- कल्पना और  चिंता ( 2 )
- अत्यधिक चिंता का मानव शरीर पर बहुत बुरा और गहरा प्रभाव पड़ता है।
- इससे अनिद्रा, डायरिया, पेट की गड़बड़ी, मांसपेशियों में तनाव, मधुमेह, सिरदर्द तथा मानसिक तनाव जैसे रोग घेर लेते हैं।
-चिंता से असमय में ही सिर के बाल सफेद हो जाते हैं, चेहरे पर झुर्रियां, मुंहासे और उदासी छाने लगती है। चेहरे का आकर्षण समाप्त होकर युवा  वृद्ध जैसा दिखाई देने लगता है।
- चिंता पर विजय पाने का क्या तरीका है ।
-अगर कोई काम आपकी पहुंच से परे है तो उसके बारे में बेकार की चिंता करने का कोई औचित्य नहीं है।
- अगर आप किसी काम को ठीक से निभाने में सक्षम नहीं हैं तो उसके बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है।'
-जब आप चिंता से  परेशान हों तॊ 
-मन को किसी दूसरी ओर लगा लेना चाहिये क्योंकि दूसरे कामों में मन लगाने से मूड में सुधार हो जाता है।
-किसी व्यक्ति को तरंगे देने लगा जाओ । 
-व्यायाम और दूसरी शारीरिक गतिविधियां, हल्का संगीत तथा ध्यान आदि से ही चिंता से तत्कालिक मुक्ति पाई जा सकती है।
- जब आपका उत्तेजित मस्तिष्क शांत हो जाये तो आप अपनी समस्या पर सोचें।
-चिंताएं अक्सर मिथ्या विश्वास के कारण भी पैदा होती हैं।
- ज्यादातर लोगों को  यह चिंता होती है कि सब लोग क्या कहेंगे? जग हंसाई होगी आदि। 
-प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्याओ मेंं उलझा है कोई किसी के बारे नहीं अपने बारे सोचता हैं । 
-अपने  रोटीन कार्य करते हुए किसी न  किसी को मन से शांति क़ी तरंगे देते रहो और अपना ध्यान सिर्फ लक्ष्य पर रखें तब आप को कोई चिंता नहीं सतायेगी   ।
अवचेतन मन को जागृत करें -  प्रसन्नता 
-वर्तमान समय की सब से बड़ी खोज अवचेतन मन की शक्ति है । 
-अवचेतन मन की शक्ति से हम किसी भी  मनो कामना की पूर्ति कर सकते है । तथा  जब हमारी कोई मनोकामना पूर्ण होती है तो हमें बहुत प्रसन्नता  मिलती है ।  
-जब हम क्लास में फर्स्ट आते है, जब लोग हमारा सम्मान करते है, जब हम रोग मुक्त्त हो जाते  है,  जब हम उंच पद  पर पहुँचते है, जब हम दूसरो का भला  करते है या सिर्फ सोचते है, जब हम भगवान को याद करते है और हमें मीठा मीठा  करेंट सा मिलने लगता है तो हमें बहुत प्रसन्नता होती है ।
-अभी तक प्रसन्नता के लिये बहुत मेहनत करते हैं  , तरह तरह के साधन वा सुख के पदार्थ इक्ठे कर रहे हैं परंतु परिणाम में वह खुशी नहीं मिलती जिसकी हम कामना करते हैं  । 
-अवचेतन मन की शक्ति से हम किसी भी  पराजय पर विजय प्राप्त कर सकते है, किसी भी  पदार्थ की  पूर्ति कर सकते है, क्योंकि उसके लिये   आप का अवचेतन मन आप को ऊर्जा देता  है, जब आप नींद में होते है, सैर सपाटे पर होते है, तब भी आप का अवचेतन मन निर्माण  करता रहता है ।
