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मंगलवार, 25 जुलाई 2017

मंगल चंडिका पाठ & Mangal Chandika Stotram मंगल चंडिका स्तोत्रम्






           








मंगल चंडिका स्त्रोत


श्री मङ्गलचण्डिका स्तोत्र (हिंदी अनुवाद)
‘ ॐ हृीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मङ्गलचण्डिके ऐं क्रूं फट् स्वाहा ॥ ‘
इक्कीस अक्षरका यह मन्त्र सुपूजित होनेपर भक्तोंकी संपूर्ण कामना प्रदान करनेके लिये कल्पवृक्षस्वरुप है ।
ब्रह्मन् ! अब ध्यान सुनो । सर्वसम्मत ध्यान वेदप्रणित है ।
” सुस्थिर यौवना भगवती मङ्गलचण्डिका सदा सोलह
वर्षकी ही जान पडती हैं । ये सम्पूर्ण रुप-गुणसे सम्पन्न,
कोमलाङ्गी एवं मनोहारिणी हैं । श्र्वेत चम्पाके समान इनका गौरवर्ण तथा करोडों चन्द्रमाओंके तुल्य इनकी
मनोहर कान्ति हैं । वे अग्निशुद्ध दिव्य वस्त्र धारण किये
रत्नमय आभूषणोंसे विभूषित हैं । मल्लिका पुष्पोंसे समलंकृत केशपाश धारण करती हैं । बिम्बसदृश लाल ओठ, सुन्दर दन्त पक्तिं तथा शरत्कालके प्रफुल्ल कमलकी भाँति शोभायमान मुखवाली मङ्गलचण्डिकाके प्रसन्न  अरविंद जैसे वदनपर मन्द मुस्कानकी छटा छा रही हैं । इनके दोनों नेत्र सुन्दर खिले
हुए नीलकमलके समान मनोहर जान पडते हैं । सबको
सम्पूर्ण सम्पदा प्रदान करनेवाली ये जगदम्बा घोर संसार
सागरसे उबारनेमें जहाजका काम करती हैं । मैं सदा इनका भजन करता हूँ । ”
मुने ! यह तो भगवती मङ्गलचण्डिकाका ध्यान हुआ ।
ऐसे ही स्तवन भी है, सुनो !
महादेवजीने कहा—–
” जगन्माता भगवती मङ्गलचण्डिके ! आप सम्पूर्ण विपत्तियोंका विध्वंस करनेवाली हो एवं हर्ष तथा मङ्गल
प्रदान करनेको सदा प्रस्तुत रहती हो । मेरी रक्षा करो, रक्षा करो । खुले हाथ हर्ष और मङ्गल देनेवाली हर्ष मङ्गलचण्डिके ! आप शुभा, मङ्गलदक्षा, शुभमङ्गलचण्डिका, मङ्गला, मङ्गलार्हा तथा सर्वमङ्गलमङ्गला कहलाती हो ।
देवि ! साधुपुरुषोंको मङ्गल प्रदान करना तुम्हारा स्वाभाविक गुण हैं । तुम सबके लिये मङ्गलका आश्रय हो । देवि ! तुम मङ्गलग्रहकी इष्टदेवी हो । मङ्गलके दिन तुम्हारी पूजा होनी चाहिये । मनुवंशमें उत्पन्न राजा मङ्गलकी पूजनीया देवी  यहो । मङ्गलाधिष्ठात्री देवी !
तुम मङ्गलोंके लिये भी मङ्गल हो । जगत्के समस्त
मङ्गल तुमपर आश्रित हैं । तुम सबको मोक्षमय मङ्गल प्रदान करती हो । मङ्गलको सुपूजित होनेपर मङ्गलमय
सुख प्रदान करनेवाली देवि ! तुम संसारकी सारभूता मङ्गलाधारा तथा समस्त कर्मोंसे परे हो । ”
इस स्तोत्रसे स्तुति करके भगवान् शंकरने देवी मङ्गचण्डिकाकी उपासना की । वे प्रति मङ्गलवारको उनका पूजन करते चले जाते हैं । यों ये भगवती सर्वमङ्गला सर्वप्रथम भगवान् शंकरसे पूजित हुई ।


शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ के लिए :

स्वयं भगवान् शिव ने इस स्त्रोत की महिमा का बखान किया है । जिन लोगो की कुंडली में मंगली दोष है । उन लोगो के विवाह एवं कार्य में बाधाए मंगल ग्रह के कारण बनती हो तो यह स्त्रोत उनको चमत्कारिक लाभ प्रदान करता है ।
प्रायः मंगल दोष के कारण पुरुष एवं स्त्री दोनों के विवाह में भी अड़चन बनी रहती है । उनके लिये यह स्त्रोत अत्यंत लाभदायी है ।।
मंत्र
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यह प्रयोग मंगली लोगो को मंगल की वजह से उनके विवाह, काम-धंधे में आ रही रूकावटो को दूर कर देता है ।
ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा ।।
देवी भागवत् के अनुसार अन्य मंत्र
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ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा ।।
मंगल चंडिका स्त्रोत
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।। श्री मंगलचंडिकास्तोत्रम् ।।
ध्यान
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"ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I
ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II
पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I
दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II
मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I
ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II
देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I
सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II
श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I
वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II
बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I
बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II
ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I
जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II
संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II
देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I
प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II
शंकर उवाच
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रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I
हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II
हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I
शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II
मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I
सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II
पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I
पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II
मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I
संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II
सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II
स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I
प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II
देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I
तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II
II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II"
उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करे एवं माँ मंगल चंडिका का धयान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है ।
1. उपरोक्त दोनों में से किसी एक मंत्र का मन ही मन १०८ बार जप करे तथा स्त्रोत्र का ११ बार उच्च स्वर से श्रद्धा पूर्वक प्रेम सहित पाठ करे | ऐसा आठ मंगलवार को करे | आठवे मंगलवार को किसी भी सुहागिन स्त्री को लाल ब्लाउज, लाल रिब्बन, लाल चूड़ी, कुमकुम, लाल सिंदूर, पान-सुपारी, हल्दी, स्वादिष्ट फल, फूल आदि देकर संतुष्ट करे | अगर कुंवारी कन्या या पुरुष इस प्रयोग को कर रहे है तो वो अंजुली भर कर चने भी सुहागिन स्त्री को दे , ऐसा करने से उनका मंगल दोष शांत हो जायेगा | इस प्रयोग में व्रत रहने की आवश्यकता नहीं है अगर आप शाम को न कर सके तो सुबह कर सकते है | यह अनुभूत प्रयोग है और आठ सप्ताह में ही चमत्कारिक रूप से शादी-विवाह की समस्या, धन की समस्या, व्यापार की समस्या, गृह-कलेश, विद्या प्राप्ति आदि में चमत्कारिक रूप से लाभ होता है.
2. उक्त स्त्रोत को मंगलवार के दिन से शुरू करे एवं माँ मंगल चंडिका का धयान कर दीपक जलाकर नित्य कम से कम 5 पाठ करने से अत्यंत लाभ मिलता है ।
3. अगर इतना समय न निकल सकें, तो इसका पाठ करें :
मंत्र:- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके ऐं क्रू फट् स्वाहा
(देवी भगवत के अनुसार अन्य मंत्र :- ॐ ह्रीं श्रीं कलीम सर्व पुज्ये देवी मंगल चण्डिके हूँ हूँ फट् स्वाहा)
दोनों में से कोई भी मन्त्र जप सकते है.


ऊॅ हौं जूं सः। ऊॅ भूः भुवः स्वः ऊॅ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्  मधुकर / किरण / एवं शिवंशी उर्फ बाटू को रक्षय- रक्षय - पालय-पालय ऊॅ स्वः भुवः भूः ऊॅ। ऊॅ सः जूं हौं।
ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।


  




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