गुरुवार, 24 दिसंबर 2020

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वेस्ट से बेस्ट :पुराने टायरों से जूते : पर्यावरण संरक्षण से कमाई तक ऐसे कर रही सेवा पुणे की पूजा


पर्यावरण की सुरक्षा और आमदनी

जानिये पुराने टायरों कै बेहतरीन उपयोग के उपाय

महाराष्ट्र के पुणे में रहने वाली पूजा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुक करने के साथ, पिछले 2 वर्षों से खराब टायरों से जूते- चप्पल बनाने का काम कर रही हैं। उनके फुटवियर ब्रांड का नाम निमिटल है। अपने इस काम से ना सिर्फ वह लोगों को फुटवेयर उपलब्ध करवा रही हैं बल्कि शहर में बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम भी कर रही हैं। एक बिलियन टायर फेंके जाते हैं कबाड़ में : पूजा ने कहा, दुनियाभर में हर साल 1 बिलियन टायर कबाड़ में फेंक दिए जाते हैं, जिसकी वजह से प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है। जब मैंने इस पर रिसर्च की तो मुझे यह आईडिया आया, जिसके बाद मैंने लोकल मोचियों की मदद से इस काम की शुरूआत की और दो प्रोटोटाइप बनाए।

यहीं से मेरा खराब टायरों से फुटवियर बनाने का सफर शुरू हुआ। बता दें, एंटरप्रेन्योर पूजा बदामीकर पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने साल 2018 में एक आईटी कंपनी की जॉब छोड़ दी थी। पूजा ने इस साल अपकमिंग वूमेन एंटरप्रेन्योर अवॉर्ड भी जीता है।

क्या आपने कभी सोचा है, आप पुराने टायरों से क्या कर सकते हैं?

 हम जानते हैं, जिन नायाब तरीकों से कुछ लोगों ने इनका उपयोग किया है, उन तरकीबों को जानकार आप चौंक जाएंगे।

यह महज कल्पना की उड़ान भरने और पुराने टायरों को फिर से कैसे उपयोग में लाया जाए इस बारे में सोचने का विषय है। दिमाग पर ज़रा ज़ोर दें और पुराने टायरों को फिर से उपयोग में लाने के तरीके खोजें!

पुराने टायरों का फिर इस्तेमाल करने के 5 अलग-अलग तरीके

1. कॉफी टेबल

पुराने टायरों को फिर से इस्तेमाल: कॉफ़ी टेबल

इस व्यावहारिक तरकीब पर अमल करना बेहद आसान है। इसमें टेबल बेस के रूप में टायर का उपयोग करना, टेबल की सतह को बनाए रखने के लिए लकड़ी के टुकड़े से इसे ढकना और बाद में टायर को सजाना शामिल है।

कुछ लोग अपने फर्नीचर से मेल खाने के लिए टायर को कपड़े या सिंथेटिक लाइनिंग से सजाते हैं। वहीं कुछ इन पर रस्सी लपेटकर इन्हें देसी लुक में अधिक पसंद करते हैं।

यदि आप कपड़ा या सिंथेटिक लेदर का उपयोग करना चाहते हैं, तो टायर को नाप लें और अपने मनपसंद मटीरियल का एक सर्कल काट लें।
सर्कल को उस मटीरियल के दूसरे आयताकार टुकड़े से जोड़ें जो टायर की पूरी सतह को कवर करने के लिए पर्याप्त बड़ा हो।
भीतरी लाइनिंग के लिए भी यही कीजिए।
यदि आप इसे धोने में आसान बनाना चाहते हैं, तो उस हिस्से में एक जिपर या कुछ बटन लगा दें जहां भीतरी अस्तर और आयताकार छोर मिलते हैं।

यदि आप रस्सी का इस्तेमाल करते हैं, तो जांच लें कि आपके पास पूरे टायर और लकड़ी के टॉप को कवर करने के लिए पर्याप्त रस्सी है।

इन आसान निर्देशों का पालन करके आप एक प्यारा और काम लायक कॉफी टेबल पा सकते हैं।

2. बच्चों के झूले

यदि आप ऐसे घर में रहते हैं जहां पीछे एक बड़ा आंगन (एक लंबे पेड़ के साथ) है, तो आप क्लासिक स्विंग-सेट बना सकते हैं, जिन्हें हमने फिल्मों में कई बार देखा है। यह एक बहुत ही आसान तरकीब है और आपके बच्चे इसे पसंद करेंगे ।  

आपको केवल टायर को साफ, गाढ़ा पेंट करने और इसे चमकाने की जरूरत है।
इसके बाद, कुछ मजबूत तारों या रस्सी का उपयोग करके इसे एक मजबूत टहनी से लटका दें।
बस हो गया! आपने अपना खुद का झूला बना लिया!

