रविवार, 9 अगस्त 2020

These 25 lessons from Mahabharata, महाभारत से मिलते हैं ये 25 सबक,

 *महाभारत से मिलते हैं ये 25 सबक, आपने जान लिए तो जीत जाएंगे जिंदगी की जंग*
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_महाभारत की शिक्षा हर काल में प्रासंगिक रही है। महाभारत को पढ़ने के बाद इससे हमें जो शिक्षा  या सबक मिलता है, उसे याद रखना भी जरूरी है। तो आओ हम जानते हैं ऐसी ही 25 तरह की शिक्षाएं, जो हमें महाभारत, युगंधर और मृत्युंजन पढ़ने पर मिलती हैं। हालांकि यह भी सच है कि आप महाभारत पढ़ेंगे तो हो सकता है कि आपको कुछ अलग शिक्षा या सबक मिले।_ 

1.जीवन हो योजनाओं से भरा : जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेहतर रणनीति आपके जीवन को सफल बना सकती है और यदि कोई योजना या रणनीति नहीं है तो समझो जीवन एक अराजक भविष्य में चला जाएगा जिसके सफल होने की कोई गारंटी नहीं। भगवान श्रीकृष्ण के पास पांडवों को बचाने का कोई मास्टर प्लान नहीं होता तो पांडवों की कोई औकात नहीं थी कि वे कौरवों से किसी भी मामले में जीत जाते।


2.संगत और पंगत हो अच्‍छी : कहते हैं कि जैसी संगत वैसी पंगत और जैसी पंगत वैसा जीवन। आप लाख अच्छे हैं लेकिन यदि आपकी संगत बुरी है, तो आप बर्बाद हो जाएंगे। लेकिन यदि आप लाख बुरे हैं और आपकी संगत अच्छे लोगों से है और आप उनकी सुनते भी हैं, तो निश्‍चित ही आप आबाद हो जाएंगे। कौरवों के साथ शकुनि जैसे लोग थे जो पांडवों के साथ कृष्ण। शकुनि मामा जैसी आपने संगत पाल रखी है तो आपका दिमाग चलना बंद ही समझो।

3.अधूरा ज्ञान घातक : कहते हैं कि अधूरा ज्ञान सबसे खतरनाक होता है। इस बात का उदाहरण है अभिमन्यु। अभिमन्यु बहुत ही वीर और बहादुर योद्धा था लेकिन उसकी मृत्यु जिस परिस्थिति में हुई उसके बारे में सभी जानते हैं। मुसीबत के समय यह अधूरा ज्ञान किसी भी काम का नहीं रहता है। आप अपने ज्ञान में पारंगत बनें। किसी एक विषय में तो दक्षता हासिल होना ही चाहिए।

4.दोस्त और दुश्मन की पहचान करना सीखें : महाभारत में ऐसे कई मित्र थे जिन्होंने अपनी ही सेना के साथ विश्वासघात किया। ऐसे भी कई लोग थे, जो ऐनवक्त पर पाला बदलकर कौरवों या पांडवों के साथ चले गए। शल्य और युयुत्सु इसके उदाहरण हैं। इसीलिए कहते हैं कि कई बार दोस्त के भेष में दुश्मन हमारे साथ आ जाते हैं और हमसे कई तरह के राज लेते रहते हैं। कुछ ऐसे भी दोस्त होते हैं, जो दोनों तरफ होते हैं। जैसे कौरवों का साथ दे रहे भीष्म, द्रोण और विदुर ने अंतत: युद्ध में पांडवों का ही साथ दिया।

5.हथियार से ज्यादा घातक बोल वचन : महाभारत का युद्ध नहीं होता यदि कुछ लोग अपने वचनों पर संयम रख लेते। जैसे द्रौपदी यदि दुर्योधन को ‘अंधे का पुत्र भी अंधा’ नहीं कहती तो महाभारत नहीं होती। शिशुपाल और शकुनी हमेशा चुभने वाली बाते ही करते थे लेकिन उनका हश्र क्या हुआ यह सभी जानते हैं। सबक यह कि कुछ भी बोलने से पहले हमें यह सोच लेना चाहिए कि इसका आपके जीवन, परिवार या राष्ट्र पर क्या असर होगा।

6.जुए-सट्टे से दूर रहो : शकुनि ने पांडवों को फंसाने के लिए जुए का आयोजन किया था जिसके चलते पांडवों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था। अंत में उन्होंने द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया था। यह बात सभी जानते हैं कि फिर क्या हुआ? अत: जुए, सट्टे, षड्यंत्र से हमेशा दूर रहो। ये चीजें मनुष्य का जीवन अंधकारमय बना देती हैं।

