शनिवार, 5 दिसंबर 2020

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करें बिजनेस आप, मूर्तियों का व्यवसाय, आप बनेंगे मालामाल, बनाये अपना भविष्य ये दे रहे साथ


-कारोबार के मूल तत्व
- व्यापार की संभावनाएं
- ऋण व अनुदान
-विशेषज्ञता की आवश्यकता
-प्रशिक्षण संस्थान
-कामयाबी की कहानी अमित राजपूत

ना रहिए बेरोजगार खुद के साथ औरो को भी दे रोजगार

मूर्तिकला में अपने हाथों से बनाइए अपना भविष्य

मूर्ति निर्माण प्राचीनतम कलाओं में से है, लेकिन यह आज भी युवाओं के लिए रोजगार का प्रमुख साधन है। अपने घरों में सजावट के लिए ही सही, लोगों में मूर्तियों के प्रति मोह बढ़ रहा है, जिसने विभिन्न तरह की मूर्तियों की मांग में काफी इजाफा किया है। अगर आपकी रुचि भी मूर्तियों में है तो यह आपके लिए रोजगार का साधन बन सकता है।

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, पिछले 20 वर्षों में मूर्तियां बनाने वालों की संख्या लगभग 15 गुना बढ़ी है। इनमें पारंपरिक रूप से मूर्ति बनाने का काम करने वाले करीब पांच प्रतिशत हैं, वहीं इस क्षेत्र में डिग्री लेने वालों की संख्या लाखों में है। ऐसे युवाओं के लिए मूर्तिकला स्वरोजगार का अच्छा जरिया बन सकती है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 20 वर्षों में भारतीयों द्वारा निर्मित कंटैम्परेरी यानी समकालीन मूर्तियों की मांग हमारे देश के बाजारों में करीब आठ प्रतिशत और विदेशी बाजारों में 30 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि पारंपरिक मूर्तियों की मांग स्थानीय बाजारों में तकरीबन 25 प्रतिशत और विदेशी बाजारों में 40 प्रतिशत बढ़ी है।

जहां तक मिट्टी की मूर्तियों का सवाल है तो सस्ती होने के कारण ये काफी डिमांड में है। यही कारण है कि आज इस क्षेत्र में संभावनाओं का विस्तार हुआ है। सरकारी और प्राइवेट सेक्टर और 3डी एनिमेशन में मूर्तिकारों की डिमांड काफी है, जिसमें कमीशन वर्क यानी ऑर्डर के हिसाब से काम मिल जाता है। इसके अलावा प्रदर्शनियों में भाग लेकर भी आपके काम की डिमांड बढ़ेगी। यानी इस क्षेत्र में आप अगर मेहनत कर लें तो आसानी से करियर बन सकता है।

जगह का चुनाव

अगर आप घर पर मिट्टी की मूर्तियां बनाना चाहते हैं, तब इसके लिए एक कमरा और थोड़ी-सी खुली जगह मूर्तियां सुखाने के लिए पर्याप्त है, लेकिन प्रोफेशनल तरीके से बड़े स्तर पर काम करने के लिए आपको कम से कम पांच सौ गज जगह चाहिए। जगह कहीं भी हो, मगर आपका संपर्क हर ऐसी जगह और व्यक्ति से होना चाहिए, जहां से आप आसानी से काम का ऑर्डर ला सकें।

उपकरण और मशीनें

मिट्टी की मूर्तियां तैयार करने के लिए तो आपको सिर्फ सांचे या सांचों के लिए रबर और मिट्टी घोलने के लिए एक बड़ा बर्तन, रेगमाल सफाई ब्रश और एक पतला व मजबूत तार चाहिए। लेकिन प्रोफेशनल काम करने के लिए आपको भट्ठी, कुठाली, पोरिंग रिंग, ट्राली, मोल्ड बैकिंग चैम्बर, छैनी, हथौड़ा, सांचे, रबर, सब्बल, क्रोबर ब्लोअर, अडेसिव लेटैक्स और सीएनसी मशीन आदि की जरूरत पड़ती है।

मिट्टी और धातु आदि

मूर्ति बनाने के लिए काली मिट्टी और चिकनी मिट्टी की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा मिट्टी की मूर्तियों में पीओपी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन धातुओं में एल्युमीनियम, तांबा, जस्ता, स्टील आदि का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है।

ये सभी धातुएं लगभग हर शहर में मिल जाती हैं। दिल्ली के सदर बाजार में इनकी उपलब्धता ज्यादा रहती है। ऐसे ही मिट्टी भी हर कहीं मिल जाती है, जिसमें पीओपी राजस्थान से, चिकनी मिट्टी हरियाणा और कोलकाता से और काली मिट्टी कोलकाता से आती है।

