रविवार, 26 अगस्त 2018

प्रतापगढ एक छोटा सा परिचय, A small introduction to Pratapgarh

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*प्रतापगढ एक छोटा सा परिचय -*

प्रतापगढ़ भारतीय राज्य *उत्तर प्रदेश का एक जिला* है, इसे लोग *बेल्हा* भी कहते हैं, क्योंकि यहां *बेल्हा देवी मंदिर* है जो कि *सई नदी* के किनारे बना है। इस जिले को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जाता है। *यहां के विधानसभा क्षेत्र पट्टी से ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं॰ जवाहर लाल नेहरू ने पदयात्रा के माध्यम से अपना राजनैतिक करियर शुरू किया था।* इस धरती को
*रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि आचार्य भिखारीदास* और राष्ट्रीय कवि
*हरिवंश राय बच्चन* की जन्मस्थली के नाम से भी जाना जाता है।  यह जिला *धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी कि जन्मभूमि* और
*महात्मा बुद्ध की तपोस्थली है।*

*इतिहास*
यह जिला फैजाबाद डिवीजन का एक हिस्सा है जिसका नाम इसके मुख्यालय शहर बेल्हा-प्रतापगढ़ के नाम पर रखा गया है। *एक स्थानीय राजा, राजा प्रताप बहादुर, जिनका कार्यकाल सन् 1628 से लेकर 1682 के मध्य था, उन्होने अपना मुख्यालय रामपुर के निकट एक पुराने कस्बे अरोर में स्थापित किया।* जहाँ उन्होने एक
किले का निर्माण कराया और अपने नाम पर ही उसका नाम *प्रतापगढ़ (प्रताप का किला) रखा।* धीरे-धीरे उस किले के आसपास का स्थान भी उस किले के नाम से ही जाना जाने लगा यानि प्रतापगढ़ के नाम से। *जब 1858 मे जिले का पुनर्गठन* किया गया तब इसका मुख्यालय बेल्हा में स्थापित किया गया जो अब बेल्हा प्रतापगढ़ के नाम से विख्यात है। बेल्हा नाम वस्तुतः सई नदी के तट पर स्थित बेल्हा देवी के मंदिर से लिया गया था।
*पौराणिक महत्व*
*रामायण*
तीर्थराज प्रयाग के निकट पतित पावनी गंगा नदी के किनारे बसा
प्रतापगढ़ जिला एतिहासिक एवं धार्मिक दृष्टि से काफी महत्तवपूर्ण माना जाता है।उत्तर प्रदेश का यह जिला रामायण तथा महाभारत के कई महत्तवपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है। *मान्यता है कि बेल्हा की पौराणिक नदी सई के तट से होकर प्रभु श्रीराम वनगमन के समय आयोध्या से दक्षिण की ओर गए थे।* उनके चरणो से यहा की नदियों के तट पवित्र हुए है। *भगवान श्रीराम के वनवास यात्रा मे उत्तर प्रदेश के जिन पाँच प्रभुख नदियो का जिक्र रामचरित्रमानस मे है, उनमे से एक प्रतापगढ़ की सई नदी है।* जिसका जिक्र इस प्रकार है।
*सई उत्तर गोमती नहाये।,*
*चौथे दिवस अवधपुर आये॥*
ऐसी भी किवदंती है कि *लालगंज तहसील स्थित घुइसरनाथ धाम मे भगवान राम ने पूजन पाठ कर दुर्लभ त्रेतायुगी करील वृक्ष की छाया मे विश्राम किए थे।* जिसका उल्लेख
रामायण मे कुछ इस तरह है,
*नव रसाल वन विहरन शीला। ,*
*सोह कि कोकिल विपिन करीला।।*
*रामायण के चित्रण मे प्रतापगढ़*
*बकुलाही नदी का संक्षिप्त उल्लेख "बाल्कुनी" नदी के नाम से हुआ।* महर्षि वाल्मिकि द्वारा रचित
वाल्मिकि रामायण मे इसका वर्णन इन पंक्तियो से है।
*सो अपश्यत राम तीर्थम् च नदी बालकुनी तथा बरूठी,*
*गोमती चैव भीमशालम् वनम्*

