संसार में कुछ पाना हो, तो मेहनत करनी पड़ेगी, श्रम करना पड़ेगा, प्रयास करना पड़ेगा। यहां बिना प्रयास के कुछ भी न मिलेगा। क्योंकि यहां भारी प्रतियोगिता है। तुम अगर खड़े रहे किनारे, तो दूसरे नहीं खड़े रहेंगे। वे छीन-झपट करके ले जाएंगे। लेकिन परमात्मा में अगर कुछ पाना हो, और तुमने छीन-झपट की कि तुम चूक जाओगे। वहां छीना-झपटी चलती ही नहीं। वहां तुम खड़े ही रहो तो हीतो ही तुम पा सकोगे।
और ध्यान रहेः जगत में प्रतियोगिता है; परमात्मा में कोई प्रतियोगिता नहीं है। अगर किसी दूसरे ने परमात्मा पा लिया, तो परमात्मा कम नहीं हो जाएगा! तुम्हारे लिए उतना ही बचेगा; जितना उसके पाने के पहले था। लेकिन संसार में अगर किसी ने पद पा लिया, तो पद अब बचा नहीं। इसलिए वहां दौड है। इसलिए वहां प्रतिस्पर्धा है, प्रतियोगिता है। वहां तुम अकेले नहीं हो। वहां तुम जो भी पाओगे, वह किसी से छीनकर पाओगे।
संसार की जीवन व्यवस्था शोषण की है। वहां शोषण किए बिना कुछ उपाय ही नहीं है। तुम्हारे पास धन है, तो कोई निर्धन हो जाएगा। तुम्हारे पास महल है, तो किसी का झोपड़ा छोटा हो जाएगा। तुम्हारा महल बड़ा होगा, तो कई मकान छोटे होंगे। इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है।
और ध्यान रहेः जगत में प्रतियोगिता है; परमात्मा में कोई प्रतियोगिता नहीं है। अगर किसी दूसरे ने परमात्मा पा लिया, तो परमात्मा कम नहीं हो जाएगा! तुम्हारे लिए उतना ही बचेगा; जितना उसके पाने के पहले था। लेकिन संसार में अगर किसी ने पद पा लिया, तो पद अब बचा नहीं। इसलिए वहां दौड है। इसलिए वहां प्रतिस्पर्धा है, प्रतियोगिता है। वहां तुम अकेले नहीं हो। वहां तुम जो भी पाओगे, वह किसी से छीनकर पाओगे।
संसार की जीवन व्यवस्था शोषण की है। वहां शोषण किए बिना कुछ उपाय ही नहीं है। तुम्हारे पास धन है, तो कोई निर्धन हो जाएगा। तुम्हारे पास महल है, तो किसी का झोपड़ा छोटा हो जाएगा। तुम्हारा महल बड़ा होगा, तो कई मकान छोटे होंगे। इसके सिवाय कोई उपाय नहीं है।
सहज समाधि भली-21
ओशो