मुद्दे की बात ये है....कि
बहुत लोगो की ये दिमाग में ये मानसिकता घर कर गई है कि कोई भी महिला ओशो से जूड़ी हूई है....
बहुत लोगो की ये दिमाग में ये मानसिकता घर कर गई है कि कोई भी महिला ओशो से जूड़ी हूई है....
बहूत संन्यासिन इनबाक्स के स्क्रिनशाट शेयर करती है...कि क्या हो गया है लोगो को...
पुरूष क्यो स्त्री को सिर्फ सेक्स की दृष्टी से ही देख पाता है...
क्या स्त्री का जीवन यही रह गया है..?
पुरूष क्यो स्त्री को सिर्फ सेक्स की दृष्टी से ही देख पाता है...
क्या स्त्री का जीवन यही रह गया है..?
इनबाक्स में सीधे ऐसे पहूंचते है जैसे मुन्नी बाई के कोठे पर....
डू यू लव सेक्स...?
और कुछ अश्लील चित्र सलंग्न....!
डू यू लव सेक्स...?
और कुछ अश्लील चित्र सलंग्न....!
हां मै एक स्त्री हूं...!
और जीवन के हर विषय की तरह एक सेक्स जैसे विषय पर भी बात करना कोई चरित्रहीनता नहीं!!
और जीवन के हर विषय की तरह एक सेक्स जैसे विषय पर भी बात करना कोई चरित्रहीनता नहीं!!
किसी के प्रमाणपत्र दे देने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.... लेकिन यह एक सच्चाई है कि हर औरत को एक मर्द चाहिए होता है.... लेकिन हमारे समाज की परिकल्पना कुछ इस तरह से की गयी है कि औरतें संकोचवश कुछ कहती नहीं और उसके इस संकोच को पुरुषवादी समाज अपने तरीके से लेता है और खुद को औरत का भाग्यविधाता मान बैठता है..... औरतों को इस बात का हक ही नहीं है कि वे अपने बारे में कोई निर्णय लें.
प्रकृति ने स्त्री-पुरूष दोनों को गढ़ा...उसे एक दूसरे का पूरक बनाया.....उनमें कई ऐसी भावनाएं दी जिसकी पूर्ति दोनों संग-संग करते हैं....विज्ञान भी इस बात को मानता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है.....जब पुरुष और महिला एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं तो दोनों में सेक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्राव होता है.... जब संबंध थोड़े मजबूत और दीर्घकालीन होते हैं तो ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन जैसे हार्मोंन उन्हें और भी नजदीक लाते हैं और दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं.... यह बताने का आशय सिर्फ यह है कि भावनाएं और प्रतिक्रिया दोनों में एक जैसी ही होती है.
प्रकृति ने स्त्री-पुरूष दोनों को गढ़ा...उसे एक दूसरे का पूरक बनाया.....उनमें कई ऐसी भावनाएं दी जिसकी पूर्ति दोनों संग-संग करते हैं....विज्ञान भी इस बात को मानता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है.....जब पुरुष और महिला एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं तो दोनों में सेक्स हार्मोन टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्राव होता है.... जब संबंध थोड़े मजबूत और दीर्घकालीन होते हैं तो ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन जैसे हार्मोंन उन्हें और भी नजदीक लाते हैं और दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं.... यह बताने का आशय सिर्फ यह है कि भावनाएं और प्रतिक्रिया दोनों में एक जैसी ही होती है.
फिर यह भेदभाव क्यों....?
जब प्रकृति ने भावनाएं देने में कजूंसी नहीं की..तो समाज क्यों कर रहा है....लड़के अगर किसी लड़की को ‘मस्त’ कह दें...तो यह उनका अधिकार, सुनने वाले मुस्कुरा देंगे....लेकिन लड़कियां सलमान खान को भी ‘सेक्सी’ कह दें..तो छिछोरी हो जाती हैं....चालू हो जाती है..
जब प्रकृति ने भावनाएं देने में कजूंसी नहीं की..तो समाज क्यों कर रहा है....लड़के अगर किसी लड़की को ‘मस्त’ कह दें...तो यह उनका अधिकार, सुनने वाले मुस्कुरा देंगे....लेकिन लड़कियां सलमान खान को भी ‘सेक्सी’ कह दें..तो छिछोरी हो जाती हैं....चालू हो जाती है..
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