अन्य जरूरी चीजें

मूर्तियों की सफाई और चमक आदि के लिए पेंट, तारकोल और धातुओं की पॉलिश की भी जरूरत पड़ती है।

लागत

घर में रह कर केवल मिट्टी से अगर आप मूर्तियां बनाते हैं, तब तो आप पांच-छह हजार में काम शुरू कर सकते हैं और 20-25 हजार में ठीक-ठाक स्तर पर काम कर सकते हैं। प्रोफेशनल तरीके से काम शुरू करने के लिए आप कम से कम 50 लाख रुपए से शुरू कर सकेंगे। बहुत अच्छे स्तर पर काम करने के लिए आप करोड़ों रुपए इस काम में लगा सकते हैं।

आमदनी

इस काम में आपकी आमदनी आपके द्वारा बनाई गई मूर्तियों की बिक्री और आपकी पहचान के अलावा आपके काम की सफाई और उसकी प्रसिद्धि व प्रशंसा पर निर्भर करेगी। वैसे एक मिट्टी का मूर्तिकार महीने में 10 से 15 हजार रुपए और एक डिग्रीधारी प्रोफेशनल, जो छोटे स्तर पर काम करता है, 15 से 20 हजार रुपए महीने आसानी से कमा सकता है। बड़े स्तर पर काम करने वालों को तो एक ही ऑर्डर में लाखों-करोड़ों का काम मिल जाता है।

लोन व अनुदान

इस काम को करने के लिए कोई भी व्यक्ति सीधे बैंक से संपर्क करके लोन ले सकता है। उसे बैंक द्वारा तय की गई सभी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी। इसके अलावा डिग्रीधारी अपनी डिग्री के जरिए भी लोन के लिए आवेदन कर सकते हैं। कुछ योजनाओं, जैसे- प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना, शहरी और ग्रामीण स्वरोजगार योजना के अंतर्गत भी आप लोन ले सकते हैं साथ ही इनमे अनुदान का भी प्रावधान है जिसका भी आप लाभ उठा सकते है । आजकल एजुकेशन लोन भी मिलता है, जिसे आप किसी भी कॉलेज में प्रवेश लेकर प्राप्त कर सकते हैं, मगर यह लोन कुछ ही बैंक देते हैं।

एक्सपर्ट व्यू

मूर्तिकला के क्षेत्र में विकास की काफी संभावनाएं हैं

एसोसिएट प्रो़ बी.एम. शर्मा,
डिपार्टमेंट ऑफ स्कल्पचर, कॉलेज ऑफ आर्ट, नई दिल्ली

मूर्तिकला एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें संभावनाओं की तलाश करने के लिए शुरुआत में काफी मेहनत और जद्दोजहद की जरूरत होती है। कला को जैसे-जैसे कोई व्यक्ति समझता जाता है और अपनी पकड़ कला और लोगों में जैसे-जैसे डेवलप करता जाता है, उसके करियर का विकास होता चला जाता है।

वैसे इस क्षेत्र में तकरीबन 80 से 90 प्रतिशत डिग्रीधारी पढ़ाने का ऑप्शन तलाशते हैं। हां, जो इस क्षेत्र को स्वरोजगार के रूप में अपनाते हैं, वे अगर ठीक से मेहनत कर लें तो उनका भविष्य भी उज्जवल हो सकता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय में यह तय किया गया था कि किसी भी बिल्डिंग के निर्माण की टोटल लागत का एक प्रतिशत कला पर खर्च किया जाएगा, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कहीं-कहीं तो इस नियम का पालन होता है और कहीं इस ओर ध्यान तक नहीं दिया जाता। तो दोनों बाते हैं, एक तरफ जहां मूर्तिकला के क्षेत्र में काफी परिवर्तन और विकास की संभावनाएं बढ़ी हैं, वहीं दूसरी तरफ नियमों का पालन नहीं होने के कारण संभावनाओं में सेंध भी लग रही है।

इस क्षेत्र में फ्रीलांस काम करने वालों को भी अपना काम करना फायदेमंद रहता है। इसके अलावा राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनियों का आयोजन होता है, जिनमें पारंगत लोग अपनी कला का प्रदर्शन करके आगे के रास्ते खोल सकते हैं। प्रदर्शनियों में जिन कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है, उन्हें सरकारी स्तर पर 10 से 25 हजार तक की छात्रवृत्ति या प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।