3. फूलों के गमले पुराने टायरों को फिर से इस्तेमाल: फूलों के गमले

टायर का फिर से इस्तेमाल करने का एक और तरीका है: अपने बगीचे में इनका उपयोग।

यह आसान है: आपको केवल उन्हें गमलों में बदलना होगा।

यदि आप एक पौधा लगाना चाहते हैं, उदाहरण के लिए, आपको इसकी अच्छी देखभाल करने की ज़रूरत है, ताकि यह हवा से न गिरे, (या आपका कुत्ता इसे उखाड़ न फेंके), या अन्य खतरों जैसे बच्चों के खेलते वक्त उखड़ न जाए।

अपने पौधे को लगाएं और इसे इस्तेमाल किए गए टायर के भीतर रखें।
ऐसा करके आप इसे बचा सकेंगे और ऊपर से टायर के खुले हिस्से से इसे पानी दे सकेंगे।
एक और जरूरी बात। जब आप टायर को गमले में बदलते हैं, तो उनका कड़ापन पौधों को मिट्टी के दबाव को बनाए रखने में मदद करता है और पौधे की जड़ें अंदर बढ़ती हैं।

इसे करने के कई तरीके हैं। यदि आप उन्हें सीधे अपने बगीचे में रखते हैं, तो आपको केवल उन्हें पेंट करने की जरूरत होगी। जमीन एक आंतरिक आधार के रूप में कार्य करेगी।

यदि आप टायरों को एक अलग प्रकार की सतह पर इस्तेमाल करना चाहते हैं और उन्हें कहीं ले जाने लायक भी बनाना चाहते हैं, तो आपको मिट्टी को बाहर निकलने से रोकने के लिए उनमें आधार बनाना होगा।

आप टायरों को काटकर इनमें छोटे खुले हिस्से बनाकर अलग-अलग पौधे उगा सकते हैं।

4. बागवानी के उपकरण या कचरे के लिए कंटेनर

यदि आपके पास तीन टायर हैं, तो आप उन्हें एक दूसरे के ऊपर लगाकर रख सकते हैं और तार या ऐसी किसी चीज़ से उन्हें एक साथ बांध सकते हैं जिससे वे एक साथ जुड़े रह सकें।

इसके बाद, लकड़ी के टुकड़े (टायर के व्यास का उपयोग करके) से एक सर्कल काट लें और गोंद के साथ टायर के नीचे इसे चिपका दें (यह आधार होगा)।
फिर, मनचाहे रंगों से टायर को पेंट कर सकते हैं और रंग सूख जाने पर इसके ऊपर पर एक ढक्कन लगा सकते हैं।
अब आप कर चुके हैं! कंटेनर बन गया!
याद रखें, यदि आप कचरे के लिए कंटेनर बनाने का निर्णय लेते हैं, तो पूरा होने पर इसे आसानी से खाली करने के लिए आपको इसमें गार्बेज बैग लगाना चाहिए।

5. खड़ी ढलान की पहाड़ियों के लिए सीढ़ियां

यदि आप ऐसे ग्रामीण इलाके में रहते हैं जो पहाड़ियों से घिरा हुआ है, तो यह विकल्प आपके लिए आजमाने लायक है। इससे ऊपर जाने और नीचे आने में बहुत आराम हो जाएगा।

पहले उस क्षेत्र को समझें जहां आप रास्ता बनाना चाहते हैं। फिर इन सीढ़ियों को पहाड़ी पर सेट करें।
टायर को हर स्टेप में लगाएं और उसी मिट्टी से भरें जिसे आपने टायर लगाने के लिए हटाया है।
इस तरह भरने से वे सुरक्षित रूप से अपनी जगह पर पक्के हो जाएंगे।
ये सीढ़ियां जलवायु परिवर्तनों के खिलाफ अच्छी-खासी प्रतिरोधी होती हैं।

अब आप जान गए हैं कि टायर का फिर से इस्तेमाल करना इतना अच्छा विचार क्यों है। उन वस्तुओं को फिर से उपयोग में लाने का प्रयास करें जिनका इस्तेमाल करना आपने बंद कर दिया है और बचत, रचनात्मकता और हस्तशिल्प में  माहिर हो जाइए !

