1.आंजनेया : अंजना का पुत्र
2.महावीर : सबसे बहादुर
3.हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं
4.मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय
5.तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले
6.सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीता की अंगूठी भगवान राम को देने वाले
7.अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विनाश करने वाले
8.सर्वमायाविभंजन : छल के विनाशक
9.सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह को दूर करने वाले
10.रक्षोविध्वंसकारक : राक्षसों का वध करने वाले
11.परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाले
12.परशौर्य विनाशन : शत्रु के शौर्य को खंडित करने वाले
13.परमन्त्र निराकर्त्रे : राम नाम का जाप करने वाले
14.परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के उद्देश्य को नष्ट करने वाले
15.सर्वग्रह विनाशी : ग्रहों के बुरे प्रभावों को खत्म करने वाले
16.भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक
17.सर्वदुखः हरा : दुखों को दूर करने वाले
18.सर्वलोकचारिणे : सभी जगह वास करने वाले
19.मनोजवाय : जिसकी हवा जैसी गति है
20.पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता पेड़ के नीचे वास करने वाले
21.सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी मंत्रों के स्वामी
22.सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों और भजन का आकार जैसा
23.सर्वयन्त्रात्मक : सभी यंत्रों में वास करने वाले
24.कपीश्वर : वानरों के देवता
25.महाकाय : विशाल रूप वाले
26.सर्वरोगहरा : सभी रोगों को दूर करने वाले
27.प्रभवे : सबसे प्रिय
28.बल सिद्धिकर :
29.सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले
30.कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख
31.भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य की घटनाओं के ज्ञाता
32.कुमार ब्रह्मचारी : युवा ब्रह्मचारी
33.रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कान में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले
34.चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी पूंछ उनके सर से भी ऊंची है
35.गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ, : आकाशीय विद्या के ज्ञाता
36.महाबल पराक्रम : महान शक्ति के स्वामी
37.काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से मुक्त करने वाले
38.शृन्खला बन्धमोचक: तनाव को दूर करने वाले
39.सागरोत्तारक : सागर को उछल कर पार करने वाले
40.प्राज्ञाय : विद्वान
41.रामदूत : भगवान राम के राजदूत
42.प्रतापवते : वीरता के लिए प्रसिद्ध
43.वानर : बंदर
44.केसरीसुत : केसरी के पुत्र
45.सीताशोक निवारक : सीता के दुख का नाश करने वाले
46.अन्जनागर्भसम्भूता : अंजनी के गर्भ से जन्म लेने वाले
47.बालार्कसद्रशानन : उगते सूरज की तरह तेजस
48.विभीषण प्रियकर : विभीषण के हितैषी
49.दशग्रीव कुलान्तक : रावण के राजवंश का नाश करने वाले
50.लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले
51.वज्रकाय : धातु की तरह मजबूत शरीर
52.महाद्युत : सबसे तेजस
53.चिरंजीविने : अमर रहने वाले
54.रामभक्त : भगवान राम के परम भक्त
55.दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों की सभी गतिविधियों को नष्ट करने वाले
56.अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का अंत करने वाले
57.कांचनाभ : सुनहरे रंग का शरीर
58.पंचवक्त्र : पांच मुख वाले
59.महातपसी : महान तपस्वी
60.लन्किनी भंजन : लंकिनी का वध करने वाले
61.श्रीमते : प्रतिष्ठित
62.सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण लेने वाले
63.गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन पर्वत पार निवास करने वाले
64.लंकापुर विदायक : लंका को जलाने वाले
65.सुग्रीव सचिव : सुग्रीव के मंत्री
66.धीर : वीर
67.शूर : साहसी
68.दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का वध करने वाले
69.सुरार्चित : देवताओं द्वारा पूजनीय
70.महातेजस : अधिकांश दीप्तिमान
71.रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ा देने वाले
72.कामरूपिणे : अनेक रूप धारण करने वाले
73.पिंगलाक्ष : गुलाबी आँखों वाले
74.वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय
75.कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले
76.विजितेन्द्रिय : इंद्रियों को शांत रखने वाले
77.रामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मध्यस्थ
78.महारावण मर्धन : रावण का वध करने वाले
79.स्फटिकाभा : एकदम शुद्ध
80.वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान
81.नवव्याकृतपण्डित : सभी विद्याओं में निपुण
82.चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले
83.दीनबन्धुरा : दुखियों के रक्षक
84.महात्मा : भगवान
85.भक्तवत्सल : भक्तों की रक्षा करने वाले
86.संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी लाने वाले
87.सुचये : पवित्र
88.वाग्मिने : वक्ता
89.दृढव्रता : कठोर तपस्या करने वाले
90.कालनेमि प्रमथन : कालनेमि का प्राण हरने वाले
91.हरिमर्कट मर्कटा : वानरों के ईश्वर
92.दान्त : शांत
93.शान्त : रचना करने वाले
94.प्रसन्नात्मने : हंसमुख
95.शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को ध्वस्त करने वाले
96.योगी : महात्मा
97.मकथा लोलाय : भगवान राम की कहानी सुनने के लिए व्याकुल
98.सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खोज करने वाले
99.वज्रद्रनुष्ट :
100.वज्रनखा : वज्र की तरह मजबूत नाखून
101.रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का अवतार
102.इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले
103.पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार विराजमान रहने वाले
104.शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले
105.दशबाहवे : दस्द भुजाओं वाले
106.लोकपूज्य : ब्रह्मांड के सभी जीवों द्वारा पूजनीय
107.जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय
108.सीताराम पादसेवा : भगवान राम और सीता की सेवा में तल्लीन रहने वाले
संकटमोचन हनुमानाष्टक (Sankatmochan Hanumanashtak)
बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो I
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जात न टारो II
देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ दियो रवि कष्ट निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बालि की त्रास कपीस बसे गिरि, जात महा प्रभु पंथ निहारो I
चौंकि महा मुनि श्राप दियो तब, चाहिये कौन बिचार बिचारो II
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
अंगद के संग लेन गये सिया, खोज कपीस यह बैन उचारो I
जीवत ना बचिहौ हम सो जो, बिना सुधि लाये यहाँ पगु धारौ II
हेरि थके तट सिन्धु सबै तब, लाये सिया सुधि प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण त्रास दई सिया को तब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो I
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनी चर मारो II
चाहत सिया अशोक सों आगि सु, दें प्रभु मुद्रिका शोक निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बाण लाग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तज्यो सुत रावण मारो I
ले गृह वैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सो वीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब, लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
रावण युद्ध अजान कियो तब, नाग कि फाँस सबै सिर दारो I
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो II
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
बंधु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पातळ सिधारो I
देविहिं पूजि भलि विधि सो बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो II
जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावण सैन्य समेत संघारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि बिचारो I
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुम सों नहिं जात है टारो II
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो I
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो II
दोहा
लाल देह लाली लसे ,अरु धरि लाल लंगूर I
बज्र देह दानव दलन,जय जय जय कपि सूर II
हनुमानजी की आरती
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं ,जितेन्द्रियं,बुद्धिमतां वरिष्ठम् ||
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं , श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ||
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सिया सुधी लाये ॥
लंका सी कोट संमदर सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे | आनि संजिवन प्राण उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे | दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजनी माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गाये | बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥
आरती किजे हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
प्रेत आदि की बाधा निवृति हेतु हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।
शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी के इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।
अपनी रक्षा और यथेष्ट लाभ हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए
अज्जनागर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।