7. सदा सत्य के साथ रहो : कौरवों की सेना पांडवों की सेना से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी। एक से एक योद्धा और ज्ञानीजन कौरवों का साथ दे रहे थे। पांडवों की सेना में ऐसे वीर योद्धा नहीं थे। कहते हैं कि विजय उसकी नहीं होती जहां लोग ज्यादा हैं, ज्यादा धनवान हैं या बड़े पदाधिकारी हैं। विजय हमेशा उसकी होती है, जहां ईश्वर है और ईश्वर हमेशा वहीं है, जहां सत्य है इसलिए सत्य का साथ कभी न छोड़ें। अंतत: सत्य की ही जीत होती है। सत्य के लिए जो करना पड़े करो।

8. लड़ाई से डरने वाले मिट जाते हैं : जिंदगी एक उत्सव है, संघर्ष नहीं। लेकिन जीवन के कुछ मोर्चों पर व्यक्ति को लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। जो व्यक्ति लड़ना नहीं जानता, युद्ध उसी पर थोपा जाएगा या उसको सबसे पहले मारा जाएगा। महाभारत में पांडवों को यह बात श्रीकृष्ण ने अच्‍छे से सिखाई थी। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण तरीके से नहीं होता, तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं।

युद्ध भूमि पर पहुंचने के बाद भी अर्जुन युद्ध नहीं करना चाहता था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उससे कहा कि न कोई मरता है और न कोई मारता है। सभी निमित्त मात्र हैं। आत्मा अजर और अमर है… इसलिए मरने या मारने से क्या डरना?

9. खुद नहीं बदलोगे तो समाज तुम्हें बदल देगा : जीवन में हमेशा दानी, उदार और दयालु होने से काम नहीं चलता। महाभारत में जिस तरह से कर्ण की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आए, उससे यही सीख मिलती है कि इस क्रूर दुनिया में अपना अस्तित्व बनाए रखना कितना मुश्किल होता है। इसलिए समय के हिसाब से बदलना जरूरी होता है, लेकिन वह बदलाव ही उचित है जिसमें सभी का हित हो। कर्ण ने खुद को बदलकर अपने जीवन के लक्ष्य तो हासिल कर लिया, लेकिन वे फिर भी महान नहीं बन सकें, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा का उपयोग समाज से बदला लेने की भावना से किया। बदले की भावना से किया गया कोई भी कार्य आपके समाज का हित नहीं कर सकता।

10. शिक्षा का सदुपयोग जरूरी : समाज ने एक महान योद्धा कर्ण को तिरस्कृत किया था, जो समाज को बहुत कुछ दे सकता था लेकिन समाज ने उसकी कद्र नहीं की, क्योंकि उसमें समाज को मिटाने की भावना थी। कर्ण के लिए शिक्षा का उद्देश्य समाज की सेवा करना नहीं था अपितु वो अपने सामर्थ्य को आधार बनाकर समाज से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। समाज और कर्ण दोनों को ही अपने-अपने द्वारा किए गए अपराध के लिए दंड मिला है और आज भी मिल रहा है। कर्ण यदि यह समझता कि समाज व्यक्तियों का एक जोड़ मात्र है जिसे हम लोगों ने ही बनाया है, तो संभवत: वह समाज को बदलने का प्रयास करता न कि समाज के प्रति घृणा करता।

11.अच्छे दोस्तों की कद्र करो : ईमानदार और बिना शर्त समर्थन देने वाले दोस्त भी आपका जीवन बदल सकते हैं। पांडवों के पास भगवान श्रीकृष्ण थे तो कौरवों के पास महान योद्धा कर्ण थे। इन दोनों ने ही दोनों पक्षों को बिना शर्त अपना पूरा साथ और सहयोग दिया था। यदि कर्ण को छल से नहीं मारा जाता तो कौरवों की जीत तय थी। पांडवों ने हमेशा श्रीकृष्ण की बातों को ध्यान से सुना और उस पर अमल भी किया लेकिन दुर्योधन ने कर्ण को सिर्फ एक योद्धा समझकर उसका पांडवों की सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया। यदि दुर्योधन कर्ण की बात मानकर कर्ण को घटोत्कच को मारने के लिए दबाव नहीं डालता, तो इंद्र द्वारा दिया गया जो अमोघ अस्त्र कर्ण के पास था उससे अर्जुन मारा जाता।

12. भावुकता कमजोरी है : धृतराष्ट्र अपने पुत्रों को लेकर जरूरत से ज्यादा ही भावुक और आसक्त थे। यही कारण रहा कि उनका एक भी पुत्र उनके वश में नहीं रहा। वे पुत्रमोह में भी अंधे थे। इसी तरह महाभारत में हमें ऐसे कुछ पात्र मिलते हैं जो अपनी भावुकता के कारण मूर्ख ही सिद्ध होते हैं। जरूरत से ज्यादा भावुकता कई बार इंसान को कमजोर बना देती है और वो सही-गलत का फर्क नहीं पहचान पाता। कुछ ऐसा ही हुआ महाभारत में धृतराष्ट्र के साथ, जो अपने पुत्रमोह में आकर सही-गलत का फर्क भूल गए।