*महाभारत*
*प्रतापगढ़ के रानीगंज अजगरा मे राजा युधिष्ठिर व यक्ष संवाद हुआ था और जिले के ही भयहरणनाथ धाम मे पांडवो न बकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई थी।*
*बाल्कुनी नदी के तट पर ही पूजा स्नान कर शिवलिंग की स्थापना महाबली भीमसेन ने की थी।*
*महाभारत मे हंडौर राक्षस*
*हिडिम्ब का निवास क्षेत्र था और बांकाजलालपुर राक्षस बकासुर का क्षेत्र था।*
प्रतापगढ़ के *चकवड़* का जिक्र महाभारत मे *चक्रनगरी* नाम से हुआ है।

*बौद्धकाल*
प्रतापगढ़ की पावन भूमी महात्मा बुद्ध की तपोस्थली रह चुकी है। *जिले के कोट मे भगवान बुद्ध तीन माह तक तपस्या किए थे।*
*प्रतापगढ़ के कई स्थानो मे बौद्धकालीन भग्नावशेष प्राप्त हुए है।*
*सई उत्तर गोमती नहाये।,*
*चौथे दिवस अवधपुर आये॥*
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख
जिला है। जो सन् 1857 में अस्तित्व में आया। प्रतापगढ़-कस्बा जिले का मुख्यालय है। ये जिला इलाहाबाद मंडल का एक हिस्सा है। ये जिला 25° 34' और 26° 11' उत्तरी अक्षांश) एवं 81° 19' और 82° 27' पूर्व देशान्तर रेखांओं पर स्थित है।

प्रतापगढ़ शहर में जल स्तर सन् 2012 के अनुसार 80 फिट से लेकर 140 फिट तक है। ये जिला इलाहाबाद फैजाबाद के मुख्य सड़क पर, 61 किलोमीटर इलाहाबाद से और 39 किलोमीटर
सुल्तानपुर से दूर पड़ता है।

समुद्र तल से इस जिले की ऊँचाई 137 मीटर के लगभग है। ये पूर्व से पश्चिम की ओर 110 किलोमीटर फैला हुआ है। इसके दक्षिण-पश्चिम में गंगा नदी 50 किलोमीटर का घेरा बनाती है जो इसे इलाहाबाद व कौशाम्बी (फतेहपुर ) से अलग करती है।गंगा , सई, बकुलाही यहाँ कि प्रमुख नदिया है। लोनी तथा सरकनी नदी जनपद में बहती है। उत्तर-पूर्व में गोमती नदी लगभग 6 किलोमीटर का घेरा बनाते हुये प्रवाहित होती है।

*मानसून*
प्रतापगढ़ में मानसून का आगमन *जून के प्रथम या द्वितीय सप्ताह से शुरु हो जाता है।* बारिस की हल्की-हल्की बूंदा-बादी, ठण्ड हवाओं के तेज झोंके व हर तरफ पेड़ों पर दिखने वाली हरियाली बड़ी ही मनोरम लगती है। *गर्मी का मौसम यहाँ पर मार्च के आखिरी सप्ताह से शुरू हो जाता है।* लेकिन कूलर चलाने की नौबत अप्रैल से ही पड़ती है। मई-जून में गर्मी का प्रकोप हर वर्ग को झेलना पड़ता है। *जुलाई से बारिस की ठण्डी फुहारें आये दिन मौसम को नम करती रहती है।* *अक्टूबर तक बूंदा-बादी का ये सिलसिला चलता रहता है।* नवम्बर से ठण्ड की सुगबुगाहट शुरु हो जाती है। घर के पंखे बंद होने लगते हैं और स्वेटर व रजाई आलमारी से बाहर आकर छतों पर धूप सेकने के लिये तैयार हो जाते हैं। *मैदानी व समुद्र तल से अधिक ऊँचाई पर होने के कारण ये इलाका बाढ़ मुक्त है।*
जनवरी व फरवरी में कड़ाके की ठण्ड के साथ ही भयानक कोहरा व धुंध सुबह के वक्त राजमार्गों पर वाहनों के लिये समस्या उत्पन्न कर देता है जिससे न चाहते हुये भी लोगों को वाहनों की हैड लाइट जलानी ही पड़ती है। *प्रतापगढ़ जिले का गरमियों में अधिकतम तापमान लगभग 46 डिग्री व सर्दियों में न्युनतम तापमान लगभग 3 डिग्री के आसपास होता है।*