- जो व्यक्ति ईश्वर या अवचेतन मन के नियमों में विश्वास करता है और ईश्वरीय नियमों को समझ जाता है वह सदैव प्रसन्न रहता है ।
-आप की प्रसन्नता में बाहरी चीजे बाधक  नहीं है ये बाहरी चीजे तो आप के विचारो का परिणाम है ।
-आप का प्रत्येक विचार  एक कारण है और नया कारण एक नया परिणाम उत्पन्न करता है । इसलिये सब से पहले खुशी के संकल्पों का चुनाव करो ।
-अगर आप कुत्ते से नफरत करते हो या डरते हो तो वह खूंखार  प्रतिक्रिया करता है । दरअसल  जानवर आप के अवचेतन मन के कम्पनो को भांप लेता है और उसी के अनुसार     प्रतिक्रिया करता है । इस मामले में इंसान भी  कुत्तों, बिल्लियों और अन्य प्राणियों जितने संवेदनशील होते है ।
-हमारी भावनायें क्या है ? वह  हमारे बोलने, हमारे कार्यों, हमारे लिखने के ढंग तथा  जीवन के बाकी पहलुओं में दिख जाती  है ।
-उन सब के प्रति प्रेम, शांति, सहिष्णुता और दयालुता प्रसारित करो, जो आप की आलोचना करते है,आप के बारे में गपछप करते है । 
-आप अपने विचारो का लंगर उन सब के प्रति सदभावना, शांति और प्रेम का डाल दो ।
-जिस मानसिक रुप से जो देता है, अनिवार्य रुप से उसे भी  वापिस वही मिलता है ।
-चेक करो आप की अंदरूनी भाषा  विनाशकारी तो नहीं है ।
-अगर लोगों की प्रतिक्रिया नाकारात्मक है और आप को खुशी नहीं रहती है तो समझो आप की अंदरूनी वार्तालाप ठीक नहीं है । तुरंत इसे सुधारों ।
-प्रत्येक  व्यक्ति चाहता है कि  उसे महत्वपूर्ण समझा  जाये, उसे प्रेम किया जाये, उसकी प्रशंसा की जाये ।
-भगवान को सामने देखते हुये, आप अपने संकल्पों में हर उस व्यक्ति को जो आप के सामने आता  है या आप के छोटे  छोटे खाने  पीने आदि का या अन्य काम करते है उन्हे अपने मन में यही अहसास दिलाते रहो, तुम महत्व पूर्ण हो, तुम स्नेही हो और तुम सम्मानित आत्मा हो । ये शब्द सिर्फ बोलने नहीं है । 
- ऐसे ही विश्व की  आत्माओ के प्रति कामना करते रहो । तब  अथाह खुशी मिलेगी । यह खुशी के विचार  आप का अवचेतन मन पकड़ लेगा और  मन से हर समय निकलने लगेगें जैसे सांस चलता रहता है । हमें ऐसे लगेगा जैसे स्वर्ग में आ गये है । धीरे धीरे सारी दुनियां जन्नत बन जायेगी और चारो तरफ़ प्रसन्नता ही प्रसन्नता  होगी ।
-कल्पना और परिणाम 
-लोहे को लोहा काटता  है । 
-लोहे को लोहे की बनी हुई चुम्बक ही आकर्षित करती है  । 
-यह   नियम  बताता है क़ि जैसा आप का व्यक्तित्व होगा वैसे ही  व्यक्तित्व  के लोगो को आप अपनी ओर आकर्षित करते हैं !
