सभी क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र अवश्य पढ़ें ः
शूद्रों के ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश पाने के उदाहरण....
शूद्रों के ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश पाने के उदाहरण....
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है, जन्म के आधार पर नहीं|
यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था । कई उदाहरण हैं जिनसे पता लगता है की कर्मों और योग्यता के आधार पर निम्न वर्ण से उच्च वर्ण में प्रवेश और उच्च वर्ण से निम्न वर्ण में लिए जाने की न्यायोचित व्यवस्था थी हमारे सनातन धर्म में..
यह बात सिर्फ़ कहने के लिए ही नहीं है, प्राचीन समय में इस का व्यवहार में चलन था । कई उदाहरण हैं जिनसे पता लगता है की कर्मों और योग्यता के आधार पर निम्न वर्ण से उच्च वर्ण में प्रवेश और उच्च वर्ण से निम्न वर्ण में लिए जाने की न्यायोचित व्यवस्था थी हमारे सनातन धर्म में..
वर्ण परिवर्तन के कुछ उदाहरण –
(1) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे| परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|
(1) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे| परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है|
(2) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे | जुआरी और हीन चरित्र भी थे। परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये |ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया| (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(3) सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए|
(4) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र हो गए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.१.१४)अगर उत्तर रामायण की मिथ्या कथा के अनुसार शूद्रों के लिए तपस्या करना मना होता तो पृषध ये कैसे कर पाए?
(5) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए| पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया| (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(6) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(7) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए| (विष्णु पुराण ४.२.२)
(8) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए|
(9) विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने|
(10) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(11) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया| (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्य के उदाहरण हैं|
(12) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने|
(13) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपने कर्मों से राक्षस बना|
(14) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ|
(15) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे|
(16) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्र वर्ण अपनाया| विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया|
(17) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया|
(18) वत्स शूद्र कुल में उत्पन्न होकर भी ऋषि बने (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)|
(19) मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोकों से भी पता चलता है किकुछ क्षत्रिय जातियां, शूद्र बन गईं | वर्ण परिवर्तन की साक्षी देने वाले यह श्लोक मनुस्मृति में बहुत बाद के काल में मिलाए गए हैं| इन परिवर्तित जातियों के नाम हैं – पौण्ड्रक, औड्र, द्रविड, कम्बोज, यवन, शक, पारद, पल्हव, चीन, किरात, दरद, खश|
(20) महाभारत अनुसन्धान पर्व (३५.१७-१८) इसी सूची में कई अन्य नामों को भी शामिल करता है – मेकल, लाट, कान्वशिरा, शौण्डिक, दार्व, चौर, शबर, बर्बर|
(21) आज भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलितों में समान गोत्र मिलते हैं| इस से पता चलता है कि यह सब एक ही पूर्वज, एकही कुल की संतान हैं|
लेकिन ऐसा मत है कि कालांतर में मुगलो के अत्यचारो की वजह से वर्ण व्यवस्था गड़बड़ा गई और यह लोग अनेक जातियों में बंट गए।
जातिवाद छोड़ कर एक रहिये और सनातन धर्म को मजबूत करिए।
जातिवाद छोड़ कर एक रहिये और सनातन धर्म को मजबूत करिए।
जय हिन्द् जय भारत्
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