ व क्रतु।

3. सत्यभामा मणि लेकर श्रीकृष्ण द्वारका पहुंचे। वहां पहुंचकर श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित को दी और खुद पर लगाए दोष को गलत साबित किया। श्रीकृष्ण के निर्दोष साबित होने पर सत्राजित खुद को अपमानित महसूस करने लगा। वह श्रीकृष्ण के तेज को जानता था, इसलिए वह बहुत भयभीत हो गया। उसकी मूर्खता की वजह से कहीं श्रीकृष्ण की उससे कोई दुश्मनी न हो जाए, इस डर से सत्राजित ने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
सत्यभामा के पुत्रों के नाम थे भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।

4. सत्या (नग्नजिती) कौशल राज्य के राजा नग्नजित की एक पुत्री थी। जिसका नाम नग्नजिती थी। वह बहुत सुंदर और सभी गुणों वाली थी। अपनी पुत्री के लिए योग्य वर पाने के लिए नग्नजित ने शर्त रखी। शर्त यह थी कि जो भी क्षत्रिय वीर सात बैलों पर जीत प्राप्त कर लेगा, उसी के साथ नग्नजिती का विवाह किया जाएगा। एक दिन भगवान कृष्ण को देख नग्नजिती उन पर मोहित हो गई और मन ही मन भगवान कृष्ण से ही विवाह करने का प्रण ले लिया। भगवान कृष्ण यह बात जान चुके थे।
अपनी भक्त की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने सातों बैल को अपने वश में करके उन पर विजय प्राप्त की। भगवान का यह पराक्रम देखकर नग्नजित ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान कृष्ण के साथ किया।
सत्या के बेटों के नाम ये थे वीर, अश्वसेन, चंद्र, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंत।

5. कालिन्दी  एक बार भगवान कृष्ण अपने प्रिय अर्जुन के साथ वन में घूम रहे थे। यात्रा की धकान दूर करने के लिए वे दोनों यमुना नदीं के किनार जाकर बैठ गए। वहां पर श्रीकृष्ण और अर्जुन को एक युवती तपस्या करती हुई दिखाई दी। उस युवती को देखकर अर्जुन ने उसका परिचय पूछा। अर्जुन द्वारा ऐसा पूछने पर उस युवती ने अपना नाम सूर्यपुत्री कालिन्दी बताया।
वह यमुना नदीं में निवास करते हुए भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। यह बात जान कर भगवान कृष्ण ने कालिन्दी को अपने भगवान विष्णु के अवतार होने की बात बताई और उसे अपने साथ द्वारका ले गए। द्वारका पहुंचने पर भगवान कृष्ण और कालिन्दी का विवाह किया गया।
कालिंदी के पुत्रों के नाम ये थे  श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास एवं सोमक।

6. लक्ष्मणा  लक्ष्मणा ने देवर्षि नारद से भगवान विष्णु के अवतारों के बारे में कई बातों सुनी थी। उसका मन सदैव भगवान के स्मरण और भक्ति में लगा रहता था। लक्ष्मणा भगवान विष्णु को ही अपने पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। उसके पिता यह बात जानते थे।
अपनी पुत्री की इच्छा पूरी करने के लिए उसके पिता ने स्वयंवर का एक ऐसा आयोजन किया, जिसमें लक्ष्य भेद भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के सिवा कोई दूसरा न कर सके। लक्ष्मणा के पिता ने अपनी पुत्री के विवाह उसी वीर से करने का निश्चय किया, जो की पानी में मछली की परछाई देखकर मछली पर निशाना लगा सके।
शिशुपाल, कर्ण, दुर्योधन, अर्जुन कोई भी इस लक्ष्य का भेद न कर सका। तब भगवान कृष्ण ने केवल परछाई देखकर मछली पर निशाना लगाकर स्वयंवर में विजयी हुए और लक्ष्मणा के साथ विवाह किया।
लक्ष्मणा के पुत्रों के नाम थे प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज एवं अपराजित।