-जैसा आप अन्य लोगों को प्रदान करते है    वैसा ही प्रतिफल आप प्रप्त करते हैं  । 
-आप सफल विचारों से अन्य व्यक्तियों को सम्पन्न करते हैं  तॊ आप को भी सफल विचारों का उपहार मिलता है  । 
-आप लोगों पर पुष्प  वर्षा करते हैं तॊ आप पर भी निछचित रूप से पुष्प वर्षा ही होगी । 
-आप अन्य लोगों पर धूल फेकेंगे तॊ आप पर  भी  धूल ही गिरेगी । 
-ऊंचे गुम्बद वाली  इमारत मेंं ध्वनि करने पर  उसी ध्वनि की प्रति ध्वनि आप को सुनाई देगी । 
-व्यक्ति जैसा बोता है अर्थात कल्पना करता है वैसा ही काटता है अर्थात प्राप्त करता है   ।
-ऊंचे गुम्बद वाली इमारत मेंं ध्वनि करने पर  उसी ध्वनि की प्रति ध्वनि आप को सुनाई देती है  । 
-व्यक्ति  जैसा बोता है अर्थात कल्पना करता है वैसा ही काटता अर्थात प्राप्त करता है । 
-बबूल का पेड़ बोने पर कांटो के अतिरिक्त और मिल भी क्या सकता है । 
-इसलिए हमेशा अच्छी कल्पना रूपी विचारों के पेड़ लगाओ । 
-ये सिद्वांत जीवन के  प्रत्येक  क्षेत्र मेंं लागू होता है । 
-आप लोगों के  प्रति जैसी वृति अपनाते है,  जैसी भावना रखते है ।  उन्हे महान,  ईमानदार,  शांत व प्रेम स्वरूप समझते है । 
-तब आप अन्य लोगों को अपने प्रति वैसी ही  वृति अपनाने के लिये बाध्य करते हैं  
-विरोधी का  वर्तमान स्वरूप चाहे कैसा भी हो  और उसके वास्तविक गुण शांत स्वरूप को कल्पना मेंं रिपीट करते रहो । 
-आप उनके प्रति साकारात्मक  रुख  रखेंगे तॊ वह भी आप के प्रति साकारात्मक भाव रखेंगे । 
-अगर आप उनके प्रति नकारात्मक कल्पना करते है  तॊ वह भी आप के  प्रति नकारात्मक ही सोचेंगे !
श्री भगवान उवाच 
बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् ।
स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते ॥ (21)
भावार्थ : तत्वज्ञानी मनुष्य बाहरी इन्द्रियों के सुख को नही भोगता है, बल्कि सदैव अपनी ही आत्मा में रमण करके सुख का अनुभव करता है, ऎसा मनुष्य निरन्तर परब्रह्म परमात्मा में स्थित होकर असीम आनन्द को भोगता है। 
ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते ।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः ॥ (22)
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र अर्जुन! इन्द्रियों और इन्द्रिय विषयों के स्पर्श से उत्पन्न, कभी तृप्त न होने वाले यह भोग, प्रारम्भ में सुख देने वाले होते है, और अन्त में निश्चित रूप से दुख-योनि के कारण होते है, इसी कारण तत्वज्ञानी कभी भी इन्द्रिय सुख नही भोगता है। 
शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥ (23)
भावार्थ : जो मनुष्य शरीर का अन्त होने से पहले ही काम और क्रोध से उत्पन्न होने वाले वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वही मनुष्य योगी है और वही इस संसार में सुखी रह सकता है। 
-कल्पना और सीखना 
-मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता रहता है । 
-बचपन मेंं उत्साह से सीखते हैं । 
-जैसे जैसे उम्र बढ़ती है सीखने का उत्साह कम होता जाता है । 