कबाड़ के जुगाड़ से बनी ये मशीने: कम खर्च बेहतरीन काम, सरल मशीन रखरखाव आसान

देखिए भारतीय माहौल के हिसाब से जहां चाह वहा राह की तर्ज पर बनी ये मशीने

पर्वतीय क्षेत्रों में खेती-किसानी कोई सरल काम नहीं होता। ऐसे खेतों में किसानी के लिए बैलों या बड़े ट्रैक्टर का इस्तेमाल संभव नहीं होता। इस समस्या का समाधान बनकर सामने आई यह मशीन। इसे पावर वीडर कहते हैं। यह किसानों के लिए मददगार साबित हुई है। करीब साढ़े पांच हॉर्स पॉवर की इस मशीन का वजन 70-80 किलो होता है। इस पावर वीडर ने पर्वतीय क्षेत्रों में क्रांति ला दी है।

सरकारी छूट भी उपलब्ध

पावर वीडर खरीदने के लिए अलग-अलग राज्यों में सरकारें सब्सिडी देती हैं। इसके लिए लगभग 80 प्रतिशत तक सब्सिडी मिल जाती है।

लेकिन इसके लिए समूह गठित करने होते हैं। अगर किसान निजी स्तर पर खरीदता है, तो उसे 70  प्रतिशत सब्सिडी मिलती है। पावर वीडर करीब 50 हजार रुपये का आता है। यानी इस पर 35 हजार रुपए तक सब्सिडी मिल जाती है। इसके लिए कृषि विभाग में रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है।

आगे पढ़ें-जुगाड़ से बनीं गजब मशीनें...

बालोद, छत्तीसगढ़.
 मूंगफली को फसल से अलग करना पेंचीदा काम होता है। इसके लिए महंगी-महंगी मशीनें बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन गरीब किसान हाथों की मेहनत यह काम करते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की बालोद स्थित बटालियन के जवानों ने एक ऐसा प्रयोग किया, जिनसे यह काम आसान कर दिया। यह मामला पिछले दिनों मीडिया की सुर्खियों में आया था। इसमें साइकिल को उल्टा करके जब पिछले पहिये में मूंगफली की फसल फसाई गई, तो वो अलग-अलग हो गई। इससे समय की बचत हुई और महंगी मशीन खरीदने का खर्चा भी बचा। साइकिलिंग के जरिये इन जवानों ने 20-30 किलो मूंगफली साफ करके दिखाया था।

मंडला, मध्य प्रदेश.
 मध्य प्रदेश के मंडला जिले के किसानों के आविष्कार को जन्म दिया  है। इन्होंने 50-60 हजार रुपए खर्च करके कबाड़ की जुगाड़ से एक मशीन बनाई। इसे नहर के बीच में रखा, तो यह पानी के प्रेशर से चल पड़ी। यह करीब 30 हॉर्स पॉवर तक ऊर्जा पैदा करती है। इससे खेतों तक पानी पहुंच जाता है। यह इतनी हल्की है कि उठाकर कहीं भी ले जा सकते हैं। इस मशीन को देखने कलेक्टर हार्षिका सिंह भी पहुंचे। मशीन में एक व्हील(रहट) है, जिसे गीयर से जोड़ा गया है। आगे पढ़ें-जब 12वीं पास किसान ने बनाया मंगल टरबाइन...

बिजली पैदा करने वाला देसी टरबाइन पांच साल पहले यूपी के ललितपुर में सामने आया था। यहां के एक गांव में रहने वाले 12वीं पास किसान मंगल सिंह एक दिन सिंचाई कर रहे थे कि उनकी 15 हॉर्स पॉवर की मोटर खराब हो गई। नई मोटर के लिए उन्होंने लोन लेने बैंकों के चक्कर काटे, लेकिन नाकाम रहे। तब उन्होंने एक टरबाइन बना दिया। इसे नाम दिया मंगल। आगे पढ़ें इसी टरबाइन के बारे में...