प्राइवेट स्तर पर तो यह राशि लाखों में भी मिल सकती है। इसके अलावा ललित कला अकादमी और मिनिस्ट्री ऑफ आर्ट में भी इस क्षेत्र में छात्रवृत्तियां दी जाती हैं।

अगर आपने अपने काम से लोगों को प्रभावित कर लिया तो इस क्षेत्र में काम की कमी नहीं है, लेकिन उसके लिए काफी ज्यादा और लगातार मेहनत की जरूरत पड़ेगी

फैक्ट फाइल

कोर्स
मूर्तिकला के क्षेत्र में स्नातक स्तर से कोर्सेज कराए जाते हैं। इनमें यूनिवर्सिटी ग्रान्ट कमीशन  द्वारा स्नातक स्तर पर चार वर्षीय कोर्स बीवीए का होता है और स्नातकोत्तर स्तर पर दो वर्षीय कोर्स एमवीए का होता है। ऐसे ही आल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन यानी एआईसीटीई द्वारा स्नातक स्तर पर चार वर्ष में बीएफए और स्नातकोत्तर स्तर पर दो वर्ष में एमएफए की डिग्री हासिल की जा सकती है। एमवीए और एमएफए के बाद अगर आप चाहें तो पीएचडी भी कर सकते हैं।

योग्यता
स्नातक स्तर पर प्रवेश के लिए तो आपका कम से कम बारहवीं पास होना जरूरी है, जबकि स्नातकोत्तर करने के लिए बीवीए या बीएफए होना जरूरी होता है।

प्रवेश
स्नातक स्तर पर प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा देनी होती है, जो कहीं-कहीं केवल लिखित होती है और कहीं-कहीं लिखित और मौखिक, दोनों रूपों में ली जाती है। इन परीक्षाओं द्वारा मूर्तिकला में आपकी रुचि, धातुओं, पत्थरों और मिट्टी की जानकारी आदि के अलावा आपकी कलात्मक क्षमता और उसके विकास की संभावनाओं का पता लगाया जाता है।

फीस
कॉलेजों में करीब पांच हजार से लेकर 20 हजार तक में स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के लिए आठ हजार से लेकर 25-26 हजार तक वार्षिक फीस ली जाती है। कुछ प्राइवेट संस्थान भी प्रशिक्षण देते हैं, जिनमें 10 से लेकर एक लाख रुपए तक फीस वसूली जाती है।

फाइन आर्ट्स के लिए संस्थान

कॉलेज ऑफ आर्ट, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.colart.delhigovt.nic.in

फैकल्टी ऑफ विजुअल आर्ट, बीएचयू, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in

फैकल्टी ऑफ फाइन आर्ट, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.htcampus.com

कला और शिल्प कॉलेज, लखनऊ विश्वविद्यालय
वेबसाइट- www.lkouniv.ac.in

गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट, कोलकाता
वेबसाइट- www.gcac.edu.in

सक्सेस स्टोरी

मिट्टी से प्यार ने बनाया मूर्तिकार

अमित राजपूत, राजपूत आर्ट, नई दिल्ली

मेरी बचपन से ही मूर्तियों में रुचि थी। मेरा मिट्टी से प्यार आप इसी से परख सकते हैं कि मैं मिट्टी के खिलौने बनाने की खूब कोशिश करता था और गांव में कुम्हार के बर्तन बनाने के समय वहां जरूर जाता था। जब मैंने 12वीं की परीक्षा पास की और बनारस हिन्दू विश्व-विद्यालय में बीए की प्रवेश परीक्षा देने गया तो वहां लगी मूर्तियों को देख कर मेरे मन में मूर्तियां बनाने का ख्याल घर कर गया। उसके बाद घर आकर मैंने पेंटिंग और मूर्तियां बनाना शुरू किया।

देहरादूरन से बीए की पढ़ाई शुरू हुई तो वहां एक कला के अध्यापक से मेरी मुलाकात हुई, जो बहुत अच्छे चित्रकार और मूर्तिकार थे। मैं अपने द्वारा बनाई हुई मूर्तियों को उन्हें दिखाने लगा और इस तरह धीरे-धीरे मेरे हाथ में सफाई आने लगी। जब मैं कुछ अच्छा करने लगा तो 2004 में आईफैक्स के अंतर्गत उन्हीं अध्यापक के साथ मैंने अपनी पहली प्रदर्शनी लगाई। उसके बाद मेरा नाम अखबारों में छपा और मेरे पास ऑर्डर आने लगे। इसके बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा और पूरी तरह इस क्षेत्र में आ गया।