13. शिक्षा और योग्यता के लिए जुनूनी बनो : व्यक्ति के जीवन में उसके द्वारा हासिल शिक्षा और उसकी कार्य योग्यता ही काम आती है। दोनों के प्रति एकलव्य जैसा जुनून होना चाहिए तभी वह हासिल होती है। अगर आप अपने काम के प्रति जुनूनी हैं तो कोई भी बाधा आपका रास्ता नहीं रोक सकती।

14. कर्मवान बनो : इंसान की जिंदगी जन्म और मौत के बीच की कड़ी-भर है। यह जिंदगी बहुत छोटी है। कब दिन गुजर जाएंगे, आपको पता भी नहीं चलेगा इसलिए प्रत्येक दिन का भरपूर उपयोग करना चा‍हिए। कुछ ऐसे भी कर्म करना चाहिए, जो आपके अगले जीवन की तैयारी के हों। ज्यादा से ज्यादा कार्य करो, घर और कार्यालय के अलवा भी ऐसे कार्य करो जिससे आपकी सांतानें आपको याद रखें। गीता यही संदेश देती है कि हर पर ऐसा कार्य कर जो तेरे जीवन को सुंदर बनाए।

15. अहंकार और घमंड होता है पतन का कारण : अपनी अच्छी स्थिति, बैंक-बैलेंस, संपदा, सुंदर रूप और विद्वता का कभी अहंकार मत कीजिए। समय बड़ा बलवान है। धनी, ज्ञानी, शक्तिशाली पांडवों ने वनवास भोगा और अतिसुंदर द्रौपदी भी उनके साथ वनों में भटकती रही। समय के खेल निराले हैं। जिस अंबा का जीवन भीष्म के कारण बर्बाद हो गया था उसने शिखंडी के रूप में जन्म लेकर भीष्म से बदला लिया था। महाभारत में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनसे यह प्रेरणा मिलती है कि घमंड को पतन का कारण बनने में देर नहीं लगती है।

16. कोई भी संपत्ति किसी की भी नहीं है : अत्यधिक लालच इंसान की जिंदगी को नर्क बना देता है। जो आपका नहीं है उसे अनीतिपूर्वक लेने, हड़पने का प्रयास न करें। आज नहीं तो कल, उसका दंड अवश्य मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज जो तेरा है कल (बीता हुआ कल) किसी और का था और कल (आने वाला कल) किसी और का हो जाएगा। अत: तू संपत्ति और वस्तुओं से आसक्ति मत पाल। यह तेरी मृत्यु के बाद यहीं रखे रह जाएंगे। अर्जित करना है तो परिवार का प्रेम और अपनत्व अर्जित कर, जो हमेशा तेरे साथ रहेगा।

17. ज्ञान का हो सही क्रियान्वयन : शिष्य या पुत्र को ज्ञान देना माता-पिता व गुरु का कर्तव्य है, लेकिन सिर्फ ज्ञान से कुछ भी हासिल नहीं होता। बिना विवेक और सद्बुद्धि के ज्ञान अकर्म या विनाश का कारण ही बनता है इसलिए ज्ञान के साथ विवेक और अच्छे संस्कार देने भी जरूरी हैं। हमने ऐसे कई व्यक्ति देखें हैं जो है तो बड़े ज्ञानी लेकिन व्यक्तित्व से दब्बू या खब्बू हैं या किसी जंगल में धूनी रमाकर बैठे हैं। उनके ज्ञान से न तो परिवार का हित हो रहा है और न समाज का। ऐसे लोगों को कहते हैं अपने मियां मिट्ठु। खुद लिखे और खुद ही बांचे।

18. दंड का डर जरूरी : न्याय व्यवस्था वही कायम रख सकता है, जो दंड को सही रूप में लागू करने की क्षमता रखता हो। यह चिंतन घातक है कि ‘अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं।’.. दुनियाभर की जेलों से इसके उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं कि जिन अपराधियों को सुधारने की दृष्टि से पुनर्वास कार्यक्रम चलाए गए, उन्होंने समाज में जाकर फिर से अपराध को अंजाम दिया है। अपराधी को हर हाल में दंड मिलना ही चाहिए। यदि उसे दंड नहीं मिलेगा, तो समाज में और भी अपराधी पैदा होंगे और फिर इस तरह संपूर्ण समाज ही अपराधियों का समाज बन जाएगा। युधिष्ठिर के अहिंसा में उनके विश्वास को देखते हुए युद्ध के बाद भीष्म को उन्हें उपदेश देना पड़ा कि राजधर्म में हमेशा दंड की जरूरत होती है, क्योंकि प्रत्येक समाज में अपराधी तो होंगे ही। दंड न देना सबसे बड़ा अपराध होता है।