-आज बुजुर्ग लोग मोबाइल  चलाना नहीँ जानते क्योकि सीखने की इच्छा ही नहीँ है,  सीखने का उत्साह नहीँ है । 
-संसार एक पाठशाला है । 
-हम हर पल सीखते हैं  । 
-हम मनुष्य से मधुर संगीत सीख सकते हैं  । 
-वृक्षों से दान और आश्रय देना सीख सकते हैं । 
-पृथ्वी से सृजन क्षमता  सीख सकते हैं । 
-सिर्फ  कुछ नवीन सीखने की प्रवृति अपनाए   । 
-भवन निर्माता  मिस्त्री अपने कार्य पर जाते समय छैनी ,  फीता,  मापक और अन्य समान साथ लेकर चलता है  । 
-आप भी अपने जीवन मेंं सफलता के लिये अपने औजार साथ ले कर चलो । ये औजार हैं  । 
-लक्ष्य रखो । 
-आशा रखो । 
-साकारात्मक सोच रखो । 
-अपने तथा दूसरों के  प्रति श्रेष्ट  भावना रखो । 
-परिश्रम की शक्ति मेंं विश्वास रखो । 
-दृढ़ आत्म विश्वास रखें ।  आप की वह हर इच्छा पूरी होगी जिस के पीछे  कल्याण है । 
-व्यक्ति प्यार से,  प्रोत्साहन से सीखता  है ।  इन दोनो दिव्य गुणो को जीवन मेंं धारण करो । 
-जो कुछ सीखना चाहते हैं,  प्राप्त करना चाहते हैं उसको अपनी कल्पना मेंं अच्छी तरह बिठा लो और हर रोज उसे प्राप्त करने के लिये कोई ना कोई सकारात्मक कार्य करें । 
-यह सब करते हुए बिंदु रूप परमात्मा या इष्ट को याद करते रहें ।  आप को नई नई प्रेरणाएं प्राप्त होंगी । 
-नाकारात्मक संकल्प के अंत में   ' लेकिन '   शब्द कक  प्रयोग करो ।
-अवचेतन  मन एक कंप्यूटर है । इसे आदेश चाहिये  क़ि क्या करना है । जो हम पल पल संकल्प करते है अवचेतन  मन इन  संकल्पों  को आदेश समझता है और  उसी अनुसार कार्य  करता है ।
-अवचेतन मन को कार्य करने से रोकने वाले हमारे सूक्ष्म नाकारात्मक संकल्प  है । अगर हम इन्हे बदल  दे तो अवचेतन मन की शक्तियां  कार्य करने लगेगी ।
-हमारे में वह शक्तियों आ जायेगी जो सिध्द पुरुषों में थी । जिन्हे प्राप्त करने के लिये 8  घंटे योग का अभ्यास  हर रोज़ करना पड़ता है ।
-हमारा अवचेतन मन शक्तियों का सागर है ।  हमें मेहनत सिर्फ नाकारात्मक विचारों को    बदलने की करनी  है ।
- हम अनजाने मै कुछ  ऐसे शब्द सोचते, बोलते वा सुनते रहते है  जो हमारे अवचेतन मन को जागृत नहीं होने देते ।
-मै बीमार हू पता  नहीं क्या होगा, मै यह काम नहीं कर सकता, यह पढाई बहुत कठिन है ।
-अवचेतन मन इन का अर्थ समझता है कि  व्यक्ति की बीमारी ठीक नहीं होने देनी है । काम पूरा  नहीं होने देना  और पढ़ाई  में  पास नहीं होने देना और   वही हमारे  साथ घटित होता रहता  है ।
-सुबह से लें कर रात  तक आप के मन में अनेक प्रकार के नाकारात्मक विचार  आते है । मै यह वस्तु नहीं खरीद पाऊँगा  क्योंकि बहुत महँगी है । मै लचार हू, मजबूर हू, मेरे बस का  नहीं है, मेरी कोई सुनता  नहीं । मै अनपढ़ हू ।
-जैसे ही मन में  नाकारात्मक विचार आये कि यह काम कठिन है उसके अंत में  लेकिन शब्द जोडो । ळेकिन शब्द के बाद अगला  सकारात्मक शब्द ही जुडेगा ।
-यह काम कठिन है लेकिन ईश्वर की सहायता से यह कार्य सम्भव है । अकेले इंसान के लिये वह कार्य कठिन हो सकता है, पर आप अकेले कहाँ है, आप के साथ विश्वास तथा  विश्व दाता की शक्ति है ।
