मंदिर जाने के 7 वैज्ञानिक कारण
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आजकल किसी भी चीज के वैज्ञानिक कारण ढूंढे जाते हैं.. सही भी है इस वैज्ञानिक युग में आज हर कोई तर्क के आधार पर चलने का प्रयास करता है.. विज्ञान जानने वाले कुछ लोगों ने अध्यात्म से किनारा कर रखा है तो कुछ वैज्ञानिक अध्यात्म के साथ भी हैं.. अध्यात्म और विज्ञान मिलकर मानव जीवन एक नयी दिशा दे सकते हैं..
हिंदू धर्म और परंपरा में हर काम की शुरुआत ईश्वर को याद करने से होती है और मंदिर जाना भी इसका एक अहम हिस्सा है। लेकिन क्या आपको भी ऐसा लगता है कि मंदिर जाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। दरअसल मानव शरीर में 5 इंद्रियां सबसे अहम मानी जाती हैं। देखना, सुनना, स्पर्श करना, सूंघना और स्वाद महसूस करना। अब आप सोच रहे होंगे इन इंद्रियों का मंदिर जाने से क्या संबंध है। कहते हैं कि जब इंसान मंदिर में कदम रखता है तो शरीर की ये पांचों इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं।
१ श्रवण इंद्रिय - मंदिर में प्रवेश करने के साथ ही हम मंदिर के बाहर या मूलस्थान में लगी घंटी बजाते हैं। ये घंटियां इस तरह से बनी होती हैं कि इनसे निकलने वाली ध्वनि मस्तिष्क की दाईं और बाईं तरफ एकरूपता बनाती है। घंटी की यह आवाज 7 सेकंड तक प्रतिध्वनि के रूप में हमारे अंदर मौजूद रहती है। ये 7 सेकंड शरीर के 7 आरोग्य केंद्रों को क्रियाशील करने के लिए काफी हैं।
२ दर्शन इंद्रिय - मंदिर का गर्भगृह जहां भगवान की मूर्ति होती है उस जगह आमतौर पर रौशनी कम होती है और थोड़ा अंधेरा होता है। यहां पहुंचकर भक्त अपनी आंखें बंद कर भगवान को याद करते हैं। और जब वो अपनी आंखें खोलते हैं तो उनके सामने आरती के लिए कपूर जल रहा होता है। ये एकमात्र रौशनी होती है जो अंधेरे में प्रकाश देती है। ऐसे में हमारी दर्शन इंद्रिय या देखने की क्षमता सक्रिय हो जाती है।
३ स्पर्श इंद्रिय - आरती के बाद जब हम ईश्वर का आशीर्वाद ले रहे होते हैं तो हम कपूर या दीये की आरती पर अपना हाथ घुमाते हैं। इसके बाद हम अपने हाथ को आंखों से लगाते हैं। जब हम अपने हाथ को आंख पर रखते हैं तो हमें गर्माहट महसूस होती है। यह गर्माहट इस बात को सुनिश्चित करती है कि हमारी स्पर्श इंद्रिय क्रियाशील है।
४ गंध इंद्रिय - हम मंदिर में भगवान को अर्पित करने के लिए फूल लेकर जाते हैं, जो पवित्र होते हैं और उनसे अच्छी खुशबू आ रही होती है। मंदिर में फूल, कपूर और अगरबत्ती, इन सबसे निकल रही सुगंध या खुशबू हमारी गंध इंद्रिय या सूंघने की इंद्रिय को भी सक्रिय कर देती हैं।
५ आस्वाद इंद्रिय - मंदिर में भगवान के दर्शन के बाद हमें चरणामृत मिलता है। यह एक द्रव्य प्रसाद होता है जिसे तांबे के बर्तन में रखा जाता है। आयुर्वेद के मुताबिक, तांबे के बर्तन में रखा पानी या तरल पदार्थ हमारे शरीर के 3 दोषों को संतुलित रखने में मदद करता है। ऐसे में जब हम उस चरणामृत को पीते हैं तो हमारी आस्वाद इंद्रिय या स्वाद महसूस करने वाली क्षमता भी सक्रिय हो जाती है।
६ मंदिर में खाली पैर क्यों जाते हैं - मंदिर की जमीन को सकारात्मक ऊर्जा या पॉजिटिव एनर्जी का वाहक माना जाता है। और यह ऊर्जा भक्तों में उनके पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं। इसके अलावा एक व्यवहारिक कारण भी है। हम चप्पल या जूते पहनकर कई जगहों पर जाते हैं। ऐसे में मंदिर जो कि एक पवित्र जगह है, उसके अंदर बाहर की गंदगी या नकरात्मकता ले जाना सही नहीं है।
७ मंदिर में परिक्रमा की वजह - पूजा के बाद हमारे बड़े-बुजुर्ग, जहां भगवान की मूर्ति विद्यमान है उस हिस्से की परिक्रमा करने के लिए कहते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जब हम परिक्रमा करते हैं तो हम मंदिर में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। और पूजा का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर पाते हैं।
इस प्रकार हिंदू धर्म से जुड़ी हर मान्यता के पीछे हमारे हित की कोई न कोई बात जरूर छिपी हुई है.. हमें चाहिये कि हम अपने सनातन धर्म के प्रति निष्ठावान रहें और सबको जागृत करें..
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