19. न्याय की रक्षा जरूरी : न्याय हमेशा उन लोगों के साथ होता है, जो शक्तिशाली हैं या जो न्याय पाने के लिए प्राणपन से उत्सुक हैं। जिन्होंने अपने लिए न्याय मांगा है उनके साथ ईश्वर ने न्याय किया भी है। मांगोगे नहीं तो मिलेगा भी नहीं, यह प्रकृति का नियम है। गुरु द्रोणाचार्य ने कर्ण और एकलव्य के साथ जरूर अन्याय किया था लेकिन आज दुनिया अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर नहीं मानती, क्योंकि कर्ण और एकलव्य ने हमेशा न्याय की मांग की और अंत में आज दुनिया उन्हें श्रेष्‍ठ धनुर्धर मानती है। महाभारत हमें सिखाती है कि न्याय की रक्षा करना कितना जरूरी है। लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि न्याय सिर्फ शक्तिशाली लोगों के साथ ही है।

20. छिपे हुए को जानने का ज्ञान जरूरी : यह जगत या व्यक्ति जैसा है, वैसा कभी दिखाई नहीं देता अर्थात लोग जैसे दिखते हैं, वैसे होते नहीं चाहे वह कोई भी हो। महाभारत का हर पात्र ऐसा ही है, रहस्यमयी। छिपे हुए को जानना ही व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए, क्योंकि ज्ञान ही व्यक्ति को बचाता है। भगवान श्रीकृष्ण के ऐसे कई योद्धा थे जो छिपे हुए सत्य को जानते थे।

21. सफर करने में होती है बरकत : एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना या एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर रहने से लाभ ही मिलता है। पांडवों को हस्तिनापुर छोड़कर दो बार जंगल में रहना पड़ा और अंत में उनको जब खांडवप्रस्थ मिला तो वे वहां चले गए। इसी तरह भगवान श्रीकृष्ण को भी कई बार मथुरा को छोड़कर जाना पड़ा और अंत में वे द्वारिका में बस गए थे। कई बार लोगों को व्यापार या नौकरी के लिए दूसरे शहर या देश में जाना होता है।

22. गोपनीयता और संयम जरूरी : जीवन हो या युद्ध, सभी जगह गोपनीयता का महत्व है। यदि आप भावना में बहकर किसी को अपने जीवन के राज बताते हैं या किसी व्यक्ति या समाज विशेष पर क्रोध या कटाक्ष करते हैं, तो आप कमजोर माने जाएंगे। महाभारत में ऐसे कई मौके आए जबकि नायकों ने अपने राज ऐसे व्यक्ति के समक्ष खोल दिए, जो राज जानने ही आया था। जिसके चलते ऐसे लोगों को मुंह की खानी पड़ी। दुर्योधन, भीष्म, बर्बरिक ऐसे उदाहण है जिन्होंने अपनी कमजोरी और शक्ति का राज खोल दिया था।

23.चिंता, भय और अशांति है मृत्यु का द्वार : किसी भी प्रकार की चिंता करना, मन को अशांत रखना और व्यर्थ के भय को पालते रहने से मृत्यु आसपास ही मंडराने लगती है। मौत तो सभी को आनी है फिर चिंता किस बात की। कोई पहले मरेगा और कोई बाद में। चिंता का मुख्य कारण मोह है। जेलखान, दावाखाना या पागलखाना वह व्यक्ति जाता है जिसने धर्मसम्मत या संयमित जीवन नहीं जिया। बहुत महात्वाकांशी है या जिसने धन और शक्ति के आधार पर रिश्ते बना रखे हैं या जिसे अपनी संपत्ति की सुरक्षा की चिंता है। महाभारत को पढ़ने से हमें यही शिक्षा मिलती है कि चिंत्तामुक्त जीवन सबसे बड़ी दौलत है।

24. इन्द्रिय संयम जरूरी : इन्द्रियां कभी तृप्त नहीं होतीं। जो इन्द्रियों के वश में है उसका पतन निश्चित है। बहुत से लोग आजकल किसी न किसी प्रकार की आदत या नशे के गुलाम हैं। ऐसे लोगों का धीरे-धीरे क्षरण होता जाता है। इन्द्रिय संयम आता है संकल्प से। महाभारत का हर पात्र संकल्प से बंधा हुआ है। शक्ति का संचय इन्द्रियों को वश में करने से ही संभव हो पाता है।

25.राजा या योद्धा को नहीं करना चाहिए परिणाम की चिंता : कहते हैं कि जो योद्ध या राज युद्ध के परिणाम की चिंता करता है वह अपने जीवन और राज्य को खतरे में डाल देता है। परिणाम की चिंता करने वाला कभी भी साहसपूर्वक न तो निर्णय ले पाता है और न ही युद्ध कर पाता है। जीवन के किसी पर मोड़ पर हमारे निर्णय ही हमारा भविष्य तय करते हैं। एक बार निर्णय ले लेने के बाद फिर बदलने का अर्थ यह है कि आपने अच्छे से सोचकर निर्णय नहीं लिया या आपमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है।