7. मित्रविंदा अवंतिका (उज्जैन) की राजकुमारी मित्रविंदा के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया था। उस स्वयंवर में मित्रविंदा जिसे भी अपने पति रूप में चुनती उसके साथ मित्रविंदा का विवाह कर दिया जाता। उस स्वयंवर में भगवान कृष्ण भी पहुंचे। मित्रविंदा भगवान कृष्ण के साथ ही विवाह करना चाहती था, लेकिन उसका भाई विंद दुर्योधन का मित्र था।
इसलिए उसने अपनी बहन को बल से भगवान कृष्ण को चुनने से रोक लिया। जब भगवान कृष्ण को मित्रविंदा के मन की बात पता चली। तब भगवान ने सभी विरोधियों के सामने ही मित्रविंदा का हरण कर लिया और उसके साथ विवाह किया।
मित्रविंदा के पुत्रों के नाम  वृक, हर्ष, अनिल, गृध, वर्धन, अन्नाद, महांश, पावन, वहिन तथा क्षुधि।

8. भद्रा भगवान कृष्ण की श्रुतकीर्ति नामक एक भुआ कैकय देश में रहती थी। उनकी एक भद्रा नामक कन्या थी। भद्रा और उसके भाई भगवान कृष्ण के गुणों को जानते थे। इसलिए भद्रा के भाइयों ने उसका विवाह भगवान कृष्ण के साथ करने का निर्णय किया। अपनी भुआ और भाइयों के इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण ने पूरे विधि-विधान के साथ भद्रा के साथ विवाह किया।

भद्रा के पुत्र  संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।

विशेष  इनके अलावा श्री कृष्ण की 16100 और पत्नियां बताई जाती है। इन 16100 कन्याओं को श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध कर मुक्त कराया था और अपने यहाँ आश्रय दिया था। इन सभी कन्याओं ने श्री कृष्ण को पति स्वरुप मान लिया था। नरकासुर और श्री कृष्ण की पूरी कहानी फिर कभी।

*आइए जानें 24 अनजाने तथ्य...*


1. भगवान् श्री कृष्ण के खड्ग का नाम नंदक, गदा का नाम कौमौदकी और शंख का नाम पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था।

2. भगवान् श्री कृष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं।

3.भगवान् श्री कृष्ण के धनुष का नाम शारंग व मुख्य आयुध चक्र का नाम सुदर्शन था। वह लौकिक, दिव्यास्त्र व देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र ( शिव, कॄष्ण और अर्जुन के पास थे) और प्रस्वपास्त्र ( शिव, वसुगण, भीष्म और कृष्ण के पास थे)।

4. भगवान् श्री कृष्ण की परदादी 'मारिषा' व सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) 'नाग' जनजाति की थीं।

5. भगवान श्री कृष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं।

6. भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का वर्णन महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण व भागवतपुराण में नहीं है। उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद व प्रचलित जनश्रुतियों में रहा है।

7. जैन परंपरा के मुताबिक, भगवान श्री कॄष्ण के चचेरे भाई तीर्थंकर नेमिनाथ थे जो हिंदू परंपरा में घोर अंगिरस के नाम से प्रसिद्ध हैं।

8. भगवान् श्री कृष्ण अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी द्वारिका में 6 महीने से अधिक नहीं रहे।

9. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी औपचारिक शिक्षा उज्जैन के संदीपनी आश्रम में मात्र कुछ महीनों में पूरी कर ली थी।

10. ऐसा माना जाता है कि घोर अंगिरस अर्थात नेमिनाथ के यहां रहकर भी उन्होंने साधना की थी।

11. प्रचलित अनुश्रुतियों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास का आरंभ भी उन्हीं ने किया था।

12. कलारीपट्टु का प्रथम आचार्य कृष्ण को माना जाता है। इसी कारण नारायणी सेना भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी।

13. भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम जैत्र था और उनके सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था। उनके घोड़ों (अश्वों) के नाम थे शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक।