*जनसांख्यिकी*
*भारतीय जनगणना 2001 के अनुसार प्रतापगढ़ जिले का जनसँख्या 2,727,156 है। लगभग 22 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जातियों की है।*
*मुसलमान जनसंख्या का लगभग 14 प्रतिशत हिस्सा हैं।* 1857 की क्रांति
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में प्रतापगढ़ का योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। *1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम* मे बेल्हा के वीर सपूतो ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणो की आहूति देने से पीछे नही हटे। 1857 की महान क्रांति में देश के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले *अमर शहीद बाबू गुलाब सिंह को इतिहास हमेशा याद रखेगा।* *तरौल के तालुकेदार बाबू गुलाब सिंह ने अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे।

*  जब इलाहाबाद से लखनऊ अंग्रेजी सैनिक क्रांतिकारियों के दमन के लिए जा रहे थे।तब *उन्होंने अपनी निजी सेना के साथ मांधाता क्षेत्र के कटरा गुलाब सिंह के पास बकुलाही नदी पर घमासान युद्ध करके कई अंग्रेजों को मार डाला था।*

*बकुलाही का पानी अंग्रेजों के खून से लाल हो गया था।* *मजबूर होकर अंग्रेजी सेना को वापस लौटना पड़ा था।* हालांकि इस लड़ाई में किले पर फिरंगी सैनिकों ने उनके कई सिपाही व उनकी महारानी को गोलियों से भून डाला था। *मुठभेड़ में बाबू गुलाब सिंह गंभीर रूप से घायल हुए थे।*

 *उचित इलाज के अभाव में तीसरे दिन वह अमर गति को प्राप्त हो गए।* ऐसे महान क्रांतिकारी की न तो कहीं समाधि बन पाई और न ही उनकी यादगार में स्मारक ही।

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में *प्रतापगढ़ के कालाकाँकर रियासत के राजा हनुमंत सिंह के पुत्र श्री लाल प्रताप सिंह चांदा के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और उनके चाचा अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए शहीद हुए।*

*यंहा के राजा राम पाल सिंह भारतीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक थे।* 

*महात्मा गाँधी का ऐतिहासिक भाषण कालाकाँकर में हुआ। महात्मा गाँधी की उपस्थिति में राजा अवधेश सिंह ने विदेशी वस्त्रों की होली जलायी।* 

*जनवरी 1920 को सुभाष चन्द्र बोस प्रतापगढ़ आये और सभी से अंग्रेजी सेना में न भर्ती होने की अपील की* यंहा सुभाष जी का स्वागत50000 लोगों ने किया। *पश्चिम अवध प्रान्त के प्रतापगढ़ का यह क्षेत्र स्वतंत्र भारत की भावना लिए हमेशा ही जनांदोलन करते हुए कालाकाँकर वीरों की वीरगति से सजा हुआ स्वाधीनता संग्राम में सबसे आगे रहा।*

*पंडित वचनेश त्रिपाठी* द्वारा रचित पाथेय कण (हिंदी पत्रिका) में प्रतापगढ़ में 1857 कि क्रांति कि एक और घटना इस प्रकार है, अवध के प्रतापगढ़ जिले में एक दुर्ग जो सई नदी के किनारे है, खासकर जहाँ सई नदी दिशा बदलकर मु ड़ती है। यह दुर्ग चतुर्दिक सघन अरण्य से आवेष्ठित है। यहाँ चार हजार क्रांतिकारी सैनिक एकत्र थे तथा इनके पास वही
*गणवेश (वर्दी)* था जो इन्हें ब्रिटिश सेना में पहनना पडता था। इसी सरकारी गणवेश में वे ब्रितानी फौज से लड़े थे। यह लडाई जैसा कि च् अवध गजेटियर छ में हवाला दिया गया, बड़ी विकट हुई। इस किले में तोपें बनाने तथा उनके लिए लोहा गलाने और गोले ढ़ालने के लिए बाकायदा भट्ठियाँ बनी हुई थीं, यहाँ से सब क्रन्तिकारी सिपाही हटे तो उनके पास जो तोपें थी उन्हें बेकार करके ही गये ताकि शत्रु सेना उनका उपयोग न कर पाये।