मुकदमे में विजय प्राप्ती के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
धन- सम्पत्ति प्राप्ति हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन ।
शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो।।
सभी प्रकार के रोग और पीड़ा से मुक्ति पाने हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।
नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।
किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए:
ॐ हनुमते नमः
हनुमान जी को प्रसन्न करने हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए
सुमिरि पवन सुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू।।
ऊॅ हौं जूं सः। ऊॅ भूः भुवः स्वः ऊॅ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मधुकर / किरण / एवं शिवंशी उर्फ बाटू को रक्षय- रक्षय - पालय-पालय ऊॅ स्वः भुवः भूः ऊॅ। ऊॅ सः जूं हौं।
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
तुलसीदास जी अपने गुरु
को नमन करते हुए उनके चरण कमलों की धूल से अपने मन रुपी दर्पण को निर्मल
करते हैं। वे कहते हैं कि श्रीराम के बिमल जस यानि दोष रहित यश का वर्णन
करता हूं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी चार फल प्रदान करने वाला है।
स्वयं को बुद्धिहीन जानकर अर्थात पूरे समर्पण के साथ पवन-पुत्र श्री हनुमान
का स्मरण करता हूं। हे महावीर मुझे बल, बुद्धि और बिद्या प्रदान करें व
सारे कष्ट, रोग, विकार हर लें। कुल मिलाकर दोहे के माध्यम से संदेश मिलता
है कि हनुमान चालीसा के पाठ से पहले अपने मन का पवित्र होना जरुरी है। अपने
गुरु, माता-पिता, भगवान को याद करने से मन स्वच्छ हो जाता है। फिर भगवान
राम की महिमा का वर्णन करना भी काफी फलदायक होता है। फिर अपने को रामदूत
हनुमान को समर्पित करें, श्री हनुमान की कृपा से आपको बल, बुद्धि और विद्या
मिलेगी व साथ ही सारे पाप और कष्टों से भी बजरंग बलि मुक्ति दिलाएंगें।
।। चौपाई।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।
हे ज्ञान व गुण के सागर
श्री हनुमान आपकी जय हो। तीनों लोकों में वानरराज, वानरों के ईश्वर के रुप
उजागर आपकी जय हो। आप अतुलनीय शक्ति के धाम भगवान श्रीराम के दूत, माता
अंजनी के पुत्र व पवनसुत के नाम से जाने जाते हैं।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
श्री हनुमान आप महान वीर
हैं, बलवान हैं, आपके अंग बज्र के समान हैं। आप कुमति यानि खराब या
नकारात्मक बुद्धि को दूर कर सुमति यानि सद्बुद्धि प्रदान करते हैं, आपका
रंग स्वर्ण के समान है, और आप सुंदर वेश धारण करने वाले हैं, आपके कानों
में कुंडल आपकी शोभा को बढ़ाते हैं व आपके बाल घुंघराले हैं।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मुँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
आप हाथों में वज्र यानि
गदा और ध्वज धारण करते हैं, आपके कंधे पर मूंज का जनेऊ आपकी शोभा को बढ़ाता
है। आप शंकर सुवन यानि भगवान श्री शिव के अंश हैं व श्री केसरी के पुत्र
हैं। आपके तेज और प्रताप की समस्त जगत वंदना करता है।
विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
आप विद्वान हैं, गुणी
हैं और अत्यंत बुद्धिमान भी हैं, भगवान श्रीराम के कार्यों को करने के लिए
हमेशा आतुर रहते हैं, आप श्रीराम कथा सुनने के रसिक हैं व भगवान राम, माता
सीता व लक्ष्मण आपके हृद्य में बसे हैं। (प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
इसी पंक्ति के आधार पर कहा जाता है कि आज भी कहीं पर रामकथा का आयोजन हो
रहा होता है तो श्री हनुमान किसी न किसी रुप में वहां मौजूद रहते हैं व
रामकथा सुनते हैं।)
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।
आपने माता सीता को अपना
सूक्ष्म रुप दिखलाया तो वहीं विकराल रुप धारण कर लंका को जलाया आपने विशाल
रुप धारण कर असुरों का संहार किया। भगवान श्री राम के कार्यों भी आपने
संवारा।
लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
संजीवनी बूटी लाकर आपने
लक्ष्मण के प्राण बचा लिये जिससे भगवान श्री राम ने आपको खुशी से हृद्य से
लगा लिया। भगवान राम ने आपकी बहुत प्रशंसा की व आपको अपने भाई भरत के समान
प्रिय बतलाया।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
भगवान राम ने आपको गले
लगाकर कहा कि आपका यश हजारों मुखों से गाने लायक है। श्री सनक, श्री सनातन,
श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि ऋषि मुनि ब्रह्मा आदि देवता, नारद जी
सरस्वती जी और शेषनाग जी सभी आप गुणगान करते हैं।
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
मृत्यु के देवता यम, धन
के देवता कुबेर, दशों दिशाओं के रक्षक अर्थात दिगपाल आदि भी आपके यश का
गुणगान करने में असमर्थ हैं ऐसे में कवि और विद्वान कैसे आपकी किर्ती का
वर्णन कर सकते हैं। आपने तो भगवान राम से मिलाकर सुग्रीव पर उपकार किया,