एक और प्रयोग
मंगल टरबाइन एक रहट और गीयर बॉक्स से तैयार किया गया। यह पानी के फोर्स से घूमती है। इस मशीन से बिजली पैदा हो गई। इसका उपयोग आटा चक्की, गन्ना पिराई, कुट्टी मशीन में भी किया जा सकता है। आगे पढे़ं-जब बिजली और डीजल ने रुलाया, तो किसान ने एक आइडिया निकाला और चल पड़ा इंजन, पैसा भी बचा

किसानों की कहानी।
 यहां के गांवों में बिजली की बड़ी दिक्कत थी। इसलिए किसान डीजल के इंजन पर निर्भर थे। लेकिन डीजल इतना महंगा पड़ता था कि उन्हें टेंशन होने लगती थी। बस फिर क्या था...कुछ किसानों ने दिमाग लगाया और रसोई गैस से इंजन चलाने का तरीका खोज निकाला। किसानों ने बताया कि डीजल से एक घंटे इंजन चलाने पर 150 रुपए से ज्यादा का खर्चा आता था। लेकिन गैस सिलेंडर से चलाने पर एक चौथाई खर्चा। आगे पढ़ें-बिजली ने रुलाया, तब जल उठी दिमाग की बत्ती, देखिए बाइक से कैसे किए गजब के जुगाड़

बाड़मेर/छतरपुर।
 कोल्हू में बैल की जगह 'जोती' बाइक ये बात  राजस्थान के बाड़मेर की है। जबकि ऐसा ही कारनामा कुछ समय पहले मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में सामनेआया था। पहले जानते हैं बाड़मेर की खबर। आमतौर पर फसल जैसे तिली, सरसों आदि से तेल निकालने के लिए मशीनों का इस्तेमाल होता है।लेकिन यहां एक युवक ने बाइक को कोल्हू का बैल बना दिया। उदाराम घाणी(कोल्हू) में बैल जोतने के बजाय बाइक के जरिए तिली का तेल निकाल रहे हैं। उदाराम कोल्हू का काम करते हैं। वे भीलवाड़ा में रहते हैं। लेकिन इस समय कोल्हू के काम से बाड़मेर में हैं। भीलवाड़ा से बाड़मेर तक बैल लाने में दिक्कत थी। इसलिए जिस बाइक से वे बाड़मेर आए, उसी को कोल्हू में लगा दिया।

उदाराम बताते हैं कि कोल्हू में बैल जोतने पर उसके लिए चारा-पानी आदि का इंतजाम करना पड़ता है। यह महंगा पड़ता था। बाइक से यह काम सस्ता पड़ रहा है। उनके कोल्हू की चर्चा आसपास के कई गांवों तक फैल गई। इससे लोग तेल निकलवाने के बहाने इस कोल्हू को देखने आ रहे हैं। उदाराम ने बाइक की स्पीड कार्बोरेट के जरिये फिक्स कर दी है। इससे बाइक पर बैठकर गीयर बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। आगे पढ़ें-बिजली कटौती ने जला दी दिमाग की बत्ती, देसी जुगाड़ से बाइक के जरिये निकाल लिया ट्यूबवेल से पानी

भोपाल, मध्य प्रदेश
. यह आविष्कार मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बड़ामलहरा में हुआ था। यहां एक कम पढ़े-लिखे शख्स ने जब देखा कि बिजली कटौती के चलते ट्यूबवेल बंद होने से लोग पानी को परेशान हैं, तो उसने दिमाग दौड़ाया। बस फिर क्या था, उसने अपनी बाइक के पिछले पहिये में थ्रेसर की बेल्ट को यूं बांधा कि उसके घूमने से ट्यूबवेल में लगा डीजल पंप चल पड़ा और पानी निकलने लगा। बाली मोहम्मद की यह बाइक मीडिया की सुर्खियों में आई थी।

बाली ने बाइक के इंजन के बगल में लगे मैग्नेट बॉक्स को खोलकर उसके अंदर दो बोल्ट कस दिए। इसमें थ्रेसर की बेल्टों को काटकर यूं फंसाया कि पहिया घूमने पर बेल्ट भी घूमे। दूसरे सिरे पर उसने बेल्ट को डीजल पंप की पुल्ली(रॉड) से कस दिया।

अब बाली ने जैसे ही बाइक स्टार्ट की..बेल्ट घूमने से डीजल पंप का चक्का भी तेजी से घूमा। इस तरह पानी ऊपर आने लगा। इस पर खर्चा भी आया सिर्फ 30 रुपए में एक घंटे पानी खींचना। यानी यह डीजल से सस्ता पड़ा।

बिना ड्राइवर चला ट्रेक्टर
बिना ड्राइवर के ट्रैक्टर दौड़ते देखकर लोगों को लगा भूत होगा, लेकिन यह था जुगाड़ का कमाल