🇮🇳 एक भारत श्रेष्ठ भारत 🇮🇳: 
🙏🕉️🌞महाभारत  को पढ़ने, समझने, व सीखने के लिए समय और इच्छा न हो तो भी इसका नव सार सूत्र सबके जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है :-
🌞1. संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे = कौरव। 
🌞2. आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन अधर्म के साथ हो तो आपकी विद्या अस्त्र शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा =  कर्ण।
🌞3. संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे =  अश्वत्थामा। 
🌞4. कभी किसी को ऐसा वचन मत दो कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े  = भीष्म पितामह। 
🌞5. संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है =  दुर्योधन। 
 🌞6. अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता  भी विनाश की ओर ले जाती है  = धृतराष्ट्र।
🌞7. व्यक्ति के पास विद्या  विवेक से बँधी  हो तो विजय अवश्य मिलती है =अर्जुन।
🌞8. हर कार्य में छल, कपट, व  प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते = शकुनि। 
🌞9. यदि आप नीति, धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती = युधिष्ठिर।
🌞रीति, नीति, विद्या, विनय, ये द्वार सुमति के चार ।
इनको पाता है वही, जिसका हृदय  रहे उदार ।।
🌞यदि इन  सूत्रों से सबक ले पाना सम्भव नहीं होता है तो महाभारत संभव हो जाता है।🙏🌺🌹🌷💐🌞💖💖🌻🇮🇳🥀🍁🕉️🍂🚩

🙏🇮🇳 एक भारत श्रेष्ठ भारत 🇮🇳:

-टेढ़े लोगो से व्यवहार 

-कुछ ऐसे टेढ़े लोग होते हैं जो हर परिस्थिति  को असाध्य बनाने में माहिर  होते हैं । 

-उनका व्यवहार मुश्किले पैदा करता है  । ऐसे टेढ़े लोगो को आप  हरा नहीं सकते । 

-उनके अनुसार सभी गलतियां आप ने ही की हैं । 

-आप कितनी ही सफाई देने की कोशिश कर लें वह आप का पक्ष नहीं  समझेंगे । 

-20 बार सफाई देने के बाद भी उन की नजर में दोषी आप ही हैं । 

-आप टेढ़े व्यक्ति  पर उंगली उठाना शुरू न  कर दें  ।  आप उन से जीत नहीं पाएंगे ।  आप पर प्रतिकूल प्रभाव पड़   सकता है । 

-टेढ़े  लोगो के साथ संघर्ष की स्थिति  में मन  शांत रखना जरूरी है । 

-रोने या  चिल्लाने से सामने वाला व्यक्ति और अधिक अड़ियल हो जाता है  । 

-टेढ़े व्यक्ति के प्रति उदासीन रहने  की  भी जरूरत है । 

- गुस्से में ऐसी वैसी बाते न बोलो जिस से स्थिति बिगड़ जाए और बाद में पछताना पड़े । 

-कुछ भी हो जाए खुद को शांत रखें । वह टेढ़ा है  मूर्ख नहीं  है । 

-क्रोध में कहे  गये शब्द बार बार आप के खिलाप प्रयोग किए जाएंगे । 

-टेढ़े लोगो की यादाश्त तेज होती हैं ।   पांच साल पहले की कही गई  बात भी उन्हे ऐसे याद रहती है  जैसे अभी की हो । 

-सभी गलतियां  आप की हैं और  आप  पत्थर प्राकृति के  हैं यह   सिद्व करने की कोशिश करेगा । 

-उसके मन में यह भ्रम है  क़ि सभी  मुश्किल  परिस्थितयां आप  की  ही  वजह से हैं । 

-अगर टेढ़ा व्यक्ति घर में है तो हमें उस से काम भी लेना है ।  हमें उसके साथ बिना गतिरोध के रहना  है । 

-जो भी समस्या है उसे ठीक करने की जुम्मेवारी आप की ही है ।  उसे ठीक करने का प्रयास मन से,  बोल से और कर्म से,   आप को ही करना है । 

-कई  बार लगेगा अब  उनके साथ रहना बर्दाश्त से बाहर  है ।  डटे रहो,  घर,  दफ्तर या संस्था से भागना नहीं, धीरे धीरे आप की  आदत बन जाएगी । 

-टेढ़ा व्यक्ति दूसरो के साथ सलीके से और हंस हंस कर बात करेगा परन्तु आपसे निकृष्ट व्यवहार करेगा ।  वह आप की किसी न  किसी बात से आहत है । 

-उसके व्यवहार से दूसरे किसी को दिक्कत नहीं होती  वह सिर्फ आप के लिये टेढ़ा है । 

-इस का मूल कारण यह  है क़ि  उसे आप से मन का प्यार नहीं मिल रहा ।  आप शिव बाबा को प्यार से याद करते रहो ।  इस से आप के मन से ऐसी स्नेह की तरंगे निकलेगी जो टेढ़े आदमी को बदल देंगी 