-हरेक अपने लिये सोचे कि  हर नाकारात्मक विचार के पीछे लेकिन शब्द जोड़ कर उसके बाद वह ऐसा कौन सा वाक्य जोड़े जिस से   साकारात्मक शक्ति महसूस हो ।
-मै यह वस्तु नहीं खरीद  सकूगा क्योंकि महँगी है, इस नाकारात्मक विचार  के साथ जोड़े और कहे, मै यह वस्तु अभी नहीं खरीद पाऊगा, लेकिन थोड़े  ही समय में पैसे की  व्यवस्था कर सकता हू । आप वह प्राप्त कर लेगें ।
-मै बीमार हू लेकिन स्वास्थ्य  मेरे अन्दर है, मै ठीक हो  जाऊँगा  ।
-मुझे बुरा लग रहा है, लेकिन मै इस का रूपान्तरण कर सकता हू ।
- पहला वाक्य अगर साकारात्मक है तो उसके साथ लेकिन शब्द प्रयोग  नहीं करना । उसके अंत में 'और'  शब्द प्रयोग करो । मै स्वस्थ हू और स्वस्थ ही रहूंगा ।
-हर नाकारात्मक संकल्प के अंत में लेकिन शब्द प्रयोग करो । इस में ही फायदा है ।
- 'लेकिन'  शब्द के साथ यह कहना है कि यह सम्भव है । मै शरीर से कमजोर हू लेकिन यह सम्भव है कि  फिर से शक्तिशाली बना जा सकता है ।
-लेकिन शब्द जोड़ने से आप के नाकारात्मक विचारो की  तकलीफें रुक  जायेगी । बुरा वक्त चल रहा है लेकिन यह भी  बदल जायेगा ।
-विचार नाकारात्मक है तो असफलता लायेंगे । सकारात्मक है तो सुख शांति और       सम्पन्नता लायेंगे ।
-हर पल नाकारात्मक विचार  आते रहते है उन्हे  आशावादी विचारो में बदलो ।
-हमारे आसपास कुछ् साकारात्मक कुछ  नाकारात्मक विचारो के लोग है । हमें नाकारात्मक लोगों के बारे अपना दृष्टिकोण बदलना है । वह गंदा  है लेकिन अच्छा  कर सकता है ।
श्री भगवान उवाच 
 तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः ॥ (17)
भावार्थ : जब मनुष्य बुद्धि और मन से परमात्मा की शरण-ग्रहण करके परमात्मा के ही स्वरूप में पूर्ण श्रद्धा-भाव से स्थित होता है तब वह मनुष्य तत्वज्ञान के द्वारा सभी पापों से शुद्ध होकर पुनर्जन्म को प्राप्त न होकर मुक्ति को प्राप्त होता हैं। 
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥ (18)
भावार्थ : तत्वज्ञानी मनुष्य विद्वान ब्राह्मण और विनम्र साधु को तथा गाय, हाथी, कुत्ता और नर-भक्षी को एक समान दृष्टि से देखने वाला होता हैं। 
इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः ।
निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ (19)
भावार्थ : तत्वज्ञानी मनुष्य का मन सम-भाव में स्थित रहता है, उसके द्वारा जन्म-मृत्यु के बन्धन रूपी संसार जीत लिया जाता है क्योंकि वह ब्रह्म के समान निर्दोष होता है और सदा परमात्मा में ही स्थित रहता हैं। 
न प्रहृष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् ।
स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ॥ (20)
भावार्थ : तत्वज्ञानी मनुष्य न तो कभी किसी भी प्रिय वस्तु को पाकर हर्षित है और न ही अप्रिय वस्तु को पाकर विचलित होता है, ऎसा स्थिर बुद्धि, मोह-रहित, ब्रह्म को जानने वाला सदा परमात्मा में ही स्थित रहता है।
-कल्पना और उत्साह 
-उत्साह से व्यक्ति 20 घंटे बिना थके अपने कार्यो मेंं  संलग्न रह  सकता है । 