आज मैं मूर्तियां ऑर्डर पर बनाता हूं और खुद बना कर भी बेचता हूं। प्रदर्शनियों में भी भाग लेता हूं और मूर्तिकला की शिक्षा भी देता हूं। अब राष्ट्रीय स्तर पर काम की तलाश में हूं।
 कोरोना काल में नौकरी जाने के बाद कई लोगों ने अपना खुद का बिजनेस खोल लिया. लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जिनके पास पैसों की कमी और कोई आइडिया ना होने के कारण सिर्फ बिजनेस के बारे में सोचते ही रह गए. तो ना हो परेशान, आज हम आपको एक ऐसे बिजनेस के बार में बता रहें हैं जिसकी डिमांड कभी कम नहीं होती. मतलब साफ है ये बिजनेस हर समय प्रॉफिट देने वाला है. मार्केट में मशरूम की मांग में कभी कमीं नहीं होती इसकी वजह इसमें मौजूद पौषक तत्व हैं, साथ ही ये फाइबर का भी एक अच्छा माध्यम है. हेल्थ कॉन्शस लोगों के लिए भी यह अच्छा होता है, क्योंकि इसमें कैलोरीज ज्यादा नहीं होतीं.मशरूम में कई महत्वपूर्ण खनिज और विटामिन पाए जाते हैं.

इनमें विटामिन बी, डी, पोटैशियम, कॉपर, आयरन और सेलेनियम की पर्याप्त होती है.

बाजार में इसकी रिटेल भाव 300 से 350 रुपये किलो है और थोक का रेट इससे 40 फीसदी कम होता है. इसे मिल रही बड़ी मांग के चलते कई किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर मशरूम उगाना शुरू कर दिया है. आइए जानें मशरूम की खेती के बारे में सबकुछ...

50 हजार लगाकर करें 2.50 रुपये की कमाई-
बटन मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट बनाया जाता है. एक क्विंटल कम्पोस्ट में डेढ़ किलोग्राम बीज लगते हैं. 4 से 5 क्विंटल कम्पोस्ट बनाकर करीब 2 हजार किलो मशरूम पदै हो जाता है. अब 2 हजार किलो मशरूम कम से कम 150 रुपये किलो के हिसाब से बिकता है तो करीब 3 लाख रुपये मिल जाएंगे. इसमें से 50 हजार रुपये लागत के तौर पर निकाल दें तो भी 2.50 लाख रुपये बचते हैं. हालांकि इसकी लागत 50 हजार रुपये से कम ही आती है.

मशरूम की खेती की लें ट्रेनिंग
सभी एकग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज और कृषि अनुसंधान केंद्रों में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जाती है. अगर आप इसे बड़े पैमाने पर खेती करने की योजना बना रहे हैं तो बेहतर होगा एक बार इसकी सही ढंग से ट्रेनिंग कर लें. अगर जगह की बात की जाए तो प्रति वर्ग मीटर में 10 किलोग्राम मशरूम आराम से पैदा किया जा सकता है. कम से कम 40x30 फुट की जगह में तीन-तीन फुट चौड़ी रैक बनाकर मशरूम उगाए जा सकते हैं.

कम्पोस्ट बनाने की विधि
कम्पोस्ट को बनाने के लिए धान की पुआल को भिंगोना होता है और एक दिन बाद इसमें डीएपी, यूरिया, पोटाश, गेहूं का चोकर, जिप्सम और कार्बोफ्यूडोरन मिलाकर, इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. करीब डेढ़ महीने के बाद कम्पोस्ट तैयार होता है. अब गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मिलाकर करीब डेढ़ इंच मोटी परत बिछाकर, उस पर कम्पोस्ट की दो-तीन इंच मोटी परत चढ़ाई जाती है. इसमें नमी बरकरार रहे इसलिए स्प्रे से मशरूम पर दिन में दो से तीन बार छिड़काव किया जाता है. इसके ऊपर एक-दो इंच कम्पोस्ट की परत और चढ़ाई जाती है. और इस तरह मशरूम की पैदावार शुरू हो जाती है.


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   यद्यपि इसे (पोस्ट) तैयार करने में पूरी सावधानी रखने की कोशिश रही है। फिर भी किसी घटनाएतिथि या अन्य त्रुटि के लिए मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है । अतः अपने विवेक से काम लें या विश्वास करें।

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यह पोस्ट में दी गयी जानकारी धार्मिक विश्वास एवं आस्था, Whats-app एवं  ग्रन्थों से पर आधारित है जो पूर्णता वैज्ञानिक नहीं है अधिक जानकारी के लिए अथवा पूरा प्रवचन सुनने के लिए मूल वेवसाइट पर जायेंA

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