महाभारत से हमें अनेक गहन शिक्षाएँ मिलती हैं जो जीवन और समाज में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। यहाँ 25 मुख्य सबक दिए गए हैं जिन्हें हम अपने जीवन में अपनाकर अपने और समाज के कल्याण के लिए कार्य कर सकते हैं:


1. धर्म का पालन करें

धर्म का अर्थ केवल पूजा नहीं, बल्कि अपने कर्तव्यों का सही तरीके से पालन करना है।

2. सत्य और ईमानदारी

सत्य की राह पर चलने वाले को अंततः विजय मिलती है।

3. कर्तव्य के प्रति समर्पण

जीवन में अपने कर्तव्यों को कभी न छोड़ें, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

4. अहंकार का त्याग करें

अहंकार न केवल दूसरों के लिए बल्कि स्वयं के लिए भी विनाशकारी है।

5. स्त्रियों का सम्मान करें

द्रौपदी के अपमान ने पूरे महाभारत को जन्म दिया। समाज में स्त्रियों का सम्मान सर्वोपरि है।

6. माफ करना सीखें

किसी को क्षमा करना आत्मशक्ति और उच्च चरित्र का प्रतीक है।

7. इच्छाओं पर नियंत्रण रखें

लालच और वासना व्यक्ति के पतन का कारण बनती हैं।

8. अनुशासन का पालन करें

भीष्म ने जीवनभर अनुशासन और अपनी प्रतिज्ञाओं का पालन किया।

9. ज्ञान का उपयोग करें

विदुर और कृष्ण ने अपने ज्ञान से हर समस्या का समाधान निकाला।

10. गलत संगति से बचें

दुर्योधन का पतन उसकी बुरी संगति (शकुनि) के कारण हुआ।

11. न्यायप्रिय बनें

हमेशा निष्पक्षता और न्याय के पक्ष में खड़े रहें।

12. दूसरों की मदद करें

कृष्ण ने हमेशा पांडवों की मदद की और उनका मार्गदर्शन किया।

13. क्रोध पर नियंत्रण रखें

क्रोध से सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है और गलत निर्णय लिए जाते हैं।

14. मित्रता का महत्व समझें

सच्चे मित्र जीवन में सहारा बनते हैं, जैसे कृष्ण और अर्जुन की मित्रता।

15. परिवार में एकता बनाए रखें

कौरव और पांडवों का संघर्ष यह सिखाता है कि परिवार की एकता जरूरी है।

16. समय का सम्मान करें

जीवन में सही समय पर सही निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।

17. परिश्रम और लगन

पांडवों ने कठिन परिश्रम और धैर्य से अपने लक्ष्य को हासिल किया।

18. विवेक से निर्णय लें

हर स्थिति में विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।

19. धन और सत्ता का दुरुपयोग न करें

कौरवों ने अपनी सत्ता का दुरुपयोग किया, जिससे उनका विनाश हुआ।

20. आत्मसंयम रखें

भीष्म और युधिष्ठिर आत्मसंयम का आदर्श प्रस्तुत करते हैं।

21. बड़ों का सम्मान करें

भीष्म और द्रोण जैसे पात्रों ने हमेशा बड़ों का आदर करना सिखाया।

22. ईर्ष्या से बचें

दुर्योधन की ईर्ष्या ने उसे नाश की ओर धकेल दिया।

23. विनम्रता बनाए रखें

विनम्र व्यक्ति हर स्थिति में सम्मान पाता है।

24. कठिनाई में भी आशा न छोड़ें

पांडवों ने अपने वनवास और कठिन समय में भी हार नहीं मानी।

25. कर्म पर ध्यान दें

कृष्ण ने गीता में कहा है कि फल की चिंता किए बिना कर्म करते रहो।


महाभारत केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का दर्पण है। इसमें दी गई शिक्षाएँ हमें हर परिस्थिति में सही राह दिखाती हैं। इन सूत्रों को अपनाकर हम अपने जीवन और समाज को बेहतर बना सकते हैं।


🇮🇳 एक भारत श्रेष्ठ भारत 🇮🇳: 

*महाभारत  को पढ़ने, समझने, व  सीखने के लिए समय और इच्छा न हो तो भी इसका नव सार सूत्र सबके जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है :-*

1  संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे = कौरव 

2   आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन  अधर्म के साथ हो तो आपकी विद्या अस्त्र शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा =  कर्ण

3    संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे =  अश्वत्थामा 

4 कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े  = भीष्म पितामह 

5   संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है =  दुर्योधन 

 6  अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता  भी विनाश की ओर ले जाती है  = धृतराष्ट्र 

7   व्यक्ति के पास विद्या  विवेक से बँधी  हो तो विजय अवश्य मिलती है =अर्जुन 

8  हर कार्य में छल, कपट, व  प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते = शकुनि 

9    यदि आप नीति,  धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती = युधिष्ठिर 

*रीति, नीति, विद्या, विनय, ये द्वार सुमति के चार ।*
*इनको पाता है वही, जिसका हृदय  रहे उदार ।।*
यदि इन  सूत्रों से सबक ले पाना सम्भव नहीं होता है तो महाभारत संभव हो जाता है।

🇮🇳 एक भारत श्रेष्ठ भारत 🇮🇳: प्रकृति के तीन कड़वे नियम, जो सत्य है !!!