-उत्साह की लहरे जब आप के मन मेंं होती  हैं  तॊ सम्पर्क मेंं आने वाले व्यक्ति भी इसे महसूस करते हैं । 
-दूसरे लोगो  मेंं भी  उत्साह आ जाता हैंं । 
-प्रत्येक समस्या  एक चुनौती है । 
-उत्साह से सभी समस्याए खत्म हो जाती हैं  । 
--संकट कोई समस्या खड़ी नहीँ करते । 
-संकट मनुष्य को श्रेष्ट  प्राप्ति हेतु,  व्यक्ति को प्रतिभा प्रदर्शन का अवसर प्रदान करते हैं  । 
-उत्साह को ओझल न होने दो । 
-उत्साह स्वपनों  को मूर्त रूप प्रदान करता है । 
-उत्साह से अनंत ऊर्जा बनती है  जो हमें सफल बनाती है । 
-उत्साह से पूर्ण विचार हमारे मन मेंं घूमते रहने चाहिये । 
-कभी भी समस्या से घबराओ नहीँ । 
-जितनी ज्यादा बड़ी समस्या है उतनी ही ज्यादा प्राप्ति भी होगी । 
-मस्तिष्क किसी  भी  मुश्किल समय मेंं सहायता प्रदान करने के लिये तैयार रहता  है । 
-जहां समस्या है वहां अतिरिक्त उत्साह से कार्य मेंं जुट जाए । 
-कठिनाइयों का निवारण क्या है ।  इसका हल सोचा करो ।  कल्पना किया करो इसका सकारात्मक अंत  कैसे होगा । 
-दिमाग नवीन राह  सुझाता  है ।  
-यह तभी होता है जब हम विगत की भूलो से,  गल्तियो से,  यह सीखे क़ि  भविष्य मेंं हम ऐसी गलती नहीँ करेगें । 
-मानव भूतकाल की अप्रिय घटनाओ को मन मेंं  चिपकाए रखता  है । व्यर्थ की  कल्पनाएं करता रहता है । 
-जिस से अनेक कष्ट,  क्लेश और असुविधाओं का सामना करता  रहता है । 
-इस से नकरात्मक कल्पनाएं  पनपती है । 
-समस्याओ से घबराने से काम नहीँ चलेगा ।  उनका उत्साह  से सामना करना चाहिये । 
-हम किसी यात्रा  के लिये वाहन  प्रयोग  करते है । 
-वाहन को किस गति से चलाएंगे । 
-सुरक्षित गति से चलाएंगे ।  न अधिक गति न कम गति । 
-जीवन मेंं सफलता  के लिये उत्साह की गति को कम न होने दो । 
-उत्साह को बल मिलता है ज्ञान से या अच्छी कल्पनाओ से । 
-अगर हम 20 पेज हर रोज  अव्यत  मुरली या किसी अन्य सकारात्मक पुस्तक के पढ़ते रहें तॊ उत्साह कभी कम नहीँ होगा । 
-अगर हम अढ़ाई घंटे बैठ कर साधना का अभ्यास करें तॊ हमारा उत्साह कभी कम नहीँ होगा ।  साधना साकारात्मक कल्पना ही है । 
-अगर हम दस हजार बार परमात्मा  के गुण क़ि आप शन्ति के सागर है का सिमरन हर रोज करें तॊ उत्साह सदा बना रहेगा । 
-जब कभी भी उत्साह कम हो तॊ तुरंत  पढ़ना या सिमरन या अच्छी अच्छी कल्पनाएं आरम्भ कर देना । 
आज का ज्ञान :
दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।
श्लोक का अर्थ :
दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा।
श्लोक का भावार्थ :
चाणक्य ने यहां स्पष्ट किया है कि दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक हानिकारक होता है। सांप तो आत्मरक्षा के लिए आक्रमण करता है, परंतु दुष्ट व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सदैव किसी-न-किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाता ही रहता है। इस प्रकार दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक घातक होता है
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