भारतीय किसान आन्दोलन
होमरूल लीग के कार्यकताओं के प्रयास तथा गौरीशंकर मिश्र, इन्द्र नारायण द्विवेदी तथा मदन मोहन मालवीय के दिशा निर्देशन के परिणामस्वरूप फ़रवरी, 1918 ई. में उत्तर प्रदेश में *'किसान सभा'* का गठन किया गया। 1919 ई. के अन्तिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया।

*प्रतापगढ़ ज़िले की एक जागीर में 'नाई धोबी बंद' सामाजिक बहिष्कार संगठित कारवाई की पहली घटना थी।*

अवध की तालुकेदारी में ग्राम पंचायतों के नेतृत्व में किसान बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया। *झिंगुरीपाल सिंह एवं दुर्गपाल सिंह* ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन जल्द ही एक चेहरे के रूप में *बाबा रामचन्द्र* उभर कर सामने आए। उत्तर प्रदेश के किसान आन्दोलन को 1920 ई. के दशक में सर्वाधिक मजबूती बाबा रामचन्द्र ने प्रदान की। उनके व्यक्तिगत प्रयासों से ही *17 अक्टूबर 1920 ई. को प्रतापगढ़ ज़िले में 'अवध किसान सभा' का गठन किया गया।* प्रतापगढ़ ज़िले का *'खरगाँव'* किसान सभा की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। इस संगठन को
*जवाहरलाल नेहरू, गौरीशंकर मिश्र, माता बदल पांडे, केदारनाथ* आदि ने अपने सहयोग से शक्ति प्रदान की।

*मुख्य आकर्षण*

बेल्हा देवी मंदिर प्रतापगढ़ की राजनीति में यहाँ के *तीन मुख्य राजघरानों* का नाम हमेशा रहा। इनमें से *पहला नाम है विश्वसेन राजपूत राय बजरंग बहादुर सिंह का परिवार है जिनके वंशज रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) हैं, राय बजरंग बहादुर सिंह हिमाचल प्रदेश के गवर्नर थे तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। दूसरा परिवार सोमवंशी राजपूत राजा प्रताप बहादुर सिंह का है और तीसरा परिवार राजा दिनेश सिंह का है जो पूर्व में भारत के वाणिज्य मंत्री और विदेश मंत्री जैसे पदों पर सुशोभित रहे। इनकी रियासत कालाकाकर क्षेत्र है। दिनेश सिंह की पुत्री राजकुमारी रत्ना सिंह भी राजनीति में हैं तथा कुण्डा का भक्ति धाम मनगढ तथा गंगा तट पर स्थित सिद्धपीठ माॅ ज्वालामुखी धाम की ऐतिहासिकता व पौराणिक ता जग जाहिर है*  प्रतापगढ़ हिंदी के बड़े साहित्यकारों के लिए भी जाना जाता है। *रीतिकाल के सुप्रसिद्ध आचार्य कवि भिखारीदास टेउंगा प्रतापगढ़ से ही रहे हैं। छायावाद के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर सुमित्रानंदन पंत ने कालाकांकर के राजा के सानिध्य में लंबे समय तक सृजन किया।*
समकालीन कवि *देवी प्रसाद मिश्र* प्रतापगढ़ के ही हैं। *प्रख्यात आलोचक डॉ करुणाशंकर उपाध्याय प्रोफेसर हिंदी विभाग मुंबई विश्व विद्यालय मुंबई भी घोरकातालुकदारी प्रतापगढ़ से ही हैं।* इसके अलावा *न्यायमूर्ति श्यामशंकर उपाध्याय* जो *वर्तमान समय में राज्यपाल उत्तर प्रदेश के विधि सलाहकार हैं* वे भी *घोरकातालुकदारी प्रतापगेढ़* से ही हैं। इस समय *योगी सरकार* में *राज्यमंत्री डॉ .महेंद्र प्रताप सिंह* भी प्रतापगढ़ से ही हैं। इस तरह प्रतापगढ़ ने देश को महत्वपूर्ण विभूतियाँ दी हैं।
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