1. प्रकृति का पहला नियम
यदि खेत में बीज न डालें जाएं, तो कुदरत उसे *घास-फूस* से भर देती है !!
ठीक उसी तरह से दिमाग में अगर *सकारात्मक* विचार न भरे जाएँ, तो *नकारात्मक* विचार अपनी जगह बना ही लेते हैं !! 

2. प्रकृति का दूसरा नियम
जिसके पास जो होता है, *वह वही बांटता है !!*
• सुखी *सुख* बांटता है !!
• दुःखी *दुःख* बांटता है !!
• ज्ञानी *ज्ञान* बांटता है !!
• भ्रमित *भ्रम* बांटता है !!
• भयभीत *भय* बांटता हैं !!

 3. प्रकृति का तीसरा नियम
आपको जीवन में जो भी मिले, उसे *पचाना* सीखो क्योंकि -
• *भोजन* न पचने पर, रोग बढ़ते हैं
• *पैसा* न पचने पर, दिखावा बढ़ता है
• *बात* न पचने पर, चुगली बढ़ती है
• *प्रशंसा* न पचने पर, अंहकार  बढ़ता है 
• *निंदा* न पचने पर, दुश्मनी बढ़ती है
• *राज़* न पचने पर, खतरा बढ़ता है
• *दुःख* न पचने पर, निराशा बढ़ती है
• *सुख* न पचने पर, पाप बढ़ता हैं।

    🇮🇳 एक भारत श्रेष्ठ भारत 🇮🇳:
 🌼 #महाभारत_का "#नव_सार_सूत्र"🌼
👌सबके जीवन में उपयोगी सिद्ध होगा 👌

1) "संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे" = #कौरव 

2) "आप भले ही कितने बलवान हो, लेकिन  अधर्म के साथ हो, तो आपकी विद्या, अस्त्र, शस्त्र, शक्ति और वरदान, सब निष्फल हो जायेगा।" = #कर्ण

3) "संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो, कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर, सर्वनाश को आमंत्रित करे" =  #अश्वत्थामा 

4) "कभी किसी को ऐसा वचन मत दो,कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े।" = भीष्म पितामह 

5) "संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ, अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है" =  #दुर्योधन 

6) "अंध व्यक्ति - अर्थात मुद्रा,मदिरा,अज्ञान,मोह और काम (मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता भी, विनाश की ओर ले जाती है।" = #धृतराष्ट्र 

7) "व्यक्ति के पास विद्या  विवेक से बँधी हो, तो विजय अवश्य मिलती है।" = #अर्जुन 

8) "हर कार्य में छल, कपट व प्रपंच रच कर, आप हमेशा सफल नहीं हो सकते।" = #शकुनि 

9) "यदि आप नीति, धर्म व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे, तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती।" = #युधिष्ठिर 

रीति,नीति,विद्या,विनय, ये द्वार सुमति के चार।
इनको पाता है वही, जिसका हृदय उदार ।।

यदि इन 09 सूत्रों से सबक ले पाना सम्भव नहीं होता है, तो महाभारत संभव हो जाता है...!!

महाभारत एक महान ग्रंथ है जो जीवन के हर पहलू को छूता है और मानव जीवन के लिए गहन शिक्षाएँ प्रदान करता है। इसकी कथाएँ केवल ऐतिहासिक या धार्मिक नहीं हैं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में नैतिकता, धर्म, कर्तव्य और मानव व्यवहार को समझने का एक अद्भुत माध्यम भी हैं। महाभारत से हमें निम्नलिखित प्रमुख शिक्षाएँ मिलती हैं:


1. धर्म और अधर्म का अंतर

  • महाभारत का केंद्रीय विषय धर्म है। इसमें समझाया गया है कि धर्म का पालन स्थिति और समय के अनुसार बदल सकता है।
  • उदाहरण: अर्जुन के संशय को भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता के माध्यम से दूर किया और उन्हें अपने कर्तव्य (धर्म) का पालन करने की शिक्षा दी।
  • शिक्षा: हर परिस्थिति में सही और गलत का भेद समझना आवश्यक है। धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि सही कार्य करना है।

2. कर्तव्य पालन का महत्व

  • प्रत्येक व्यक्ति का जीवन में एक निश्चित कर्तव्य होता है जिसे निभाना आवश्यक है।
  • उदाहरण: अर्जुन का कर्तव्य योद्धा होने के नाते युद्ध करना था, और उसे अपने संबंधों को परे रखकर धर्म का पालन करना पड़ा।
  • शिक्षा: चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने कर्तव्यों को निभाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