जयपुर, राजस्थान.
 राजस्थान के बारां जिले के बमोरी कलां गांव के रहने वाले 20 वर्षीय योगेश नागर ने रिमोर्ट से ट्रैक्टर चलाकर सबको चकित कर दिया था। यह मामला कुछ समय पहले मीडिया की सुर्खियों में आया था। योगेश किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता बीमार रहते थे। लिहाजा योगेश को बीएससी की पढ़ाई पूरी करके अपने गांव लौट आना पड़ा। यहां उन्होंने पिता के साथ खेतीबाड़ी में हाथ बंटाना शुरू किया। इसी बीच खाली बैठे उन्हें आइडिया आया और ऐसा रिमोट बना दिया, जो ट्रैक्टर को चलाता है। आगे पढ़ें-साइकिल की जुगाड़ से निकाला किसान ने कई समस्याओं का 'हल'..जानेंगे नहीं इसकी खासियत

धनबाद, झारखंड.
 जुगाड़ से बनी साइकिल धनबाद के झरिया उपर डुंगरी गांव से चर्चा का विषय बनी थी। इसे तैयार किया था मैट्रिक पास किसान पन्नालाल महतो ने। इसमें दो हॉर्स पॉवर के मोटरपंप को लगाया गया है। यानी साइकिल से खेत जोइए और ट्यूबवेल या कुएं से पानी निकालकर सिंचाई भी कीजिए। पन्नालाल ने इस साइकिल का निर्माण महज 10000 रुपए में किया था। इसमें साइकिल के पिछले पहिये को हटाकर उसमें तीन फाड़(खेत जोतने लोहे का फर्सा) लगाया गया है। इस जुगाड़ की साइकिल के चलाने के लिए केरोसिन की जरूरत होती है। अगर केरोसिन खत्म हो जाए, तो साइकिल को धक्का देकर भी खेत जोता जा सकता है। साइकिल का पिछला पार्ट हटाकर उसमें मोटर फिट कर दी गई है। आगे पढ़ें-ऐसी जुगाड़ गाड़ी कभी देखी है, बच्चा है...लेकिन कर लेती है कम खर्च में बड़े ट्रैक्टरों के काम

पश्चिम सिंहभूम, झारखंड.
 कबाड़ की जुगाड़ से हाथ के सहारे चलने वाले मिनी ट्रैक्टर का निर्माण करने वाले देव मंजन बैठा के खेत पश्चिम सिंहभूम जिले के मनोहरपुर पोटका में हैं। देव मंजन ने इस मिन ट्रैक्टर का निर्माण पुरानी मोटरसाइकिल, पानी के पंप और स्कूटर के पार्ट्स को जोड़कर किया है। वे पिछले 9 सालों से इस मिनी ट्रैक्टर के जरिये खेती-किसानी कर रहे हैं। देव 10वीं पास हैं। घर की आर्थिक स्थिति खराब होने से वे आगे नहीं पढ़ पाए, तो खेती-किसानी करने लगे। इस मिनी ट्रैक्टर के निर्माण पर मुश्किल से 5000 रुपये खर्च हुए हैं। इससे लागत सीधे 5 गुना कम यानी 70-80 रुपए पर आ गई। आगे पढ़ें-बिजली के बिल ने मारा जो करंट, टीन-टप्पर की जुगाड़ से पैदा कर दी बिजली...

रांची, झारखंड.
इसे कहते हैं दिमाग की बत्ती जल जाना! ऐसा ही कुछ रामगढ़ के 27 वर्षीय केदार प्रसाद महतो के साथ हुआ। कबाड़ की जुगाड़ (Desi Jugaad) से नई-नई चीजें बनाने के उस्ताद केदार ने मिनी हाइड्रो पॉवर प्लांट (Mini hydro power plant ) ही बना दिया। टीन-टप्पर से बनाए इस प्लांट को उन्होंने अपने सेरेंगातु गांव के सेनेगड़ा नाले में रख दिया। इससे 3 किलोवाट बिजली पैदा होने लगी। यानी इससे 25-30 बल्ब जल सकते हैं। केदार कहते हैं कि उनका यह प्रयोग अगर पूरी तरह सफल रहा, तो वो इसे 2 मेगावाट बिजली उत्पादन तक ले जाएंगे। केदार ने 2004 में अपने इस प्रयोग पर काम शुरू किया था।


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