14. भगवान श्री कृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी। 

15. भगवान श्री कृष्ण की मांसपेशियां मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जातीं थीं, इसलिए सामान्यतः लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था ठीक ऐसे ही लक्ष्ण कर्ण व द्रौपदी के शरीर में देखने को मिलते थे।

16. जनसामान्य में यह भ्रांति स्थापित है कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, परंतु वास्तव में कृष्ण इस विधा में भी सर्वश्रेष्ठ थे और ऐसा सिद्ध हुआ मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में जिसकी प्रतियोगिता द्रौपदी स्वयंवर के ही समान परंतु और कठिन थी।

17. यहां कर्ण व अर्जुन दोंनों असफल हो गए और तब श्री कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की, जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं।

18. भगवान् श्री युद्ध कृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था, परंतु इनमे तीन सर्वाधिक भयंकर थे। 1- महाभारत, 2- जरासंध और कालयवन के विरुद्ध 3- नरकासुर के विरुद्ध

19. भगवान् श्री कृष्ण ने केवल 16 वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया।

20. भगवान् श्री कृष्ण ने असम में बाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था।

21. भगवान् श्री कृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद्व युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था, जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे। बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए।

22. भगवान् श्री कृष्ण ने 2 नगरों की स्थापना की थी द्वारिका (पूर्व में कुशावती) और पांडव पुत्रों के द्वारा इंद्रप्रस्थ (पूर्व में खांडवप्रस्थ)।

23. भगवान् श्री कृष्ण ने कलारिपट्टू की नींव रखी जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई।

24. भगवान् श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के रूप में आध्यात्मिकता की वैज्ञानिक व्याख्या दी, जो मानवता के लिए आशा का सबसे बड़ा संदेश थी, है और सदैव रहेगी...

पहले कृष्ण जी के बारे में जाने फिर जन्मास्टमी की शुभ कामना दे ,,,,

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भगवान् *श्री कृष्ण* को अलग अलग स्थानों में अलग अलग नामो से जाना जाता है।

* उत्तर प्रदेश में कृष्ण या गोपाल गोविन्द इत्यादि नामो से जानते है।

* राजस्थान में श्रीनाथजी या ठाकुरजी के नाम से जानते है।

* महाराष्ट्र में बिट्ठल के नाम से भगवान् जाने जाते है।

* उड़ीसा में जगन्नाथ के नाम से जाने जाते है।

* बंगाल में गोपालजी के नाम से जाने जाते है।

* दक्षिण भारत में वेंकटेश या गोविंदा के नाम से जाने जाते है।

* गुजरात में द्वारिकाधीश के नाम से जाने जाते है।

* असम ,त्रिपुरा,नेपाल इत्यादि पूर्वोत्तर क्षेत्रो में कृष्ण नाम से ही पूजा होती है।

* मलेशिया, इंडोनेशिया, अमेरिका, इंग्लैंड, फ़्रांस इत्यादि देशो में कृष्ण नाम ही विख्यात है।

* गोविन्द या गोपाल में "गो" शब्द का अर्थ गाय एवं इन्द्रियों , दोनों से है। गो एक संस्कृत शब्द है और ऋग्वेद में गो का अर्थ होता है मनुष्य की इंद्रिया...जो इन्द्रियों का विजेता हो जिसके वश में इंद्रिया हो वही गोविंद है गोपाल है।

* श्री कृष्ण के पिता का नाम वसुदेव था इसलिए इन्हें आजीवन "वासुदेव" के नाम से जाना गया। श्री कृष्ण के दादा का नाम शूरसेन था..