जिसके बाद उन्हें राज्य प्राप्त हुआ।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
आपकी बात को मानकर ही
विभीषण लंका का राजा बना समस्त जग इस बारे में जानता है। जो सूरज यहां से
सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित है जिस तक पंहुचने में ही हजारों युग लग
जाएं उस सूरज को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
इसमें कोई अचरज या
आश्चर्य नहीं है कि आपने भगवान श्री राम की अंगूठी को मुंह में रखकर समुद्र
को लांघ लिया। इस संसार में जितने में भी मुश्किल माने जाने वाले कार्य
हैं, आपकी कृपा से बहुत आसान हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।
भगवान श्री राम के द्वार
पर आप रक्षक की तरह तैनात हैं, इसलिए आपकी अनुमति, आपकी आज्ञा के बिना कोई
भगवान राम तक नहीं पंहुच सकता। तमाम तरह के सुख आपकी शरण लेते हैं। इसलिए
जिसके रक्षक आप होते हैं, उसे किसी तरह से भी डरने की जरुरत नहीं होती।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
हे बजरंग बली महावीर
हनुमान, आपके तेज को बस आप ही संभाल सकते हों, आपकी ललकार से तीनों लोक
कांपते हैं। हे महावीर जहां भी आपका नाम लिया जाता है, भूत-पिशाचों की पास
फटकने की भी औकात नहीं होती, अर्थात भूत-प्रेत आदि निकट नहीं आते।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
हे वीर हनुमान जो निरंतर
आपके नाम का जाप करते हैं उनके सारे रोग नष्ट हो जाते हैं आप उनके सारे
दर्द को हर लेते हैं। मन, वचन और कर्म से जो भी आपका ध्यान लगाता है आप उसे
हर संकट से मुक्ति दिलाते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।
तपस्वी राजा भगवान श्री
रामचंद्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, आपने उनके सभी कार्य सहजता से किए। जो कोई
भी अपने मन की ईच्छा सच्चे मन से आपके सामने रखता है, वह अनंत व असीम जीवन
का फल प्राप्त करता है।
चारों जुग परताप तुम्हारा।। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
सतयुग द्वापर त्रेता
कलयुग चारों युगों में आपकी महानता है। आपका प्रकाश समस्त संसार में
प्रसिद्ध है। आप साधु संतों के रखवाले और असुरों का विनाश करने वाले श्री
राम के दुलारे हैं अर्थात श्री राम के बहुत प्रिय हैं।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
हे श्री हनुमान जानकी
यानि सीता माता ने आपको वरदान दिया है। जिससे आप आठों सिद्धियां और नौ
निधियां किसी को भी दे सकते हैं। आपके पास राम नाम का रसायन है, आप सदा से
भगवान श्री राम के सेवक रहे हैं।
तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।
आपका भजन करके ही भगवान
राम को प्राप्त किया जा सकता है व आपके स्मरण मात्र से ही जन्मों के पाप कट
जाते हैं, दुख मिट जाते हैं। आपकी शरण लेकर ही मृत्यु पर्यन्त भगवान श्री
राम के धाम, यानि बैकुण्ठ में जाया जा सकता है, जहां पर जन्म लेने मात्र से
हरि-भक्त कहलाते हैं।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जब आपकी सेवा आपके स्मरण
से सारे सुख प्राप्त हो जाते हैं, तो फिर और देवताओं में ध्यान लगाने की
जरुरत नहीं है। हे वीर हनुमान जो कोई भी आपके नाम का स्मरण करता है, उसके
सारे संकट कट जाते हैं, सारे दुख, सारी तकलीफें मिट जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गौसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई। छुटहि बंदि महासुख होई।
हे भक्तों के रक्षक
स्वामी श्री हनुमान जी, आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर श्री गुरुदेव
की तरह कृपा करें। जो कोई भी सौ बार इस चालीसा का पाठ करेगा, उसके सारे
बंधन, सारे कष्ट दूर हो जाएंगें व महासुख की प्राप्ति होगी, अर्थात उसे
मोक्ष की प्राप्ति होगी।
जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।
जो कोई भी इस हनुमान
चालीसा का पाठ करेगा, उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। उसको सिद्धियां प्राप्त
होंगी, इसके साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। महाकवि गौस्वामी तुलसीदास जी
कहते हैं कि वे सदा भगवान श्री राम के सेवक रहे हैं, इसलिए हे स्वामी आप
मेरे हृद्य में निवास कीजिये।
।।। दोहा।।
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
हे पवनसुत, हे संकटों को
हरने वाले संकट मोचन, हे कल्याणकारी, हे देवराज आप भगवान श्री राम, माता
सीता और श्री लक्ष्मण सहित मेरे हृद्य में निवास करें।
ऊॅ हौं जूं सः। ऊॅ भूः भुवः स्वः ऊॅ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
जवाब देंहटाएंउव्र्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मधुकर / किरण / एवं शिवंशी उर्फ बाटू को रक्षय- रक्षय - पालय-पालय ऊॅ स्वः भुवः भूः ऊॅ। ऊॅ सः जूं हौं।
ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।
Jai human
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