*गृहस्थ गीता के अनमोल वचन*
जीवन में चार का महत्व :-
1. चार बातों को याद रखे :-
-बड़े बूढ़ों का आदर करना,
-छोटों की रक्षा करना एवं उनपर स्नेह करना,
-बुद्धिमानों से सलाह लेना और
--मूर्खों के साथ कभी न उलझना !
2. चार चीजें पहले दुर्बल दिखती हैं परन्तु परवाह न करने पर बढक़र दु:ख का कारण बनती हैं :-
-अग्नि,
-रोग,
-ऋण और
-पाप !
3. चार चीजों का सदा सेवन करना चाहिए :-
-सत्संग,
-संतोष,
-दान और
-दया !
4. चार अवस्थाओं में आदमी बिगड़ता है :-
-जवानी,
-धन,
-अधिकार और
-अविवेक !
5. चार चीजें मनुष्य को बड़े भाग्य से मिलती हैं :-
-भगवान को याद रखने की लगन,
-संतों की संगति,
-चरित्र की निर्मलता और
--उदारता !
-चरित्र की निर्मलता और
--उदारता !
6. चार गुण बहुत दुर्लभ है :-
-धन में पवित्रता,
-दान में विनय,
-वीरता में दया और
-अधिकार में निराभिमानता !
7. चार चीजों पर भरोसा मत करो :-
-बिना जीता हुआ मन,
-शत्रु की प्रीति,
-स्वार्थी की खुशामद और
-बाजारू ज्योतिषियों की भविष्यवाणी !
8. चार चीजों पर भरोसा रखो :-
-सत्य,
-पुरुषार्थ,
-स्वार्थहीन और
-मित्र !
9. चार चीजें जाकर फिर नहीं लौटतीं :-
-मुह से निकली बात,
-कमान से निकला तीर,
-बीती हुई उम्र और
-मिटा हुआ ज्ञान !
-मुह से निकली बात,
-कमान से निकला तीर,
-बीती हुई उम्र और
-मिटा हुआ ज्ञान !
10. चार बातों को हमेशा याद रखें :-
-दूसरे के द्वारा अपने ऊपर किया गया उपकार,
-अपने द्वारा दूसरे पर किया गया अपकार,
-मृत्यु और
-भगवान !
11. चार के संग से बचने की चेष्टा करें :-
-नास्तिक,
-अन्याय का धन,
-पर(परायी) नारी और
-परनिन्दा !
12. चार चीजों पर मनुष्य का बस नहीं चलता :-
-जीवन,
-मरण,
-यश और
-अपयश !
13. चार पर परिचय चार अवस्थाओं में मिलता है :-
-दरिद्रता में मित्र का,
-निर्धनता में स्त्री का,
-रण में शूरवीर का और
-बदनामी में बंधु-बान्धवों का !
14. चार बातों में मनुष्य का कल्याण है :-
-वाणी के संयम में,
-अल्प निद्रा में,
-अल्प आहार में और
-एकांत के भगवत्स्मरण में !
15. शुद्ध साधना के लिए चार बातों का पालन आवश्यक है :-
-भूख से कम खाना,
-लोक प्रतिष्ठा का त्याग,
-निर्धनता का स्वीकार और
-ईश्वर की इच्छा में संतोष !
16. चार प्रकार के मनुष्य होते हैं :-
(क) मक्खीचूस - न आप खाये और न दूसरों को दे !
(ख) कंजूस - आप तो खाये पर दूसरों को न दे !
(ग) उदार - आप भी खाये और दूसरे को भी दे !
(घ) दाता - आप न खाय और दूसरे को दे ! यदि दाता नहीं बन सकते तो कम से कम उदार तो बनना ही चाहिए !
17. मन के चार प्रकार हैं :-
-धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है,
-पापी का मन रोगी है,
-लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और
-भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है
-धर्म से विमुख जीव का मन मुर्दा है,
-पापी का मन रोगी है,
-लोभी तथा स्वार्थी का मन आलसी है और
-भजन साधना में तत्पर का मन स्वस्थ है
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