* श्री कृष्ण का जन्म उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद के राजा कंस की जेल में हुआ था।

* श्री कृष्ण के भाई बलराम थे लेकिन उद्धव और अंगिरस उनके चचेरे भाई थे,
अंगिरस ने बाद में तपस्या की थी और जैन धर्म के तीर्थंकर नेमिनाथ के नाम से विख्यात हुए थे।

* श्री कृष्ण ने 16000 राजकुमारियों को असम के राजा नरकासुर की कारागार से मुक्त कराया था और उन राजकुमारियों को आत्महत्या से रोकने के लिए मजबूरी में उनके सम्मान हेतु उनसे विवाह किया था।
क्योंकि उस युग में हरण की हुयी स्त्री अछूत समझी जाती थी और समाज उन स्त्रियों को अपनाता नहीं था।।

* श्री कृष्ण की मूल पटरानी एक ही थी जिनका नाम रुक्मणी था जो महाराष्ट्र के विदर्भ राज्य के राजा रुक्मी की बहन थी।। रुक्मी शिशुपाल का मित्र था और श्री कृष्ण का शत्रु ।

* दुर्योधन श्री कृष्ण का समधी था और उसकी बेटी लक्ष्मणा का विवाह श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ हुआ था।

* श्री कृष्ण के धनुष का नाम सारंग था। शंख का नाम पाञ्चजन्य था। चक्र का नाम सुदर्शन था। उनकी प्रेमिका का नाम राधारानी था जो बरसाना के सरपंच वृषभानु की बेटी थी। श्री कृष्ण राधारानी से निष्काम और निश्वार्थ प्रेम करते थे। राधारानी श्री कृष्ण से उम्र में बहुत बड़ी थी। लगभग 6 साल से भी ज्यादा का अंतर था।

श्री कृष्ण ने 14 वर्ष की उम्र में वृंदावन छोड़ दिया था।। और उसके बाद वो राधा से कभी नहीं  मिले।

* श्री कृष्ण विद्या अर्जित करने हेतु मथुरा से उज्जैन मध्य प्रदेश आये थे। और यहाँ उन्होंने उच्च कोटि के ब्राह्मण महर्षि सान्दीपनि से अलौकिक विद्याओ का ज्ञान अर्जित किया था।।

* श्री कृष्ण की कुल 125 वर्ष धरती पर रहे । उनके शरीर का रंग गहरा काला था और उनके शरीर से 24 घंटे पवित्र अष्टगंध महकता था।
उनके वस्त्र रेशम के पीले रंग के होते थे और मस्तक पर मोरमुकुट शोभा देता था।
उनके सारथि का नाम दारुक था और उनके रथ में चार घोड़े जुते होते थे। उनकी दोनो आँखों में प्रचंड सम्मोहन था।

* श्री कृष्ण के कुलगुरु महर्षि शांडिल्य थे।

* श्री कृष्ण का नामकरण महर्षि गर्ग ने किया था।

* श्री कृष्ण के बड़े पोते का नाम अनिरुद्ध था जिसके लिए श्री कृष्ण ने बाणासुर और भगवान् शिव से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।

* श्री कृष्ण ने गुजरात के समुद्र के बीचो बीच द्वारिका नाम की राजधानी बसाई थी। द्वारिका पूरी सोने की थी और उसका निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।

* श्री कृष्ण को ज़रा नाम के शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे मे लगा वो शिकारी पूर्व जन्म का बाली था,बाण लगने के पश्चात भगवान स्वलोक धाम को गमन कर गए।

* श्री कृष्ण ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र में अर्जुन को पवित्र गीता का ज्ञान रविवार शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन मात्र 45 मिनट में दे दिया था।

* श्री कृष्ण ने सिर्फ एक बार बाल्यावस्था में नदी में नग्न स्नान कर रही स्त्रियों के वस्त्र चुराए थे और उन्हें अगली बार यु खुले में नग्न स्नान न करने की नसीहत दी थी।

* श्री कृष्ण के अनुसार गौ हत्या करने वाला असुर है और उसको जीने का कोई अधिकार नहीं।

* श्री कृष्ण अवतार नहीं थे बल्कि अवतारी थे....जिसका अर्थ होता है "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" न ही उनका जन्म साधारण मनुष्य की तरह हुआ था और न ही उनकी मृत्यु हुयी थी।

सर्वान् धर्मान परित्यजम मामेकं शरणम् व्रज
अहम् त्वम् सर्व पापेभ्यो मोक्षस्यामी मा शुच--

( भगवद् गीता अध्याय 18 )

*श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी*
*हे नाथ नारायण वासुदेव* 


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