3. अहंकार का विनाश

  • महाभारत में कौरवों का पतन उनके अहंकार और अधर्म के कारण हुआ।
  • उदाहरण: दुर्योधन ने अपने अहंकार और लोभ में पांडवों को उनका अधिकार देने से मना कर दिया, जो अंततः महायुद्ध का कारण बना।
  • शिक्षा: अहंकार और अधर्म अंततः विनाश की ओर ले जाते हैं।

4. स्त्री का सम्मान

  • द्रौपदी के चीरहरण का प्रसंग हमें यह सिखाता है कि स्त्रियों का अपमान समाज के पतन का कारण बनता है।
  • उदाहरण: द्रौपदी का अपमान ही महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना।
  • शिक्षा: समाज में स्त्रियों का सम्मान अनिवार्य है। उनका अपमान समाज और परिवार के विनाश का कारण बन सकता है।

5. सत्य और धैर्य की विजय

  • सत्य की राह पर चलने वाले को भले ही प्रारंभ में कठिनाई हो, लेकिन अंत में विजय उसी की होती है।
  • उदाहरण: पांडवों ने अपने जीवन में अनेक कष्ट सहे, लेकिन सत्य, धर्म और धैर्य के बल पर अंततः वे विजयी हुए।
  • शिक्षा: जीवन में सत्य, धैर्य और दृढ़ता का पालन करें, क्योंकि सत्य की हमेशा जीत होती है।

6. शिक्षा और विवेक का महत्व

  • महाभारत के कई पात्र, जैसे विदुर, भीष्म, और कृष्ण, यह दिखाते हैं कि ज्ञान और विवेक जीवन में कितना महत्वपूर्ण है।
  • उदाहरण: विदुर नीति और कृष्ण के उपदेश यह समझाते हैं कि कैसे सही निर्णय लिए जाएँ।
  • शिक्षा: ज्ञान और विवेक से जीवन के जटिल प्रश्नों को हल किया जा सकता है।

7. मित्रता और सहयोग का मूल्य

  • सच्चे मित्र संकट के समय आपके साथ खड़े रहते हैं।
  • उदाहरण: कृष्ण और अर्जुन की मित्रता। कृष्ण ने हर परिस्थिति में अर्जुन का साथ दिया।
  • शिक्षा: सच्ची मित्रता में निःस्वार्थता और समर्पण होना चाहिए।

8. आत्मसंयम और इच्छाओं पर नियंत्रण

  • महाभारत सिखाता है कि वासना, क्रोध और लालच को नियंत्रण में रखना चाहिए।
  • उदाहरण: दुर्योधन का लालच और द्रौपदी का अपमान उसकी पराजय का कारण बना।
  • शिक्षा: इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखना आवश्यक है, अन्यथा यह पतन का कारण बन सकती हैं।

9. परिवार में संतुलन और एकता का महत्व

  • परिवार के सदस्यों के बीच ईर्ष्या, अहंकार और अन्याय से परिवार टूट सकता है।
  • उदाहरण: कौरव और पांडवों के बीच संघर्ष परिवार की एकता के अभाव का परिणाम था।
  • शिक्षा: परिवार में प्रेम, समानता और सम्मान बनाए रखना चाहिए।

10. जीवन में त्याग और बलिदान

  • महाभारत हमें सिखाता है कि कभी-कभी अपने लक्ष्य को पाने के लिए बलिदान देना पड़ता है।
  • उदाहरण: भीष्म ने अपने जीवन में प्रतिज्ञा का पालन करते हुए त्याग का आदर्श प्रस्तुत किया।
  • शिक्षा: अपने सिद्धांतों और आदर्शों के लिए त्याग का भाव रखना चाहिए।

11. न्याय का महत्व

  • न्याय और निष्पक्षता जीवन के हर क्षेत्र में अनिवार्य है।
  • उदाहरण: कर्ण के साथ हुए अन्याय ने दिखाया कि अन्याय का परिणाम हमेशा विनाशकारी होता है।
  • शिक्षा: हमें हमेशा न्याय का पक्षधर होना चाहिए।

12. जीवन में परिवर्तन अपरिहार्य है

  • जीवन में स्थायित्व कुछ भी नहीं है, परिवर्तन ही सच्चाई है।
  • उदाहरण: पांडवों का वनवास और राज्याभिषेक, दोनों ही जीवन की अनिश्चितताओं को दिखाते हैं।
  • शिक्षा: जीवन के उतार-चढ़ाव को स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए।

महाभारत केवल एक कथा नहीं, बल्कि जीवन का दर्पण है। यह हमें सही और गलत का बोध कराती है, और सिखाती है कि कैसे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

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   यद्यपि इसे (पोस्ट) तैयार करने में पूरी सावधानी रखने की कोशिश रही है। फिर भी किसी घटनाएतिथि या अन्य त्रुटि के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । अतः अपने विवेक से काम लें या विश्वास करें।

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